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जेएनयू के प्रो. मकरंद आर. परांजपे बने भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान, शिमला के नए निदेशक

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के नये निदेशक जेएनयू में अंग्रेजी के प्रो. मकरंद आर.  परांजपे होंगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त प्रो. परांजपे की पहचान अच्छे समालोचक, कहानीकार और चिंतक के रूप में रही है। बी. आनंद की खबर :

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के 17वें निदेशक प्रो. मकरंद आर परांजपे होंगे। परांजपे इससे पूर्व जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय दिल्ली में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से उनकी नियुक्ति की गई है। जल्द ही वे अपना कार्यभार संभाल लेंगे।

प्रो. परांजपे बिशप कॉटन स्कूल बैंगलोर, सेंट स्टीफन कॉलेज नई दिल्ली से पढ़े हैं। इन्होंने इलिनोइस विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में पीएचडी की डिग्री हासिल की हैं। वे  कार्लेटन विश्वविद्यालय, आयोवा, टेक्सास-ऑस्टिन विश्वविद्यालय, बॉल स्टेट यूनिवर्सिटी, साओ पाओलो यूनिवर्सिटी, फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ मिनस गेरियस, मर्डोक यूनिवर्सिटी, स्वायत्त समेत कई संस्थानों में विजिटिंग फेलो रहे हैं। इसके अलावा वे एक आलोचक, कवि, उपन्यासकार, लघु कथा लेखक, साहित्यिक स्तंभकार और समीक्षक भी  हैं। उन्होंने 25 किताबें लिखी हैं। कविताओं, लघु कथायें, 250 से अधिक निबंध, समीक्षाओं और अन्य प्रकाशनों के अलावा भारत और विदेशों में 100 से अधिक अकादमिक पत्र प्रकाशित हुए हैं।

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला

उल्लेखनीय है कि भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला पहले वायसराय भवन के रूप में विख्यात था। वर्ष 1947 में यह भवन सरकार के अधीन आया तो इसे राष्ट्रपति भवन बनाया गया। राष्ट्रपति चूंकि यहां कम ही रहते थे, इसलिए इसे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बना दिया। राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की परिकल्पना के अनुसार, 6 अक्टूबर 1964 को रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसायटीज एक्ट 1860 के तहत भारतीय उच्च संस्थान सोसायटी का पंजीकरण हुआ। इसका उद्देश्य मानविकी और सामाजिक व प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्रों में अकादमी शोध के लिए उचित वातावरण उपलब्ध करवाना था। यहां अध्येता अपना शोध करते हैं। देश-विदेश के अध्येताओं का चयन निदेशक की अध्यक्षता में गठित एक चयन समिति करती है। अध्येताओं के लिए देशभर में विज्ञापन प्रकाशित किए जाते हैं।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

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बी. आनंद

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