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प्लेगरिज्म : डिग्री ले चुके लोगों पर भी गिरेगी गाज!

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नकल कर पीएचडी या एमफिल करने वालों पर नकेल कसने की कोशिशें की है। साॅफ्टवेयर के जरिए शोधपत्रों की जांच के अलावा दोषी पाये जाने पर सजा का प्रावधान भी किया गया है। कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट :

उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध प्रबंध और शोध निबंधों में भारत सरकार और यूजीसी की प्लेगरिज्म (सामग्री को चोरी या नकल करने) रोकने की कोशिशों से नकलची प्रोफेसरों व शोधार्थियों  में भय का माहौल है। आपको बताते चलें कि हाल के ही संसद सत्र में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिसके तहत प्लेगरिज्म करने की स्थिति में शिक्षकों और शोधार्थियों के खिलाफ कड़े प्रावधान रखे गए हैं।

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जो प्राध्यापक नहीं है, उसे कैसे सजा मिलेगी?

सरकार ने कहा है कि अलग-अलग स्थितियों में प्लेगरिज्म की दोषसिद्धि की स्थिति में नौकरी से बर्खास्त किया जाएगा और शोध प्रबंध और निबंध को खारिज करने जैसे कदम उठाए जाएंगे।  कुछ स्थितियों में जिन लोग ने दूसरों की नकल कर डिग्री ले ली है, उन्हें पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा। इसके अलावा, जो लोग शिक्षण के क्षेत्र में हैं, उन्हें लगातार दो वार्षिक इन्क्रीमेंट का अधिकार नहीं दिया जाएगा और तीन साल के लिए किसी नए मास्टर्स/एमफिल/पीएचडी छात्र या स्कॉलर को सुपरवाइज़ करने की अनुमति नहीं होगी। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि  अगर चोरी करने वाला-डिग्रीधारक प्राध्यापक न हो तो उसका क्या करेंगे? उसे किस प्रकार सजा मिलेगी? क्या उसकी डिग्री रद्द करने का प्रावधान है? इन्क्रीमेंट को किस प्रकार रोका जाएगा? अगर कोई निजी क्षेत्र की यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक हो, या कोई अन्य नौकरी कर रहा हो, या कोई नौकरी न कर रहा हो, अपनी यूनवर्सिटी, कॉलेज या अन्य प्रकार के शिक्षण संस्थान चला रहा हो तो उसका इंक्रीमेंट कैसे रोकेंगे?

इस बारे में मानव संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि इसे लेकर मीडिया में अधूरी रिपोर्टिंग हुई है। सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के केवल उस हिस्से पर जोर दिया गया है, जो सजा से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा या किसी दूसरे विभाग में भी पदस्थापित यदि कोई भी व्यक्ति प्लेगरिज्म का दोषी पाया जाता है, तो  तब उसके खिलाफ कार्रवाई से पहले संबंधित (उच्च शिक्षण) संस्थान से इस बारे में अनुमोदन लिया जाएगा।

लेकिन कार्रवाई कैसे हो सकेगी? जानकारी के मुताबिक, शिक्षकों या गैर-शैक्षणिक संस्थानों में ‘नकली’ (प्लेगरिज्म से) डिग्री लेकर लाभ के पदों पर बैठे दोषियों के खिलाफ मंत्रालय कानून में मौजूद अपनी असाधारण शक्तियों (संदर्भ- भारत का राजपत्र 12: असाधारण (भाग 3- खंड 14) का उपयोग करेगा। यह कार्रवाई तभी की जाएगी जब उच्च शिक्षण संस्थानों (एचआईई) की नियंत्रण कमेटी अपना जांच कार्य पूरा करके सिफारिश भेजेगी।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर

सरकार ने यूजीसी (उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक सत्यनिष्ठा और नकल रोकथाम को प्रोत्साहन) विनियम 2018 को हाल में बीते संसद सत्र में पारित किया। यूजीसी ने इस साल मार्च में अपनी बैठक में नियमन को अपनी मंजूरी दी थी।

रेगुलेशन 2018 में सजा संबंधी प्रावधान  

लेकिन रेगुलेशन 2018 के जिस हिस्से से सवाल उठे हैं, पहले उसके प्रावधानों पर हम विस्तार से देखते हैं।

