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पत्थलगड़ी आंदोलन दबाने को झारखंड के बीस बुद्धिजीवियों पर देशद्रोह का मुकदमा

पत्थलगड़ी आंदोलन को दबाने के लिए झारखंड सरकार ने  नया पैंतरा अपनाया है। उसने एक साथ बीस बुद्धिजीवियों पर देशद्रोह का मुकदमा किया है जो आदिवासियों के अधिकारों को लेकर सक्रिय रहे हैं। सरकार के इस कृत्य को लेकर बुद्धिजीवियों ने एकजुटता का परिचय दिया है। उनका कहना है कि क्या आदिवासियों के अधिकारों की बात करना देशद्रोह है? बता रहे हैं विशद कुमार :

सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ति तिर्की, विनोद कुमार और फादर स्टेन स्वामी सहित 20 पर देशद्रोह का मुकदम

आदिवासियों द्वारा अपने अधिकारों के लिए चलाये जा रहे पत्थलगड़ी आंदोलन से झारखंड सरकार सकते में है। पहले निर्दोष आदिवासियों को झूठे मुकदमों में फंसाने के बावजूद आंदोलन की गति धीमी न पड़ते देख उसने बुद्धिजीवियों को निशाने पर लिया है। हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ति तिर्की, विनोद कुमार और फारद स्टेन स्वामी सहित 20 लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है। हालांकि इन बुद्धिजीवियों ने बीते 30 जुलाई को एक बैठक कर सरकार के सामने अात्मसमर्पण करने के बजाय जनसंघर्ष को जारी रखने का आह्वान किया है। बैठक में सामूहिक जमानत याचिका दायर कर सरकार को पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े सवालों और आदिवसियों के अधिकारों के बारे में बताने का निर्णय लिया गया।

झारखंड सरकार द्वारा लादे गये देशद्रोह मुकदमे को लेकर बीते 30 जुलाई को रांची में बैठक करते सामाजिक कार्यकर्ता

हर दमनात्मक कार्रवाई के बाद तेज हुआ आंदोलन

बताते चलें कि झारखंड  का खूंटी जिला सुर्खियों में तब आया जब स्थानीय अखबारों में खबर आई कि पिछले 25 अगस्त 2017 को खूंटी थाना क्षेत्र के कांकी सिलादोन गांव के लोगों ने खूंटी के डीएसपी रणवीर कुमार सहित पुलिस टीम को बंधक बना लिया है। ग्रामीणों और पुलिस के बीच हल्की झड़प भी खबर आई थी। पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी थी। करीब 24 घंटे के बाद बंधक बने पुलिसकर्मियों को मुक्त कराया जा सका था।

सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ति तिर्की

दूसरी बार 21 फरवरी 2018 को खूंटी जिला सुर्खियों में तब आया जब ग्रामीणों ने जिले के कुरूंगा गांव से कुछ दूर आगे 25 पुलिसकर्मियों की टीम को घेर लिया और 4 घंटे तक बंधक बनाए रखा, क्योंकि पत्थलगड़ी को लेकर कुरूंगा गांव के ग्राम प्रधान सागर मुंडा को पुलिस गिरफ्तार कर अड़की थाना ले जा रही थी। सागर मुंडा पर पिछले साल 25 अगस्त 2017 को पुलिस को बंधक बनाने का आरोप था। इनके खिलाफ मामला भी दर्ज था। ग्राम प्रधान को हिरासत में लिये जाने की सूचना मिलने के बाद ग्रामीण गोलबंद हो गये और पुलिस कर्मियों को तब तक नहीं छोड़ा जब तक खूंटी जिले के जिला मुख्यालय से एसपी व डीसी आकर ग्राम प्रधान सागर मुंडा को छोड़ने का आदेश नहीं दिया।

आदिवासियों द्वारा चलाये जा रहे पत्थलगड़ी आंदोलन का एक दृश्य

इसके बाद सरकार की ओर से पत्थलगड़ी को लेकर कई बयान आये। सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पत्थलगड़ी को लेकर काफी आक्रामक दिखे, वे बार बार दुहराते रहे कि पत्थलगड़ी राष्ट्रद्रोही शक्तियों के इशारे पर हो रहा है, जो गैरसंवैधानिक है। जबकि पत्थलगड़ी समर्थक बार—बार कहते रहे कि पत्थलगड़ी आदिवासियों की रूढ़ी प्रथा के तहत ग्रामसभा के रूप में भारतीय संविधान में भी शामिल है।

निशाने पर बुद्धिजीवी

इसी सफाई और आरोप के बीच पिछले 26 जुलाई को खूंटी थाना के इंस्पेक्टर राजेश प्रसाद रजक ने रांची के कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओं के कई लोगों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज किया, जिसकी जानकारी अखबारों के माध्यम से लोगों को हुई, जिसकी सोशल मीडिया पर काफी आलोचना हो रही है।

