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पत्थलगड़ी, गैंगरेप और देशद्रोह के मुकदमे पर क्या कहती है फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट?

झारखंड पुलिस पर फर्जी मुकदमा करने और निर्दोष आदिवासियों को फंसाने का आरोप लग रहा है। पुलिस का कहना है कि उसके पास पक्के सबूत हैं। लेकिन जमीनी मुआयना करने गयी दस सदस्यीय टीम ने पुलिस के दावों को खारिज किया है। बता रहे हैं विशद कुमार :

हाल के दिनों में झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर एक के बाद एक कई घटनायें घटित हुईं। ये अलग-अलग घटनाएं एक ही श्रृंखला का हिस्सा हैं। मसलन रांची के बगल खूंटी में गैंग रेप की घटना, घाघरा और आसपास के गांवों में प्रशासन द्वारा दमनात्मक कार्रवाई, बेतला टाईगर रिजर्व में सरकार द्वारा आदिवासियों का विस्थापन और बीस बुद्धिजीवियों पर राजद्रोह का मुकदमा। इन सभी मामलों को लेकर 17-19 अगस्त, 2018 के बीच डब्लूएसएस और सीडीआरओ की संयुक्त दस सदस्यीय टीम ने जमीनी स्तर पर जांच की। अपनी रिपोर्ट में यह टीम सरकार और स्थानीय पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा करती है। वहीं खूंटी के एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट को खारिज करते हैं और कहते हैं कि पुलिस किसी भी निर्दोष को नहीं फंसा रही है।  

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों झारखण्ड में फेसबुक पर पोस्ट करने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी सहित 20 लोगों पर देश द्रोह का मामला दर्ज किया गया। इस मामले को लेकर देश भर के सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगों ने झारखण्ड सरकार की आलोचना की और इसे सरकार का तानाशाही कदम करार दिया।

बता दें कि आदिवासी परंपरा की रूढ़ी प्रथा पत्थलगड़ी को लेकर चर्चे में रहा झारखंड का खूंटी जिला बीते 19 जून 2018 को सुर्खियों में पुन: तब आ गया, जब जिले के कोचांग गांव के एक मिशनरी स्कूल से कथित एक नाट्य टीम की लड़कियों को उठा लिया गया और पांच घंटे के बाद उन्हें वापस स्कूल पर छोड़ दिया गया। बाद में पता चला कि उनके साथ दुष्कर्म हुआ है। घटना के दूसरे दिन भी पुलिस पीड़िताओं नहीं खोज पाई। मगर 21 जून 2018 को पुलिस को सफलता मिली । पुलिस पीड़िताओं को पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई और तीन हफ्ते तक पूछताछ करती रही।  पीड़िता पक्ष द्वारा तीन सप्ताह तक पुलिसिया पूछताछ भी असामान्य है।

खूंटी में पत्थलगड़ी आंदोलन को दबाने पहुंची पुलिस और उनका विरोध करते आदिवासी

चूंकि मामला सामूहिक बलात्कार से संबंधित था, इसलिए पुलिस के इस गैरकानूनी कदम का किसी ने खुलकर विरोध नहीं किया। फिर भी कुछ लोगों द्वारा मामले पर जब पुलिस के इस गैरकानूनी कदम पर सवाल उठाए गए तो कहा गया कि पीड़िताओं की सुरक्षा के तहत उन्हें सुरक्षित जगह रखा गया है। मजे की बात तो यह है कि पुलिस की सुरक्षा कवच इतना कठोर रहा कि पीड़िताओं को उनके परिवार वालों से भी मिलने की इजाजत नहीं थी।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

इस सवाल का दूसरा पहलू यह रहा है कि जिस एनजीओ द्वारा पीड़िताओं को स्कूल पर मंचन के लिए लाया गया था, उस एनजीओ के नाम का अभी तक पता नहीं चल पाया है और न ही उस एनजीओ के अगुआ संजय शर्मा का, जो उन लड़कियों को नाटक के लिए ले गया था। दूसरी तरफ इस घटना के बहाने पत्थलगड़ी समर्थकों को बड़ी आसानी से खामोश कर दिया गया। जिसने भी थोड़ी सुगबुगाहट दिखाई उसपर फर्जी मुकदमे दायर करके उनकी भी नकेल कस दी गई। इन तमाम मामलों पर पिछले 17 अगस्त से लेकर 19 अगस्त 2018 तक फैक्ट फाइंडिंग की टीम ने क्षेत्र में जाकर गांववालों से मिलकर स्थिति का जायजा लिया।

