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मरीना में होगा करूणानिधि का अंतिम संस्कार, ब्राह्मणवादियों को झटका

ब्राह्मणवाद की राजनीति की चतुर लॉबी ने एम. करूणानिधि के अंतिम संस्कार में भी व्यवधान खड़ा करने की कोशिश की और उनका अंतिम संस्कार मरीना में होने को लेकर अड़चनें पैदा की। लेकिन इन सबको मद्रास हाईकोर्ट से मुंह की खानी पड़ी है। यह संयोग है कि ब्राह्मणवाद का विरोध करूणानिधि का कोर इश्यू भी था। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :

बीजेपी और आरएसएस की चेन्नई में एम. करूणानिधि का अंतिम संस्कार मरीना तट पर ना होने की तमाम कोशिशों को मद्रास हाईकोर्ट से गहरा झटका लगा है। इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री एम करूणानिधि की समाधि स्थल को लेकर खड़ा किया गया विवाद खत्म हो गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने डीएमके की याचिका पर सुनवाई करते हुए तमिलनाडु सरकार के फैसले को पलट दिया और सीधे आदेश दिया कि करूणानिधि के अंतिम संस्कार के लिए मरीना में कराए जाने की अनुमति दी जाती है। इससे पहले डीएमके नेता सरवनन अन्नदुराई ने ट्वीट किया था कि मरीना में अंतिम संस्कार को लेकर पैदा की गई रुकावट के पीछे बीजेपी और आरएसएस का षडयंत्र है। वह हमारे महान नेता का तिरस्कार कर रही है। करूणानिधि का मंगलवार को 94 साल की उम्र में देहांत हो गया था।

चेन्नई के राजाजी हाल के पास के पास जमा भीड़। यहां करूणानिधि का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है

करूणानिधि के बेटे एम. के. स्टालिन और अन्य ने तमिलनाडु सरकार से मरीना बीच पर समाधि परिसर में जगह देने की मांग की थी। हालांकि राज्य सरकार ने डीएमके की मांग को खारिज कर दिया था। जिसका बाद डीएमके ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया। डीएमके प्रवक्ता और मद्रास हाईकोर्ट में पैरवी करने वाले सरवनन अन्नदुराई ने मरीना तट पर एम करूणानिधि के अंतिम संस्कार ना होने देने क पीछे आरएसएस की स्थानीय ब्राह्मण लॉबी को दोषी कहा। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट में तर्क दिया कि बीजेपी और आरएसएस मिलकर ऐसा कर रहे हैं। बताते चलें कि एम करूणानिधि जीवन भर द्रविड़ हितों की महान लड़ाई लड़ते रहे और आरएसएस के ब्राह्मणवादी वर्चस्व और हर समय (अयोध्या या रामसेतु के संदर्भ में) राम का कार्ड खेलने जैसे मुद्दों के घोर विरोधी थे।

चेन्नई में सड़क पर उतरे डीएमके समर्थक (फोटो फर्स्टपोस्ट)

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आरएसएस, बीजेपी का ‘षडयंत्र’ विफल

तमिलनाड़ु सरकार ने हाईकोर्ट में दाखिल अपने शपथपत्र में कहा कि परंपराओं के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री का अंतिम संस्कार मरीना बीच पर नहीं हो सकता है। इसमें कहा गया कि जब करूणानिधि मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए मरीना बीच पर एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन के अंतिम संस्कार की इजाजत से इनकार कर दिया था। सरकारी वकील का कहना था कि डीएमके ने अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए इस केस को फाइल किया है। वहीं डीएमके के वकील पी. विल्सन ने कहा कि अगर आप करूणानिधि के पार्थिव शरीर को अन्नादुरई के पास मरीना बीच पर जगह नहीं देते हैं तो लोगों की भावनाएं आहत होंगी। इसके साथ ही मद्रास हाईकोर्ट ने टी. रामास्वामी, के. बालू और दुरईस्‍वामी की याचिकाओं को खारिज कर दिया। इन सभी ने मरीना बीच पर करूणानिधि के समाधि स्थल का विरोध किया था। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता टी. रामास्वामी के वकील को निर्देश दिया कि वो ज्ञापन सौंप कर बताएं कि उन्हें करूणानिधि को मरीना बीच पर दफनाने में कोई आपत्ति नहीं है। जिसके बाद वकील ने कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के सामने ज्ञापन सौंपा।

