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क्या ‘पदोन्नति में आरक्षण’ की राह में कानून है कोई बाधा?   

पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 16(4) को आधार बनाया है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि यह सिर्फ पिछड़ा वर्ग के लिए ही है। इस बारे में सभी तरह के कयासों  पर विराम लगाते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वी. ईश्वरैया ने स्पष्ट किया है कि यह अनुच्छेद पिछड़ा वर्ग, एससी और एसटी सभी के लिए है। पढ़िए उनसे हुई बातचीत पर यह रपट :

संविधान का अनुच्छेद 16(4) सभी पिछड़े वर्गों के लिए है और इसका तात्पर्य सिर्फ  पिछड़ा वर्ग से ही नहीं है बल्कि सभी पिछड़े वर्गों से है जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति भी शामिल हैं। यह कहना है आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके वी. ईश्वरैया का। ईश्वरैया राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसका मतलब  यह है कि इस सशक्तीकरण प्रावधान के तहत किसी भी पिछड़े वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण दिया जा सकता है।

सेवानिवृत्त न्यायाधीश सह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैया

यह पूछने पर कि अनुच्छेद 16(4) में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति का जिक्र नहीं किया गया है, लेकिन बाद में इसमें एससी/एसटी  को शामिल करने को सुप्रीम कोर्ट की गलती मानकर क्या इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, न्यायमूर्ति ईश्वरैया ने फॉरवर्ड प्रेस से कहा, “यह अर्जी याचिकाकर्ता के मुंह पर फेंक दी जाएगी” यानी कोर्ट इसकी ओर देखेगा भी नहीं। उन्होंने कहा कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ  मामले में सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपनी राय दे चुका है और अब यह मामला इस तरह के किसी भी विवाद से परे है।  

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संविधान के अनुच्छेद 16(4) में समाज के ऐसे पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण का प्रावधान है जिनको पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। कोर्ट ने एम. नागराज मामले और अन्य मामले में भी यह स्पष्ट कर चुका है कि 16(4) के तहत मिले अधिकार मौलिक अधिकार नहीं हैं और इनके साथ कोई कर्तव्य नहीं जुड़ा है। यह सामाजिक समूह के साथ हुए ऐतिहासिक सामाजिक अन्याय और गैर बराबरी को समाप्त करने के लिए एक सशक्तीकरण  प्रावधान है। 16(4ए) और 16(4बी) संशोधनों से राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि अगर उनको लगे कि समाज के किसी वर्ग को सरकारी नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला हुआ है और वह पिछड़ा है तो इस समूह के लिए वह आरक्षण का प्रावधान कर सकता है। लेकिन इसके लिए उसे इस समूह के बारे में ऐसे आंकड़े जुटाने होंगे जिससे यह साबित हो सके कि इस समूह को सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है और वह पिछड़ा है।

सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली

महाराष्ट्र से राज्यसभा के सदस्य रहे हरिभाऊ राठौड़ इस मामले  को उठाते रहे हैं और उनका कहना रहा है की अनुच्छेद 16(4) केवल पिछड़ा वर्ग से सम्बंधित है और अनुसूचित जाति और जनजाति को इसमें शामिल कर सुप्रीम कोर्ट भ्रम फैला रहा है। राठौड़ इस समय महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य हैं।

हरिभाऊ राठौड़, पूर्व राज्यसभा सांसद व वर्तमान में महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य

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न्यायमूर्ति वी. ईश्वरैया ने फॉरवर्ड प्रेस से अपनी बातचीत में स्पष्ट किया कि  अनुच्छेद 16(4) को केवल पिछड़े वर्ग से सम्बंधित बताने की गलती कोई क़ानून से अनभिज्ञ व्यक्ति ही कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले को स्पष्ट कर चुका है कि यह अनुच्छेद देश के सभी पिछड़े वर्गों से संबंधित है और इसमें पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति  एवं जनजाति सब शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस बारे में किसी को संदेह नहीं रहना चाहिए।

(कॉपी एडिटर : एफपी डेस्क)

  


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अशोक झा

लेखक अशोक झा पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा से की थी तथा वे सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली सहित कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं

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