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पिछडा आयोग को संवैधानिक बनाते हुए लोस सदस्यों ने क्या-क्या कहा?

लोकसभा ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए गठित राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने से जुड़े संविधान के 123वें संशोधन विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी है। विधेयक पारित कराने के लिए हुए मत विभाजन में 406 मत पड़े, जबकि विरोध में कोई भी मत नहीं पड़ा

 संविधान का 123वां संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित

लोकसभा ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए गठित राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने से जुड़े संविधान के 123वें संशोधन विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी है। विधेयक पारित कराने के लिए हुए मत विभाजन में 406 मत पड़े, जबकि विरोध में कोई भी मत नहीं पड़ा। इस प्रकार यह विधेयक सर्वसम्‍मति से पारित हो गया। विधेयक को अब राज्‍यसभा की मंजूरी के लिए उच्‍च सदन में भेजा जाएगा।

लोकसभा ने पिछले साल ही इस विधेयक को पारित कर राज्‍य सभा में भेजा था, लेकिन राज्‍य सभा ने कुछ संशोधनों के साथ इसे लोकसभा को वापस भेज दिया था। विधेयक में किये गये नये संशोधनों के कारण इसे फिर राज्‍य सभा में भेजा जाएगा और उसकी मंजूरी ली जाएगी। राज्‍यसभा की मंजूरी के बाद विधेयक को राष्‍ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्‍ट्रपति की स्वीकृति के बाद राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल जायेगा।

थावरचंद गहलोत

उल्‍लेखनीय है कि पिछली बार इस विधयेक को राज्‍यसभा ने कुछ संशोधनों के साथ लोकसभा को वापस कर दिया था। इस विधेयक पर लोकसभा में करीब चार घंटे तक चली बहस के बाद सदन ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत द्वारा लाये गये संशोधनों को मंजूरी दे दी।  संविधान संशोधन विधेयक पर सरकार का पक्ष रखते हुए मंत्री श्री गहलोत ने कहा कि राज्यसभा ने विधेयक के उद्देश्य को परिभाषित करने वाले खंड तीन को विलोपित करने का संशोधन पारित किया था, लेकिन सरकार ने खंड तीन को पुन: नये खंड के रूप में जोड़ दिया है। खंड तीन के विलोपन से विधेयक का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आयोग में महिला सदस्य की नियुक्ति की अनिवार्यता नियमावली में जोड़ी जाएगी। विधेयक में आयोग के सदस्यों की योग्यता की शर्तें अन्य आयोगों की तर्ज पर रखी गयी हैं।

विधयेक के प्रावधान के अनुसार, आयोग परामर्शी कार्यों के अलावा पिछड़े वर्गों की सामाजिक आर्थिक प्रगति में भागीदारी की पहल करेगा।  विधेयक राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को अत्यधिक सक्षम बनाएगा। पिछड़ी जातियों को राज्यों की सूचियों में शामिल करने के काम में राष्ट्रीय आयोग की कोई भूमिका नहीं होगी। यह काम राज्य सरकारें करेंगी। केवल उन्हीं मामलों में राष्ट्रीय आयोग की भूमिका होगी, जिनमें राज्य द्वारा किसी जाति को केन्द्रीय सूची में शामिल करने की सिफारिश की जाएगी। राज्यों की सिफारिश पर भारत के महापंजीकार की रिपोर्ट ली जाएगी और उसकी स्वीकृति के बाद आयोग की स्वीकृत ली जाएगी। राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के संवैधानिक दर्जा मिलने का लाभ पूरे समाज को मिलेगा और इसका दूरगामी असर  देश के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक ढांचे पर भी पड़ेगा।

 

 

चर्चा में किसने क्‍या कहा

तृणमूल कांग्रेस के कल्‍याण बनर्जी  : राज्यसभा में पेश किये गये दो संशोधनों को लोकसभा में पारित विधेयक में जगह मिल गयी है। इसलिए वह इसका समर्थन कर रहे हैं। राज्य सरकारों के लिए परामर्श की बाध्यता समाप्त करने का स्वागत करते हुए उन्‍होंने कहा कि परामर्श हो लेकिन यह बाध्यकारी न होकर सार्थक परामर्श होना चाहिए।  उन्होंने आयोग का अध्यक्ष पिछड़े वर्ग का ही होने का पक्ष लिया।