सामाजिक कार्यकर्ता विनोद कुमार

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इस पर आलोका कुजूर कहती हैं कि हमलोग कभी खूंटी गए ही नहीं और हमपर मुकदमा दर्ज हो गया जिसकी जानकारी हमें अखबारों के माध्यम से मिली।

बता दें कि एफआईआर में सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी, कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो सहित पत्रकारों व एनजीओ के कई लोगों में वाल़्टर कंडुलना, थामस रूंडा, बोलेस बबीता कच़्छप, बिरसा नाग, सुकुमार सोरेन, घनश्याम बिरुली, धर्मकिशोर कुल्लू, मुक़्ति तिर्की, अजल कंडुलना, विकास कोड़ा, विनोद कुमार, आलोका कुजूर, विनोद केरकेट़टा, सुमित केरकेट़टा, ए बिरुआ, राकेश रोशन किड़ो, सामु टुडू आदि के नाम शामिल है, जिससे राज्य का बुद्विजीवी वर्ग हतप्रभ है।

सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी

दर्ज मामला खूंटी इलाके में पत्थलगड़ी किये जाने से संबंधित है। फादर स्टेन स्वामी व अन्य पर एफआईआर में पुलिस ने आरोप लगाया है कि वे लोगों को धोखे में रख कर देश की एकता व अखंडता को तोड़ने में लगे हुए हैं। साथ ही इन लोगों पर सोशल मीडिया का सहारा लेकर लोगों को जबरन देशविरोधी गतिविधियों में शामिल करने सहित सांप्रदायिक और जातीय माहौल खराब करने, कानून व्यवस्था में व्यवधान पहुंचाने का आरोप भी पुलिस ने लगाया है। इन सभी पर आईपीसी की धारा 121 (देश के विरुदध युदध करना या उसके लिए उकसाना) आईपीसी की धारा 121 ए (देश के विरुदध युदध की साजिश करना) आईपीसी की धारा 124 ए (देश के खिलाफ बोल कर या लिख कर विद्रोह करना) लगाई गयी है।

देश विरोधी कार्य के लिए डाला गया था ग्रामीणों पर दबाव  

पुलिस ने अपनी एफआईआर में 26 जून के घाघरा कांड का भी जिक्र किया है। कहा है कि उस दिन पत्थलगड़ी समर्थकों ने सांसद कड़िया मुंडा के अंगरक्षकों का अगवा कर लिया था। इसकी सूचना मिलने पर जब पुलिस वहां पहुंची, तो ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया। सभी गुलैल, तीर कमान से लैस थे। पुलिस ने इसे नाजायज मजमा करार दिया। एफआईआर के अनुसार पुलिस जब अंगरक्षकों को छुड़ाने के लिए उनसे वार्ता करने के लिए जा रही थी, तो पुलिस पर हमला कर दिया गया। बाद में पुलिस ने जांच की तो पता चला कि कुछ लोग ग्रामीणों को भड़का रहे हैं। ग्रामीणों पर देश विरोधी कार्य के लिए दबाव डाला जा रहा है।

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इन पर खूंटी पुलिस ने लोगों को धोखे में रख देश की एकता और अखंडता खंडित करने में शामिल होने का आरोप लगाया है। सभी 20 नामजद आरोपितों पर सोशल मीडिया से राष्ट्रविरोधी गतिविधि में जबरन लोगों को शामिल करने, सांप्रदायिक और जातीय माहौल बिगाड़ने और विधि व्यवस्था की समस्या उत्पन्न करने का भी आरोप लगाया गया है। आरोपितों में कुछ लोग एनजीओ से भी जुड़े हैं।

फेसबुक पोस्ट से ग्रामीणों को भड़काया  

प्राथमिकी में कहा गया है कि पुलिस को पता चला कि कुछ लोग ”आदिवासी महासभा” एवं ”एससी भारत परिवार” के नाम पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। सोशल मीडिया और फेसबुक को इसका माध्यम बनाया गया है। इसके सहारे संविधान की गलत जानकारी दी जा रही है। साथ ही जातीय और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ा जा रहा। जब इसकी जांच की गई तो इसे सही पाया गया। आरोपितों के फेसबुक पोस्ट का स्क्रीन शॉट भी निकाला गया है।

रघुवर सरकार की नीयत

उल्लेखनीय है कि 16 फरवरी 2017 राज्य की राजधानी रांची में ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट मोमेंटम झारखंड का आयोजन हुआ था जिसमें केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली सहित केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू, नितिन गडकरी, पीयूष गोयल, स्मृति ईरानी एवं देश -दुनिया से कई बड़े उद्योगपति शरीक हुए थे। कार्यक्रम में तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी राजबाला वर्मा ने अपने भाषण में झारखंड की संभावनाओं पर चर्चा करते हुये कहा था कि ”इज ऑफ डूइंग बिजनेस में झारखंड टॉप पर है तो लेबर रिफॉर्म्स में भी झारखंड नंबर एक पर है और इंवेस्टमेंट के लिए जमीन सबसे अहम होती है, अत: राज्य सरकार ने लैंड बैंक बनाया है, जहां आज निवेश के लिए 2.1 मिलियन एकड़ जमीन उपलब्ध है।”