कावेरी अस्पताल (चेन्नई) के बाहर जमा हुए करूणानिधि के समर्थक (फोटो पीटीआई)

वहीं समाधि स्थल के लिए जगह देने के खिलाफ याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता ट्रैफिक रामास्वामी के वकील ने कहा कि हमें उनके शरीर को दफनाने के लिए जगह देने पर कोई आपत्ति नहीं है। जिसके बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘आप अपना केस वापस ले लीजिए।’

इससे पहले समाधि स्थल को लेकर डीएमके समर्थकों के हंगामे को देखते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि वह रात को इस मामले पर सुनवाई करेगी। हालांकि रात 1 बजे तक सुनवाई चलने के बावजूद सरकार अपना पक्ष तर्क संगत ढंग से रखने में विफल रही।

दरअसल अंतिम संस्कार को लेकर विवाद तब खड़ा हो गया जब तमिलनाडु सरकार ने एम. करूणानिधि को दफनाने के लिए मरीना बीच पर जगह देने से इनकार कर दिया। जिसके बाद चेन्‍नई में शहर के बाहर डीएमके समर्थकों ने जमकर हंगामा किया।

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गौरतलब है कि द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन ने करूणानिधि के लंबे सार्वजनिक जीवन को याद करते हुए मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी को पत्र लिखा था और उनसे मरीना बीच पर दिवंगत नेता के मार्गदर्शक सी एन अन्नादुरई के समाधि परिसर में जगह देने की मांग की थी। स्टालिन ने अपने पिता के निधन से महज कुछ ही घंटे पहले इस संबंध में मुख्यमंत्री से भेंट भी की थी।

सरकार ने एक बयान जारी कर कहा है कि वह मद्रास उच्च न्यायालय में लंबित कई मामलों और कानूनी जटिलताओं के कारण मरीना बीच पर जगह देने में असमर्थ है। इसलिए सरकार राजाजी और कामराज के स्मारकों के समीप सरदार पटेल रोड पर दो एकड़ जगह देने के लिए तैयार है।

डीएमके को मिला सबका साथ

राज्य सरकार के फैसले से सत्तारूढ़ एआईएडीएमके और केंद्र दोनों ही देशभर के निशाने पर आ गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि जयललिता की तरह करूणानिधि भी तमिल लोगों की आवाज थे। उन्हें भी मरीना बीच पर स्थान दिया जाना चाहिए। तमिलनाडु के नेताओं को इस मामले में उदार होना चाहिए। वहीं रजनीकांत का कहना था कि तमिलनाडु सरकार को करूणानिधि का अंतिम संस्कार अन्ना मेमोरियल के नजदीक करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए। यह उनको सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि कलैगनार को मरीना बीच में दफनाने के लिए जगह देने से मना करना दुर्भाग्यपूर्ण था। वो इसके हकदार हैं कि उनको तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री अन्ना दुरै के बगल में दफनाया जाए। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि करूणानिधि ने तमिलनाडु के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी थी। अगर उनकी समाधि के लिए जमीन नहीं दी गई तो तमिलनाडु के लोग राज्य सरकार को कभी माफ नहीं करेंगे।

