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ओबीसी के बाद एससी-एसटी को साधने में जुटी केंद्र सरकार

अनुसूचित जाति- जनजाति अत्याचार निवारण विधेयक 2018 के पास होने के बाद आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच की जरुरत नहीं होगी

राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित विधेयक लोक सभा में पास होने अगले ही दिन शुक्रवार को सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण कानून को पुराने स्वरुप में लाने से संबंधित विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया। इस संबंध में सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सदन में अनुसूचित जाति- जनजाति अत्याचार निवारण (संशोधन) विधेयक 2018 में रखा।

थावरचंद गहलोत

विधेयक के माध्यम से 1989 के कानून में एक नयी धारा जोड़ने का प्रावधान किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कानून के तहत किसी भी आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच की जरुरत नहीं होगी। इसके अलावा जांच अधिकारी को अपने विवेक से आरोपी को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा और उसे इसके लिए किसी से अनुमति लेने की जरुरत नहीं होगी। विधेयक में यह भी व्यवस्था की गयी है कि किसी भी न्यायालय के फैसले या आदेश के बावजूद दंड प्रक्रिया संहिता की धारा438 के प्रावधान इस कानून के तहत दर्ज मामले में लागू नहीं होंगे।

उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने गत 20 मार्च को एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून के कुछ सख्त प्रावधानों को हटा दिया था, जिसके कारण इससे जुड़े मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लग गयी थी और प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरुरी हो गयी थी। न्यायालय के फैसला का विभिन्न राजनीतिक दलों एवं संगठनों ने विरोध किया था और सरकार से कानून को पहले के स्वरूप में लाने की मांग की थी। सर्वोच्‍च न्‍यायालय के फैसले के विरोध में अप्रैल महीने में विभिन्‍न संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया था, जिसका व्‍यापक असर भी हुआ था। हाल ही रामविलास पासवान के पुत्र और लोजपा सांसद चिराग पासवान ने एक्‍ट में संशोधन की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। इसके साथ ही एससी-एसटी एक्‍ट को कमजोर करने संबंधी निर्णय देने वाले सर्वोच्‍च न्‍यायालय के जज एके गोयल को एनजीटी के अध्‍यक्ष पद से हटाने की मांग भी की थी। इसके बाद कैबिनेट ने एक्‍ट में संशोधन को मंजूरी प्रदान की थी।

 

गुरुवार को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा था कि सरकार एससी-एसटी एक्‍ट को मॉनसून सत्र में पारित करवाएगी। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा था कि इस मामले पर शीर्ष अदालत का फैसला 20 मार्च को ही आ गया था। इसके बाद 27 मार्च को 17 दलों के प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर उनसे और सरकार से अनुरोध किया था कि वह कानून को कमजोर करने वाले इस फैसले को निष्प्रभावी करने के उपाय करें। उन्‍होंने कहा कि चार महीने हो गये, सरकार ने कुछ नहीं किया। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद एससी/एसटी के लोगों पर अत्याचार बढ़ा है। ऐसे कम से कम 47 हजार अत्याचार और अन्याय की घटनाएँ हो चुकी हैं।

श्री खड़गे के उठाये गये सवाल के जवाब में गृहमंत्री ने कहा कि सरकार दलित और आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए हरसंभव कदम उठाया जाएगा। राजनाथ सिंह ने दौरान कहा कि इसी सत्र में एक्‍ट को प्रभावी बनाने के‍ लिए विधेयक लाया जाएगा। बुधवार को ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कानून के पूर्व के प्रावधानों को बहाल करने के लिए संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गयी थी।

(प्रस्तुति : बीरेंद्र यादव, कॉपी संपादन : एफपी डेस्क )


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