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ओबीसी आंदोलन के नेता जयंती भाई मनानी की मौत को लेकर संदेह बरकरार

ओबीसी के उत्थान काे समर्पित जयंती भाई मनानी की अचानक हुई मौत एक रहस्य बन चुकी है। उन्हें जानने वाले सभी मानते हैं कि वे कभी भी हृदय की बीमारी से ग्रसित नहीं थे। फिर अचानक उनकी मौत कैसे हो गयी। प्रेमा नेगी की रिपोर्ट :

गुजरात के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और ओबीसी के मसीहा कहे जाने वाले जयंतीभाई मनानी का 24 अगस्त 2018 को अचानक रेल यात्रा के दौरान निधन हो गया। निधन की सहीसही वजह अभी सामने नहीं आ पायी है। उनके जानने वाले कुछ करीबी मौत की वजह हार्ट अटैक मान रहे हैं तो कुछ का कहना है कि यह मौत संदिग्ध है। हालांकि उनके परिवार ने उनकी मौत को स्वाभाविक माना है। राजकोट में 25 अगस्त 2018 को उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है।

जयंती भाई की बेटी ने बातचीत में कहा कि हमें उनकी मौत को लेकर किसी तरह का कोई शक नहीं लग रहा। फिर भी राजकोट संभाग में आने वाले बांकानेर रेलवे स्टेशन के स्टाफ और पुलिस स्टेशन की मदद से निकट के अस्पताल में उनकी डेड बाडी का पोस्टमार्टम कराया गया है। वहां की पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक हफ्ते बाद देने का आश्वासन दिया है। फांरेंसिक जांच के लिए भी नमूना भेजा जा चुका है। जब तक रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब कुछ कह पाना मुश्किल होगा कि उनकी मौत की वजह क्या रही।

हरदिल अजीज थे जयंतीभाई मनानी

कल सुबह जब जयंती भाई मनानी अपनी पत्नी के साथ राजकोट से भरूच जा रहे थे, तभी लगभग 8.00 बजे उनकी मौत हो गई। उनकी मौत को संदिग्ध न मानने का एक कारण यह भी है कि उनकी पत्नी कंचन बेन भी उनके साथ थीं।

मगर दक्षिणपंथी राजनीति के खिलाफ अपने तल्ख तेवर के लिए ख्यात सामाजिक कार्यकर्ता जयंती भाई मनानी की अचानक मौत को उनके तमाम करीबी साथी स्वाभाविक मौत मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि जिस तरह सत्ता प्रायोजित हत्याएं जैसे दाभोलकर, कलबुर्गी, गौरी लंकेश आदि की होती रही हैं, उसी तरह जयंती भाई को भी मरवा दिया गया होगा। ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि पहले से उन्हें हार्ट की कोई बीमारी नहीं थी और ट्रेन में अचानक उल्टियां होने के बाद जब वे सो गए तो फिर उठे नहीं। सोये अवस्था में ही उनकी मौत हो गई।

जयंती भाई के परिवार में उनके दो बेटे, एक बेटी और पत्नी हैं। बेटे पुश्तैनी व्यवसाय करते हैं और बेटी कम्प्यूटर इंजीनियर हैं।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

वर्ष 1990 में मंडल कमीशन लागू होने के बाद से ओबीसी के अधिकारों के लिए सक्रिय रहे जयंतीभाई मनानी ने गुजरात में बड़ी तादाद में युवा ओबीसी कार्यकर्ताओं की खेप तैयार की है। इसी की बदौलत कांग्रेस और भाजपा की दोहरी राजनीति से लोग परिचित हो पाए। जयंतीभाई ने सिर्फ ओबीसी की बात नहीं की, बल्कि पूरे बहुजन समाज की बात की।