खोखली दलील

बीजेपी और आरएसएस पर सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाने के आरोप लगे जब कहा गया कि राज्य सरकार मरीना बीच पर करूणानिधि को दफनाने के लिए इसलिए जगह देने को अनिच्छुक है क्योंकि वह (करूणानिधि) वर्तमान मुख्यमंत्री नहीं थे। पूर्व मुख्यमंत्री एम. जी. रामचंद्रन और उनकी बेहद करीबी  जयललिता मरीना बीच पर ही दफन किए गए थे और वहीं उनके स्मारक बनाए गए। ये दोनों राजनीति में करूणानिधि के कट्टर विरोधी थे। अन्नादुरई का जब निधन हुआ था, तब वह मुख्यमंत्री थे। बता दें कि स्टालिन अपने पिता की मृत्यु से कुछ घंटे पहले मुख्यमंत्री से मिले थे। सरकार ने राजाजी और कामराज के स्मारकों के पास सरदार पटेल रोड पर दो एकड़ जमीन आवंटित करने की पेशकश की थी।

करूणानिधि की वैचारिकी, सियासी सफर

एम. करूणानिधि ने 1938 में तिरुवरूर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। तब वह केवल चौदह साल के थे। वह पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे और जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारे। ईवी रामसामी ‘पेरियार’ और डीएमके संस्थापक सीएन अन्नादुरई की समानाधिकारवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित करूणानिधि द्रविड़ आंदोलन के चेहरा बन गए। इस आंदोलन का मकसद दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था। ब्राह्मणवाद की मुखालफत उनका कोर मुद्दा था। फरवरी 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वीआर नेदुनचेझिएन को मात देकर करूणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने। उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एम.जी. रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी। वर्षों बाद हालांकि दोनों अलग हो गए और एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुणेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की। करूणानिधि 1957 से छह दशक तक लगातार विधायक रहे। इस सफ़र की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई तथा 2016 में तिरुवरूर सीट से जीतने तक जारी रही। सत्ता संभालने के बाद ही करूणानिधि जुलाई 1969 में द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक वह इस पद पर बने रहे।

जीवन के उतार चढ़ाव

करूणानिधि को दक्षिण भारत के शीर्ष नेताओँ में एक थे। करूणानिधि का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। वह सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर सके थे। इसके बाद भी उन्होंने करीब 100 किताबें लिखीं। जयललिता और करूणानिधि के बीच तमिलनाडु में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता काफी गहरी थी। 1989 में तमिलनाडु की विधानसभा में जयललिता के अपमान की घटना ने राज्य की सियासत में निजी रिश्तों में कड़वाहट को बड़ाने का काम किया। क्योंकि उस वक्त करूणानिधि तमिलनाडू के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद जब जयललिता मुख्यमंत्री बनीं तो इसका बदला लेने के लिए उन्होंने एक मामले में करूणानिधि को आधी रात में नींद से उठाकर जेल में डलवा दिया था। यह तस्वीर पूरे देश ने देखी कि किस कदर करूणानिधि अस्त-व्यस्त कपड़ों में पुलिस के सामने चीख पुकार कर रहे थे।

राजनीति से लेकर तमिल फिल्मों में अपना लोहा मनवाने वाले करूणानिधि ने अपने जीवन में तीन शादियां की और उनके छह बच्चे भी हैं। जवानी के दिनों में करूणानिधी के पर आदर्श इतना हावी था कि उन्होंने अपनी प्रेमिका से अपने उसूलों के कारण शादी नहीं की। जिसपर विपक्ष ने काफी विवाद मचाया था। तमिल फिल्मों के सुपरस्टार एमजी रामचंद्रन कभी करूणानिधि के दोस्त हुआ करते थे और उन्हें अपना नेता भी मानते थे। इसके कुछ समय बाद एमजी रामचंद्रन ने अपने मित्र पर भ्रष्टाचार और वंशवाद का आरोप लगाते हुए उनसे दूरी भी बना ली। लेकिन अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाले नेता थे करूणानिधि पर भ्रष्टाचार और वंशवाद के भले आरोप लगते रहे लेकिन इन आरोपों के बीच अपनी पूरी पारी खेलकर गए हैं।

(कॉपी एडिटर : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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