इन मामलों को लेकर फैक्ट फाइंडिंग टीम ने की जांच

  1. खूंटी गैंग रेप
  2. घाघरा और आसपास के गांवों में प्रशासन द्वारा दमनात्मक कार्रवाई
  3. बेतला टाईगर रिजर्व में सरकार द्वारा आदिवासियों का विस्थापन
  4. बीस विभिन्न बुद्धिजीवियों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा

पुलिस नहीं जानती है कि खूंटी गैंगरेप की सूचना कैसे मिली

टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि  20 जून 2018 को पुलिस को गैंग रेप की घटना की जानकारी मिली, लेकिन एफआईआर या मीडिया में चल रहे खबरों के मुताबिक यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें घटना की जानकारी कहां से मिली। फैक्ट फाइंडिंग की टीम द्वारा पुलिस अधिकारी से पूछताछ करने पर यह पता चला कि महिला थाना को घटना की जानकारी एसपी आॅफिस, खूंटी से मिली थी। एसपी से इसके बारे में पूछने पर उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। जबकि रिपोर्ट में सामने आया है कि 20 जून 2018 की रात से ही पुलिस ने पीड़िताओं से संपर्क साधने की कोशिश की, परन्तु वे 21 जून को पीड़िताओं तक पहुंच पाए।

आदिवासियों से पूछताछ करती फैक्ट फाइंडिंग टीम

टीम ने कहा है कि गैंगरेप से जूझ रही पांचों महिलाओं को पुलिस द्वारा उनकी रक्षा करने के नाम पर, गैर कानूनी रुप से पुलिस की हिरासत में काफी समय तक (तीन हफ्ते तक) रखा गया। पुलिस की हिरासत में 3 हफ्ते तक उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा था। केवल राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम उनसे मिल पाई। यहां तक कि एक पीड़िता के परिजनों के अनुसार उनको भी पीड़िता से घटना के दो-तीन दिन बाद केवल थाने में पुलिस वालों की मौजूदगी में पांच-दस मिनट के लिए मिलने दिया गया। प्रशासन की इस कार्रवाई को एसपी ने दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए सही बताया है। महिलाओं को मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की बात प्रशासन द्वारा की गई थी, परन्तु परिवार और एसपी से बात करने पर पता चला कि पीड़िताओं को अभी तक केवल एक-एक लाख रुपए दिए गए हैं।

गौरतलब है कि फादर आलफान्स पर एफआईआर में षडयंत्र करने, जबदस्ती रोककर रखने और गैंगरेप की जैसी गंभीर धाराएं लगाई गई हैं। फादर के बारे में एफआईआर में यह आरोप भी लगाया गया है कि उन्होंने नन को रोक लिया जबकि बाकी लड़कियों को जानबूझकर मोटर साइकिल पर सवार चार लोगों के साथ जंगल में जाने दिया।

परन्तु फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपने सूत्रों के हवाले से कहा है कि फादर खुद उन परिस्थितियों में डरे हुए थे। टीम का कहना है कि मामले में बिना ठोस आधार के गंभीर धाराएं लगाई गई हैं। वहीं इस मामले में एनजीओ के अगुआ संजय शर्मा का कोई पता नहीं चला है, कि वह कहां है। मामले में घटना के दिन महिलाओं के साथ गई दोनों सिस्टर का भी कोई पता नहीं है। वह भी काफी डरी हुई हैं और किसी से बात नहीं कर रही हैं ।

घाघरा और आसपास के गांवों में प्रशासन द्वारा दमनात्मक कार्रवाई

26 जून 2018 को घाघरा में पुलिस के जवानों ने यह कहकर अंदर घुसने की कोशिश की कि वहां रेप के मामले के आरोपी पत्थलगड़ी में शामिल होने वाले हैं। जबकि घाघरा गांव में पत्थलगड़ी को लेकर ग्राम सभा हो रही थी जहां आसपास के गांव के लोग आए थे। वहां पुलिस और गांव वालों के बीच झड़प हुई जिसके कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हो गए। जबकि कई महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुई है। घाघरा में भी पुलिस ने करीब दो हफ्तों तक कैम्प किया था और आज भी पुलिस की गश्त उस इलाके में जारी है। साथ ही कोचांग में अर्धसैनिक बलों के पांच कैम्प लगाए गए थे, जिसमें से तीन कैम्प अभी भी वहां मौजूद हैं।