दंड, भाग (एक): नये नियम में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने साफ किया है कि स्नातकोत्तर, रिसर्च प्रोग्राम स्तर पर अध्ययन करने वाले छात्रों पर और एचईआई (उच्च शिक्षण संस्थानों) के शोधकर्ता, संकाय और कर्मचारियों पर दंड उसी स्थिति में लगाया जाएगा जब बिना संदेह के यह बात बिल्कुल साफ हो गई हो कि सबंधित शोधार्थी या छात्र ने शैक्षणिक कदाचार या गड़बड़ी की है। साथ ही उसे (दोषी को) अपील का पूरा मौका दिया गया हो और यह मौका स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से दिया गया हो।

एक-(क) : शोध-प्रबंध (थीसिस) और शोध-निबंध (डिजर्टेशन) में सामग्री की नकल (प्लेगरिज्म) को लेकर इंस्टीट्यूशनल इंटीग्रिटी एकेडमिक पैनल (संस्थागत शैक्षिक सत्यनिष्ठा पैनल/आईएआईपी) को अधिकार दिया गया है कि वह दंड का स्तर तय करेगा। अब तक जिसे लेवल एक का जु्र्माना कहा जा रहा था वह असल में लेवल- शून्य है।

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शून्य स्तर : लेवल शून्य में ‘थोड़ा-बहुत’ या दस प्रतिशत तक समानताएं मिलने की बात की गई है जिसमें किसी तरह के दंड का प्रावधान नहीं किया गया है।

प्रथम स्तर : दस प्रतिशत से चालीस प्रतिशत तक समानताएं- ऐसे छात्रों का अधिकतम छह माह की- निर्धारित अवधि के भीतर संशोधित आलेख जमा करने को कहा जाएगा।

स्तर दो : चालीस प्रतिशत से साठ प्रतिशत तक समानताएं- ऐसे छात्रों को अधिकतम एक वर्ष की अवधि  के लिए संशोधित आलेख जमा करने से वंचित किया जाएगा।

तृतीय स्तर : साठ प्रतिशत से अधिक समानताएं। अगर ऐसा मिला तो छात्र का उस कार्यक्रम के लिए पंजीकरण को रद्द कर दिया जाएगा।

यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों के नियमों के साथ नोट्स लगाकर भ्रम की स्थिति दूर करने की कोशिश की है लेकिन उससे और भी ज्यादा भ्रम पैदा हुआ।  

नोट 1 : बार-बार प्लेगरिज्म पर दंड: छात्र ने अगर दोबारा प्लेगरिज्म किया है तो उसे दंडित किया जाएगा और उस पर नए प्लेगरिज्म के लिए पिछली बार के मुकाबले एक लेवल अधिक का दंड दिया जाएगा। यदि दंड के सर्वोच्च स्तर का प्लेगरिज्म किया गया होगा तो फिर सबसे ऊंची श्रेणी का दंड ही दिया जाएगा।

नोट 2 : उस स्थिति में दंड जबकि कि डिग्री(उपाधि)/क्रेडिट पहले से ही छात्र को हासिल हो चुकी हो-जैसा भी मामला हो, उसे दिए जाने के बाद की तारीख के तुरंत पश्चात प्लेगरिज्म सिद्ध होता है उसकी (डिर्गी) उपाधि/क्रेडिट को इंस्टीट्यूशनल इंटीग्रिटी एकेडमिक पैनल (आईएआईपी) द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार उतने समय तक निलंबन में रखा जाएगा जिसे संस्थान के प्रमुख द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।

भाग (दो) :

(क) शैक्षिक तथा शोध प्रबंधों के प्रकाशनों में प्लेगरिज्म की स्थिति में दंड। लेवल शून्य- दस प्रतिशत तक समानताएं- थोड़ी बहुत समानताएं यानी दस प्रतिशत तक समानताओं की स्थिति में किसी तरह का दंड नहीं दिया जाएगा।

(ख) प्रथम स्तर: दस प्रतिशत से चालीस प्रतिशत तक समानताए मिली तो ऐसे छात्रों की पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा।

(ग) दूसरा स्तर: चालीस प्रतिशत से साठ प्रतिशत तक समानताएं मिली तो उन्हें पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा। उन्हें एक साल तक वेतन वृद्धि के अधिकार से वंचित किया जाएगा। साथ ही उन्हें दो वर्ष की अवधि के लिए किसी नई मास्टर्स डिग्री, एमफिल, पीएचडी छात्र/ स्कॉलर को सुपरवाइज करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