जयंती भाई मनानी के बहुत करीबी और ओबीसी आंदोलन से जुड़े साथी अजित भाई ठाकुर कहते हैं कि उनकी मौत पर विश्वास करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। थोड़े दिन पहले ही उनसे मिला था और फोन पर तो बात होती ही रहती थी। मैं अपनी 66 साल की उम्र में कभी अपने किसी करीबी की मौत पर नहीं रोया, मगर उनकी मौत ने ऐसा तोड़ा कि आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह हमारे लिए बाबा साहेब अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, कांशीराम की तरह आदर्श, मार्गदर्शक और मसीहा थे। उन्होंने ही हमें संविधान और ओबीसी, पिछड़े, दलितों की लड़ाई में भागीदारी के लिए प्रेरित किया। सच कहूं तो मैंने 15 साल भाजपा में रहने के बाद पार्टी उनकी प्रेरणा से ही छोड़ी, क्योंकि उनके सान्निध्य में रहकर लगा भाजपाकांग्रेस जैसी पार्टियों में रहकर हम अपने समाज की लड़ाई नहीं लड़ सकतेये पार्टियां सिर्फ सवर्णों और उच्च वर्ग के लिए बनी हैं। देश में 85-90 फीसदी एससी/एसटी, मायनोरिटी हैं, मगर वे सबसे ज्यादा दलितदमित और कुचले हुए हैं, उनकी कोई सुनवाई नहीं है।

वे आगे कहते हैं कि जहां तक उनकी संदिग्ध मौत का सवाल है तो अभी तो यही कहा जा रहा है कि मौत का कारण हार्ट अटैक ही है, मगर इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों के निशाने पर थे। हार्ट अटैक की मौत से थोड़ा झटका हमें भी लगा, क्योंकि पहले कभी ऐसी किसी बीमारी के बारे में उन्होंने जिक्र नहीं किया।

यह भी पढ़ें – जयंतीभाई मनानी : आजीवन लड़ते रहे सामाजिक न्याय की लड़ाई

समाज को जोड़ने, लोगों को जगाने का काम जयंती भाई मनानी पूरी ताकत के साथ कर रहे थे। जयंती भाई कहते थे हमारे वोट के अधिकार के लिए पोलिंग बूथ पर जो मतदानकेंद्र लिखा होता है, वह गलत है। एक वोट सरकार की सल्तनत बदल देता है। यह मत का दान नहीं बल्कि हमारा मताधिकार है जो हमें संविधान से मिला है।

जयंती भाई का पूरा जीवन समाज को समर्पित था। असल मायनों में लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी पत्रकारिता का दायित्व भी वह बखूबी निभा रहे थे। उनकी अब तक करीब 15 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जोकि ओबीसी आंदोलन को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं। इन दिनों एक हिंदी किताब का अंतिम ड्राफ्ट तैयार कर रहे थे, वह भी ओबीसी राजनीति को केंद्र में रखकर लिखी गई थी। ओबीसी साप्ताहिक कहानीमें वो पिछले 18 साल से लगातार लिख रहे थे। उनका लेखन दमितों की आवाज ही होता था। उन्होंने एक किताब आरएसएस पर भी लिखी थी आरएसएस राष्ट्रवादी या जातिवादीजिसमें ब्राह्मण सरसंघचालक का विश्लेषण उन्होंने किया था।

ओबीसी समर्थन समिति और ओएसएसओबीसी एससी एसटी और अन्य एकाध संगठन से जुड़े जयंती भाई पिछड़े समाज को आवाज दे रहे थे कि देश में हम 85-90 फीसदी हैं जिन्हें देश के शीर्ष सत्ता में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। वो देश में शिक्षण व्यवस्था मुफ्त करने के हिमायती थे, ताकि अलगअलग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने पर यह बच्चे उस व्यवस्था का हिस्सा न बनें जो कि घूस लेदेकर तैयार हुई है। उन्हें अपने प्रोफेशन से प्यारलगाव हो और वो अपना 100 प्रतिशत उसमें दे पाएं।

कल उनके निधन का दिन इसलिए भी इतिहास में दर्ज हो गया, क्योंकि यही दिन बी.पी. मंडल का जन्मदिवस भी था। उसके अलावा गुजरात के ख्यात कवि नर्मद जिनके नाम पर साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी का नाम पड़ा है, उनका भी जन्मदिन था। कवि नर्मद ने भी जयंती भाई की तरह ही समाज के बहुजन को जगाने के लिए कविताएं लिखी थीं।

उनके साथ सामाजिक आंदोलनों में पिछले लंबे समय से जुड़े और ओबीसी समर्थन समिति में संगठन मंत्री देवेंद्रनाथ पटेल कहते हैं कि जयंती भाई गुजरात में यंग जनरेशन के लिए मार्गदर्शक थे। वो हमारे मित्र, मेंटर, फिलॉस्फर और गाइड सभी थे। गुजरात में ओबीसी की पॉलिटिकल अवेयरनेस उन्हीं की बदौलत आई है। सोशल जनजागरण के लिए वे पिछले 3 दशकों से सक्रिय तौर पर लगे हुए थे। इस समय हमें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। ऐसे समय में उनका जाना किसी सदमे से कम नहीं है। वो चौबीसों घंटे ओबीसी के उत्थान के बारे में सोचते रहते थे और उसके लिए काम कर रहे थे। लोकतंत्र का चौथा खंभा पत्रकारिता उनके अंदर स्वभाविक रूप में मौजूद थी। हमारी नजर में वो आज की तारीख में पत्रकारिता का अपना दायित्व बखूबी निभा रहे थे। वो हमारे लिए रीयल पत्रकार थे।