बीजू जनता दल के भर्तृहरि मेहताब : विभिन्न जातियों को विभिन्न राज्यों में अलग-अलग वर्गों में रखा गया है। इसमें एकरूपता लाने की जरूरत है। उन्होंने उच्चारण एवं वर्तनी की त्रुटि के कारण पिछड़ी जातियों को सूचीबद्ध करने में होने वाली दिक्कतों का मामला भी उठाया और कहा कि इससे उन्हें आरक्षण की सूची से अलग किया जा रहा है।

शिवसेना के अरविंद सावंत : देश में विभिन्न पिछड़ी जातियों में आरक्षण को लेकर असंतोष को सुलझाने के लिए केन्द्र सरकार से पहल करने की अपील की और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन का हवाला देते कहा कि केन्द्र सरकार को सभी जातियों से बात करनी चाहिए। उन्होंने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को अपर्याप्त बताया। उन्होंने कहा कि बहुत सी जातियों को आरक्षण एवं अन्य लाभ नहीं मिल पा रहे हैं।

तेलंगाना राष्ट्र समिति के सदस्य पी.एन. गौड़ : ओबीसी को संसद एवं विधानसभाओं में भी आररक्षण मिलना चाहिए। ओबीसी के कल्याण के लिए बजट बढ़ाने एवं अलग से मंत्रालय के गठन की भी माँग की। उन्होंने क्रीमी लेयरकी चर्चा पर कहा कि सरकारी नौकरियों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व नौ प्रतिशत है। पहले यह प्रतिनिधित्व 27 प्रतिशत हो जाये, तब क्रीमी लेयरकी बात होनी चाहिए। उन्होंने ज्योतिबा फुले और सावित्री फुले को भारत रत्न देने की माँग की। सभी पिछड़ी जातियों के आर्थिक सशक्तीकरण पर बल दिया।

अन्नाद्रमुक के ए. अरुणमोझितिवन : तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने 69 प्रतिशत का आरक्षण देने की हिम्मत दिखायी। तमिलनाडु में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों की आबादी 79प्रतिशत है। सुश्री जयललिता आबादी के अनुपात में आरक्षण देने के पक्ष में थीं।

तेलुगू देशम पार्टी के राममोहन नायडू : देश में जाति के आधार पर जनगणना का कोई आंकड़ा सामने नहीं आया है, इसलिए पिछड़ा वर्ग की आबादी कितनी है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इस वर्ग की जो आबादी है, उसके लोगों को उसी अनुपात में आरक्षण मिलना चाहिए। पिछड़ा वर्ग मंत्रालय बने और इस मंत्रालय के लिए अलग से बजट की व्यवस्था हो।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पी करुणाकरन : पिछड़ा वर्ग के लोगों को रोजगार, शिक्षा आदि में हिस्सेदारी नहीं मिल रही है, इसलिए यह विधेयक लाया गया। उन्होंने पिछड़ा वर्ग आयोग में एक महिला सदस्य को शामिल करने की मांग की और कहा कि समिति में जागरूक व्यक्तियों को ही जगह मिलनी चाहिए।

भाजपा के नित्यांनद राय : पिछड़ा वर्ग की वकालत करने को लेकर कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठाया और कहा कि उसने विधेयक को राज्यसभा में पारित क्यों नहीं होने दिया। कांग्रेस के शासन में पिछड़ा वर्ग आयोग महज एक निष्क्रिय संस्था बनकर क्यों रह गयी थी।

कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू :  पिछड़ा वर्ग की गणना को लेकर कोई साफ आंकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार पूरे देश में इनकी संख्या 50 से 52 प्रतिशत के बीच है। अगल-अलग राज्यों में इनकी संख्या अलग अलग है और कई राज्यों में यह संख्या 40 से 45 प्रतिशत तक भी है। उन्होंने पिछड़ा वर्ग के लिए अलग मंत्रालय के गठन की भी मांग की।

भाजपा के प्रह्लादसिंह पटेल : कांग्रेस पर पिछड़ों के लिए काम नहीं करने का आरोप लगाया और कहा कि इस वर्ग के लोगों की 6833 शिकायतें मिली हैं, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। कांग्रेस ने पिछड़ों के नाम पर सिर्फ राजनीति ही की है।

समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव : जाति आधारित जनगणना का आंकड़ा लागू करने की मांग की और कहा कि उसी के अनुपात में इस जाति के लोगों को आरक्षण दिया जाना चाहिए।


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लेखक के बारे में

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फारवर्ड प्रेस, हिंदुस्‍तान, प्रभात खबर समेत कई दैनिक पत्रों में जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव इन दिनों अपना एक साप्ताहिक अखबार 'वीरेंद्र यादव न्यूज़' प्रकाशित करते हैं, जो पटना के राजनीतिक गलियारों में खासा चर्चित है

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