(घ) तृतीय स्तर: साठ प्रतिशत से अधिक समानताएं। इस स्तर पर प्लेगरिज्म करने वालों से पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा। उन्हें लगातार दो वार्षिक वेतन वृद्धि के अधिकार से वंचित किया जाएगा। इतनी नकल कराने वालों को तीन वर्ष की अवधि के लिए किसी नई मास्टर डिग्री, एमफिल, पीएचडी छात्र/ स्कॉलर का सुपरविजन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के विकासशील राज्य शोध केन्द्र के रजत जयंती समारोह में मंच पर मौजूद विद्वान

इसी प्रकार शोध प्रबंधनों की स्थिति में दंड के प्रावधानों को लेकर सरकार ने चार नोट्स लगाए हैं।

नोट 1 : दूसरी बार प्लेगरिज्म करने पर पांडुलिपि वापस लेने का दंड मिलेगा यानी पांडुलिपि वापस कर दी जाएगी साथ ही अगर प्लेगरिज्म दोबारा किया जाता है तो ऐसे छात्र पर लेवल-एक से अधिक का दंड लगाया जाएगा। अगर प्लेगरिज्म का स्तर सबसे ज्यादा है को उस पर लेवल चार का दंड लागू होगा। यदि तृतीय स्तर के दोष की पुनरावृत्ति की गई हो तो उच्चतर शिक्षा संस्थान द्वारा सेवा नियमों के अनुसार निलंबन/सेवा समाप्ति सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

नोट 2 : उस स्थिति में दंड जबकि डिग्री या उपाधि मिल चुकी हो और बाद में पता चले कि प्लेगरिज्म किया गया है तो जैसा भी मामला हो- प्लेगरिज्म साबित होता है तो उससे मिले लाभ अथवा क्रेडिट को आईएआईपी द्वारा तय की गई अवधि के लिए निलंबन में रखा जाएगा जिसे जाहिर तौर पर संबंधित संस्थान के प्रमुख को अनुमोदित करना होगा।

नोट 3 : उच्चतर शिक्षा संस्थान ऐसा तंत्र विकसित करें ताकि किसी तरह की गड़बड़ी ना हो। यह भी सुनिश्चत हो कि छात्र द्वारा तैयार प्रकाशन/थीसिस और शोध-निबंध (डिसरटेशन) को अग्रसर/प्रस्तुत करने से पहले प्लेगरिज्म का पता किया गया था।

नोट 4 : यदि उच्चतर शिक्षा संस्थान के प्रमुख के विरूद्ध किसी तरह की प्लेगरिज्म की शिकायत आती है तो उच्चतर शिक्षा संस्थान के नियंत्रण अधिकारी इस संबंध में जरूरी कार्रवाई करेंगे।

नोट 5 :  यदि संस्थागत स्तर पर विभागाध्यक्ष/प्राधिकारियों के विरूद्ध प्लेगरिज्म की कोई शिकायत हो तो इन नियमों के अनुरूप आईएआईपी द्वारा उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी जिसे सिर्फ सक्षम अधिकारी ही अनुमोदित करेगा।

नोट 6 : यदि डीएआईपी अथवा आइएआईपी किसी के सदस्य के विरूद्ध प्लेगरिज्म की कोई शिकायत हो तो ऐसा सदस्य उन बैठकों में भाग नहीं लेंगे जहां उसके मामले के संबंध में चर्चा की जा रही हो/अथवा जांच की जा रही हो।

जानकारों की राय में रेगुलेशन 2018

पीजीआई चंडीगढ़ में डॉक्टर एम. सिद्धू ने कहा कि मेडिकल साइंस में प्लेगरिज्म रोकने के लिए एक आंतरिक सिस्टम काम करता है। एथिक्स कमेटी तो पहले से ही है। असाधारण शोध को लेकर कोई बात इसलिए नहीं छिपी रह सकती है क्योंकि उनका उपयोग बहुत जल्द, कुछ ही प्रयोगों के बाद धरातल पर आ जाता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास शिक्षक डॉ. ए.के. दुबे ने कहते हैं यह कोई नई नहीं बात नहीं है। शोध कार्य में नैतिक मूल्यों का पालन सही ही है। वह बताते हैं कि यूजीसी ने 2017 में 40 फीसद पुनरावृत्ति पर कई शोध उपाधियों को रद्द कर दिया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के ही प्रोफेसर बलविंदर कहते हैं कि ईमानदारी, मेहनत और कर्तव्यनिष्ठता शोधार्थी के काम का आधार हैं, लेकिन शोध प्रविधि के लिए उच्च मानकों को रखने से पहले हमें छात्र समुदाय के लिए सुविधाओं का आधारभूत ढांचा तैयार करना होगा।

(कॉपी एडिटर : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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