आदिवासी इलाकों में गश्त करती पुलिस

फैक्ट फाइंडिंग टीम का कहना है कि कोचांग में गैंग रेप की घटना के बाद, फिलहाल कैम्प कोचांग के स्कूल में लगा है जिसके कारण गांव के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। कैम्प लगाने के लिए गांव के लोगों के ऊपर जमीन देने का दबाव बनाया जा रहा है, जबकि छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट के अंर्तगत गैर आदिवासियों को जमीन नहीं दी जा सकती। टीम ने पाया कि गांव वालों को धमकाया जा रहा है कि कैम्प के लिए जमीन नहीं देने पर उनपर मुकदमा कर दिया जाएगा। कोचांग और आस-पास के इलाकों में ग्राम प्रधान और गांववालों पर राजद्रोह और अन्य धाराओं के अंतर्गत कई एफआईआर दर्ज किये गये हैं। परन्तु आज तक उनके खिलाफ वारंट नहीं निकला है। इन सभी घटनाक्रमों के कारण पूरे इलाके में डर का माहौल बना हुआ  है। पुलिस लोगों पर फर्जी मुकदमा करके उन्हें खामोश रहने पर मजबूर कर रही है।

अपनी रिपोर्ट में टीम ने कहा है कि घाघरा गांव में पत्थलगड़ी को लेकर ग्राम सभा हो रही थी। जहां आसपास के गांव के लोग आए थे। वहां पुलिस यह कहकर पहुंच गई कि कोचांग में पांच महिलाओं के साथ हुए गैंगरेप के मामले में शामिल अपराधी वहां आए हुए हैं, और गांव वालों के ऊपर लाठी चार्ज किया। आंसू गैस छोडे गए और फायरिंग की गई। उस क्रम में एक व्यक्ति बिरसा मुंडा की मौत लाठी से मारे जाने के कारण हो गई जिसकी पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में की गई है। इस मामले में बिरसा मुंडा के परिजनों को उनकी मौत के तीन दिन बाद थाने के दो-तीन चक्कर लगाने के बाद उनका शरीर परिजनों को सौंपा गया। इस मामले में पुलिस ने 302 के तहत मामला दर्ज कर दिया। इसके अलावा घाघरा के लोगों के ऊपर राजद्रोह के दो मुकदमे दर्ज किये गये हैं।

टीम के मुताबिक घाघरा में उस दौरान एक महिला के साथ रेप होने की पुष्टि की गई है। जबकि, बाकी महिलाओं के साथ भी यौन हिंसा होने की बात बताई गई है। इसके साथ ही, गांव में लोगों के घरों में घुस कर अर्धसैनिक बलों द्वारा मार-पीट, तोड़-फोड़ और लूट-पाट की गई थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चर्च में अर्धसैनिक बलों ने घुसकर पेशाब किया और नुकसान पहुंचाया।

बेतला टाइगर रिजर्व : बिना ग्रामसभा की सहमति के जमीन पर कब्जा

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने लातेहार जिले के गारू प्रखंड के रूध पंचायत के विजयपुर गांव में जांच के लिए गई। वहां टीम 4 गांवों विजयपुर, पांडरा, गुटवा और गोपकर के लोगों से मिली।

सवालों के कटघरे में सरकार : झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबरदास

उल्लेखनीय है कि 21 फरवरी, 2018 को वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एक गजट निकाला गया जिसके अनुसार बेतला टाईगर रिजर्व का कोर एरिया बढ़ा कर इसमें 398 गांवों को शामिल किया गया है। फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार वन प्रमण्डल पदाधिकारी ने इन गांवों के इको डेवेलपमेंट कमिटी को 27 अप्रैल 2018 को एक नोटिस जारी किया कि वे इन गांवों के विस्थापन के लिए सहमति दे दें। इको डेवेलपमेंट कमिटी में वन विभाग के लोग भी होते हैं, जिसके कारण विजयपुर की ग्रामसभा में यह तय किया गया कि इको विकास समिति को सहमति देने का कोई हक नहीं है। वन अधिकार कानून के अर्तगत ग्रामसभा को ही सहमति देने या नहीं देने का अधिकार है। कई गांवों ने विस्थापन के लिए सहमति देने से इंकार कर दिया है। 80 गांव वालों पर वन विभाग द्वारा वन उपज जमा करने के लिए फर्जी मामले डाले जा रहे है। वन अधिकार कानून के अंर्तगत ग्रामसभा को वन उपज पर मालिकाना हक है। बैठक में उपस्थित 4 गांव वालों पर विस्थापन के लिए सहमति देने के लिए प्रशासन द्वारा काफी दबाव बनाया गया है।

फेसबुक के आधार पर बुद्धिजीवियों पर राजद्रोह का मुकदमा

झारखंड के खूंटी में 20 सामाजिक कार्यकताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है, जिसमें राजद्रोह, देश से जंग लडने, षडयंत्र करने जैसे संगीन आपराधिक धाराएं लगाई गई हैं। एफआईआर में यह धाराएं फेसबुक पोस्ट के आधार पर लगाई गई हैं। इसमें कई के ऊपर ये धाराएं केवल फेसबुक पोस्ट को पसंद करने के लिए डाली गई है। इस मामले में अभी तक अभियुक्तों के खिलाफ वारंट नहीं निकला है। जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ है, वे सभी बुद्धिजीवी हैं और गरीब आदिवासियों और हाशिये पर रह रहे समाज के लोगों के सवालों को लेकर लिखते रहे हैं।

फैक्ट फाइंडिंग टीम की मांगें

घाघरा में महिलाओं के ऊपर अर्धसैनिक बलों और पुलिस द्वारा किए गए यौन हिंसा और पत्थलगड़ी आंदोलन को दबाने की प्रशासन की कोशिश आदि की स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच करायी जाय।

खूंटी जिले में कोचांग व अन्य जगहों पर जहां अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है, वहां से उन्हें हठाया जाय।

कोचांग के स्कूल से अर्धसैनिक बलों का कैम्प हटाया जाय और वहां के गांव वालों पर कैम्प बनाने के लिए गांव की जमीन देने की गैरकानूनी मांग पर रोक लगाई जाय।

बेतला टाइगर रिजर्व में सभी 398 गांवों के जबरन विस्थापन करने की प्रशासन की नीति और उनकी प्रशासनिक कोशिशों को रोका जाए।

पांचवीं अनुसूची में शामिल इलाकों में जबरन विस्थाापन, पुनः स्थापन, भूमि अधिग्रहण को रोका जाय और वन अधिकार कानून, पेसा, छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट और आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों को लागू किया जाय।

झारखण्ड के 20 सामाजिक कार्यकताओं पर लगाए गए राजद्रोह के मुकदमे वापस लिये जायें। साथ ही, गांव वालों और ग्राम प्रधानों पर लगाए गए राजद्रोह और अन्य मुकदमे भी वापस लिये जायें।

क्या कहती है झारखंड पुलिस

फारवर्ड प्रेस ने फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट के आलोक में खूंटी के पुलिस अधीक्षक अश्विनी कुमार सिन्हा से बातचीत की। उन्होंने बताया कि खूंटी गैंगरेप मामले में सात अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट अदालत में दाखिल कर दिया गया है। चूंकि अब यह मामला अदालत में विचाराधीन है, इसलिए वे इस मामले में कुछ नहीं कह सकते। वहीं बीस बुद्धिजीवियों पर राजद्रोह के मामले में फैक्ट फाइंडिंग टीम द्वारा उठाये गये सवालों पर एसपी ने कहा कि मामले की जांच चल रही है। हम पूरे सबूत के साथ इस मामले में कोर्ट को अवगत करायेंगे और चार्जशीट दाखिल करेंगे। उन्होंने फैक्ट फाइंडिंग टीम के आरोपों को खारिज किया।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

विशद कुमार

विशद कुमार साहित्यिक विधाओं सहित चित्रकला और फोटोग्राफी में हस्तक्षेप एवं आवाज, प्रभात खबर, बिहार आब्जर्बर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, सीनियर इंडिया, इतवार समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग की तथा अमर उजाला, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स आदि के लिए लेख लिखे। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं

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