स्टेन स्वामी ने सरकार से पूछे 5 सवाल

स्टेन स्वामी ने कहा है कि वे सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने सरकार से 5 सवाल किए हैं। स्टेन स्वामी का कहना है कि अगर सरकार इन सवालों का सही-सही जवाब दे तो वे अपने ऊपर लगे आरोपों को मान लेंगे।

पहला सवाल- जनजातीय क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची लागू क्यों नहीं ? सरकार जनजातीय क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची लागू क्यों नहीं कर रही है। संविधान का अनुच्छेद 244 (1) कहती है कि जनजातीय परामर्शदातृ परिषद में सिर्फ आदिवासी समुदाय के लोग ही होंगे। क्या झारखंड में इस मुद्दे पर संविधान का उल्लंघन नहीं हो रहा ?

दूसरा सवाल- पेसा एक्ट, 1996 का उल्लंघन क्यों ? पेसा कानून आदिवासी समुदाय की प्रथागत, धार्मिक एवं परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर जोर देता है। कानून की धारा 4 अ एवं 4 द निर्देश देती है कि किसी राज्य की पंचायत से संबंधित कोई विधि, उनके प्रथागत कानून, सामाजिक एवं धार्मिक रीतियों तथा सामुदायिक संसाधनों के परंपरागत प्रबंध व्यवहारों के अनुरूप होगी। प्रत्येक ग्राम सभा लोगों की परंपराओं एवं प्रथाओं के संरक्षण, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों एवं विवादों को प्रथागत ढंग से निपटाने में सक्षम होंगी। क्या सरकार ने झारखंड में पेसा कानून की आत्मा को नहीं मारा ? नये पंचायत प्रतिनिधि पेसा कानून के तहत बने हैं?

तीसरा सवाल- सरकार सुप्रीम कोर्ट के समता जजमेंट 1997 पर खामोश क्यों ? यह न्यायादेश आंध्र प्रदेश से संबंधित है। जुलाई 1997 में आए फैसले के तहत कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि आदिवासी की जमीन को लीज पर देने अथवा अधिग्रहण के बाद संबंधित कंपनी को होने वाले कुल लाभ का 20 फीसदी हिस्सा पर्यावरण संतुलन और क्षेत्रीय विकास पर खर्च करने की बाध्यता होगी, वहीं विस्थापितों के बेहतर पुनर्वास की जवाबदेही सरकार की होगी। सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन क्यों कर रही है ?

चौथा सवाल- वनाधिकार कानून 2006 को अधूरे मन से लागू क्यों कर रही है सरकार? कानून के अनुसार 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व वन भूमि पर काबिज अनुसूचित जनजाति के सभी समुदायों को वनों में रहने और आजीविका का अधिकार मिला है। क्या झारखंड सरकार ने ग्राम सभा को बाइपास कर उद्योगपतियों को जमीन नहीं मुहैया करवाई ? जबकि 2006 से 2011 तक देश की अदालतों में जमीन के मालिकाना हक से जुड़े 30 लाख मामले आए। इनमें से 11 लाख मामलों को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया जबकि 15 लाख मामले खारिज कर दिए गये। पांच लाख मामले पेंडिंग हैं।

पांचवां सवाल- सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने 2000 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट (सिविलअपील संख्या 4549/ 2000) में जस्टिस आर एम लोढ़ा की अगुवाई में तीन सदस्यीय पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि जमीन मालिक ही जमीन में पाए जाने वाले खनिजों का मालिक होगा। क्या झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अक्षरशः पालन कर रही है ? अगर हां, तो फिर सरकार खनिजों की निलामी कर कंपनियों को कैसे खनन का अधिकार दे सकती है?

इसके साथ ही स्टेन स्वामी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी प्रतिबंधित संगठन का मेंबर होना आपको क्रिमिनल साबित नहीं कर देता। हजारो लोग नक्सली समर्थक होने के आरोप में जेल में बंद हैं। उनकी जमानत कराने वाला कोई नहीं है। क्या ऐसे लोगों के लिए आवाज उठाना देशद्रोह है? स्टेन स्वामी ने अपने जारी पत्र में  लिखा है कि झारखंड सरकार के भूमि संशोधन बिल का तमाम विपक्षी दल भी विरोध कर रहे हैं। वे इस संशोधन को आदिवासी और मूलवासी समाज के लिए घातक मानते हैं। क्या इस कानून का विरोध करना उनको देशद्रोही साबित करता है? अगर हां, वे वे देशद्रोही हैं।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

विशद कुमार

विशद कुमार साहित्यिक विधाओं सहित चित्रकला और फोटोग्राफी में हस्तक्षेप एवं आवाज, प्रभात खबर, बिहार आब्जर्बर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, सीनियर इंडिया, इतवार समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग की तथा अमर उजाला, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स आदि के लिए लेख लिखे। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं

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