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दंत-नख विहीन नहीं रहा ओबीसी आयोग, मिला संवैधानिक अधिकार

पहले पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग को दंत-नख विहीन आयोग कहा जाता था। वजह किउसके पास संवैधानिक अधिकार नहीं था। अब इसे यह अधिकार प्राप्त होगा। हालांकि यह आयोग बीते एक साल से अस्तित्व में ही नहीं है। अब संवैधानिक अधिकारों से सुसज्जित आयोग के जल्द गठन की उम्मीद है। बीरेंद्र यादव की खबर :

लेकिन बाध्य नहीं होंगी राज्य सरकारें

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित 123वें संविधान संशोधन विधेयक पर 7 अगस्त 2018 को संसद की मुहर लग गयी। राज्यसभा ने इसे मतविभाजन के जरिये सर्वसम्मति से पारित कर दिया, जबकि लोकसभा इसे पिछले सप्ताह मंजूरी दे चुकी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत

विधेयक पर मतविभाजन में इसके पक्ष में 156 मत पड़े और विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा। सदन ने सरकार की ओर से लाये गये और लोकसभा द्वारा पारित संशोधन को 145 मतों से मंजूरी दी और इसके विरोध के कोई मत नहीं पड़ा। इससे पहले कुछ सदस्यों ने अपने संशोधनों को वापस ले लिया। विधेयक पर लगभग तीन घंटे तक चली चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद यह एससी-एसटी आयोगों की तर्ज पर काम करेगा। इसे वही शक्तियां और अधिकार प्राप्त होंगे, जो एससी-एसटी आयोग को प्राप्त हैं। उन्होंने कहा कि ओबीसी आयोग की कोई सिफारिश राज्य सरकारों पर बाध्यकारी नहीं होगीं और इसका दायरा केंद्र सरकार तक सीमित होगा। उन्होंने कहा कि आयोग में एक महिला सदस्य की भी नियुक्ति की जाएगी, जिसकी व्यवस्था इसकी नियमावली में की जाएगी। इसके अलावा ओबीसी सूची में नयी जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करने की अंतिम शक्ति संसद में निहित रहेगी। आयोग इस संबंध में केवल सिफारिश करेगा।

(कॉपी एडिटर : एफपी डेस्क)


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