अपनी पत्नी कंचन बेन के साथ जयंतीभाई मनानी

वे आगे कहते हैं कि पत्नी कंचन बेन की भूमिका उनके जीवन में वैसी ही थी जैसी कि ज्योतिबा फुले के जीवन में सावित्रीबाई की थी। सारे गुजरात में पिछड़ों की लड़ाई को उनकी मौत से बड़ा झटका लगा है। उनकी मौत पर विश्वास करना बहुत मुश्किल हो रहा है, क्योंकि वो किसी तरह की बीमारी से पीड़ित नहीं थे। एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता एकाएक हमारे बीच शून्य पैदा कर चला गया।

ओबीसी की जनसंख्या के मुताबिक उन्हें एमपी और एमएलए की कितनी टिकट मिलनी चाहिए इसे लेकर भी उन्होंने ही पिछड़ों के बीच जनजागरुकता फैलाने का काम किया और वो लोग अपनी वोट की ताकत के प्रति जागरुक हुए।

हमेशा कुछ न कुछ पढ़ने के शौकीन जयंती भाई के हाथ में हर यात्रा में कोई न कोई किताब रहती थी, हमेशा कुछ नया पढ़ते रहते थे। बहुजन समाज से एमएलए चुने गए छोटू भाई वरसावा उन्हें ओबीवी जनजागरण के उनके काम को हमेशा सहयोग देने और आगे बढ़ाने में मदद करते थे।

गुजरात में पत्रकार और उन्हें जानने वाले संदीप सिंह कहते हैं, ‘हम सभी के लिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद क्षण है। कोई भी बहुत दावे के साथ नहीं कह पा रहा है कि यह प्राकृतिक मौत है या फिर किसी षड्यंत्र के तहत उन्हें ठिकाने लगा दिया गया है। पिछले 3 दशकों से पिछड़ों की लड़ाई लड़ रहे जयंती भाई गुजरात में सामाजिक न्याय की एक दमदार आवाज माने जाते थे। आरएसएस/बीजेपी यानी दक्षिणपंथ के कट्टर आलोचक जयंती भाई हमेशा सत्ता व्यवस्था के दमन और शोषण के खिलाफ खड़े रहते थे, इसीलिए सत्ताधारियों की आंखों में गड़ते भी थे।

संदीप कहते हैं कि प्रथमदृष्टया ऐसा माना जा रहा है कि उनकी मौत दिल के दौरा पड़ने से हुई, लेकिन उनका अब तक इस तरह की किसी बीमारी से कोई वास्ता नहीं रहा है। जब वे घर से निकले तब तक ठीक-ठाक थे और यात्रा के दौरान साथ में उनकी पत्नी भी मौजूद थी। यात्रा के कुछ घण्टे बीते तो अचानक उन्हें बेचैनी के साथ उल्टी होने लगी। कुछ देर बाद जब उल्टी बन्द हुई तो वे जाकर अपनी सीट पर लेट गये और सो गये। जब उनकी पत्नी ने थोडी देर बाद जगाने की कोशिश की तो नहीं उठे और अचेत अवस्था में मृत पाये गये।

समाज के संघर्षरत संवेदनशील तबकों में जयंती भाई मनानी की अचानक रहस्यमयी हालात में मौत अब भी ढेरों सवालिया निशान खड़ा कर रही है। क्या उनकी मौत वाकई हुई है या साजिशन हत्या है? यह अभी भी एक बड़ा गंभीर सवाल है। पोस्टमार्टम और फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट आने के बाद ही इन सवालों का जवाब मिल पाएगा।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

प्रेमा नेगी

प्रेमा नेगी 'जनज्वार' की संपादक हैं। उनकी विभिन्न रिर्पोट्स व साहित्यकारों व अकादमिशयनों के उनके द्वारा लिए गये साक्षात्कार चर्चित रहे हैं

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