h n

संवैधानिक अधिकार मिलने से सशक्त होगा पिछड़ा वर्ग अायोग

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल चुका है। उम्मीद है कि अब यह आयोग संवैधानिक अधिकारों से वंचित पिछड़े वर्ग के लोगों को न्याय दिलाएगा और उनकी आर्थिक दशा बेहतर बनाने में मदद करेगा। प्रस्तुत है राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (123वां संशोधन) विधेयक को लेकर लोकसभा में 2 अगस्त 2018 को केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत का भाषण :  

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (123वां संशोधन) विधेयक बीते  2 अगस्त 2018 को लोकसभा में पेश करने के दौरान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत का भाषण

माननीय अध्यक्ष (सुमित्रा महाजन) जी! हम संविधान के 123वें संशोधन विधेयक पर चर्चा कर रहे हैं। इस चर्चा में लगभग 32 सदस्यों ने सुझाव दिए हैं, अपने विचार रखे हैं और कुछ समस्याओं की चर्चा भी की है। माननीय अध्यक्ष जी, मैं सबसे पहले सदन को याद दिलाना चाहूंगा क‍ि जब माननीय नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने एक पहला वाक्य कहा था कि नरेन्द्र मोदी की सरकार पिछड़े और गरीब लोगों के प्रति समर्पित होगी। उन्होंने जो कहा, वह करके दिखाया। इसके एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं। इन चार वर्षों में सरकार ने हर क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं। मैं अपने विभाग से संबंधित कुछ बातों का उल्लेख करना चाहता हूं।

पिछले 38 वर्षों से लंबित रहा प्रस्ताव

ओबीसी कमीशन (राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग) को संवैधानिक दर्जा देने का विषय वर्ष 1980 के बाद से लगातार चल रहा है। कई बार कमीशन (आयोग) बने, आयोगों ने राय भी दी। बाद में सुप्रीम कोर्ट में मामला गया, सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को निर्देशित किया कि जितनी जल्दी हो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया जाए, वह जो संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो। पिछले वर्षों में यह नहीं हो पाया।

लोकसभा में विधेयक पर सरकार का पक्ष रखते केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री डॉ. थावरचंद गहलोत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने संकल्प लिया था कि उनकी सरकार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाएगी और इसे संवैधानिक दर्जा देगी। हमने वर्ष 2017 में यह बिल (विधेयक) प्रस्तुत किया और सदन ने इसे पारित किया। यहां जो विधेयक पारित हुआ था और जिन लोगों ने उसका समर्थन किया था, उन्हीं लोगों के कुछ मित्रों ने कुछ कारण बताकर असहमति व्यक्त की थी। इसलिए हम कुछ संशोधनों के साथ इसे लेकर आए हैं। हमारा दृढ़ संकल्प था ‍कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को कांस्टीट्यूशनल स्टेटस (संवैधानिक दर्जा) देंगे।

यह भी पढ़ें : घर बैठे खरीदें फारवर्ड प्रेस की किताबें

हम इस संकल्प को पूरा करने के लिए संशोधित विधेयक लेकर आये हैं। घुमंतू जाति के बड़ी संख्या में लोग हैं, जो न एससी में आते हैं, न एसटी में आते हैं और न ही ओबीसी में आते हैं। ये लोग कुछ राज्यों में एससी में आते हैं, कुछ राज्यों में एसटी में आते हैं और कुछ में ओबीसी में आते हैं। इतना ही नहीं एक ही राज्य में अलग-अलग जिलों में भी अलग-अलग जाति समूह में भी आते हैं। इसका निर्णय करने की दृष्टि से दादा इदाते (भिकुराम इदाते) की अध्यक्षता में घुमंतू आयोग बनाया गया था। घुमंतू आयोग ने तीन साल परिश्रम करके, देश भर में भ्रमण करके इन जातियों की पहचान की। इन जातियों का अनुसंधान किया और अपना प्रतिवेदन दिया। उस प्रतिवेदन को हमने राज्य सरकारों, मंत्रालय और आम लोगों की राय जानने के लिए प्रचारित किया है । जब यह जानकारी आ जाएगी, तो हम घुमंतू जाति के हित संरक्षण के लिए भी अच्छा कानून बनाने का प्रयास करेंगे।

रोहिणी आयोग की अनुशंसाओं पर सरकार करेगी अमल

इस बीच में हमने उनको एससी, एसटी और ओबीसी को जो सुविधाएं दी जाती हैं- जैसे स्कॉलरशिप आदि -देने के लिए नियम बनाया है और उसका लाभ भी उनको मिल रहा है। लम्बे समय से पिछड़े वर्ग में आने वाली जातियों का श्रेणीकरण करने के लिए आयोग बनाने की मांग उठती रही है। नरेन्द्र मोदी जी ने साहसिक निर्णय लिया और एक आयोग बनाया। दिल्ली प्रदेश के उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस रहीं रोहणी जी को उसका अध्यक्ष बनाया गया है। उन्होंने उस पर विचार-विमर्श किया है और उनका प्रतिवेदन अभी अपेक्षित है। 40 दिन की अवधि‍ और बढ़ायी गयी है।

मैं इस सदन को आश्वस्त कर सकता हूं कि उनका प्रतिवेदन आने के बाद भी हम उस पर सक्रिय कार्रवाई करेंगे। हम कोशिश करेंगे कि इनका जल्दी-से-जल्दी श्रेणीकरण किया जाए और इन वर्गों के लोगों के साथ जो अन्याय हो रहा है, वह न हो। हम उन्हें न्याय दिलाने की कोशिश करें। प्रमोशन (प्रोन्नति/पदोन्नति) में आरक्षण वाले विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया। हमने रिव्यू पिटीशन (पुनर्याचिका) लगायी और मुझे यह कहते हुए खुशी है कि सरकार के प्रयास और निवेदन को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया और प्रमोशन में आरक्षण संबंधी आदेश फिर से जारी हुए। डी.ओ.पी.टी. डिपार्टमैंट (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) ने भी प्रोन्नति में आरक्षण देने की कार्यवाही के लिए आदेश जारी कर दिया है। हमने राज्यों को भी एडवाइजरी (निर्देश) जारी की है कि राज्य भी इस विषय पर कार्यवाही करें। इसके साथ-साथ एट्रोसिटी एक्ट (अत्याचार निवारण अधिनियम ) भी बना है।

यह भी पढ़ें : आयोग को संवैधानिक अधिकार तो मिला अब पिछड़ों को न्‍यायपालिका में भी मिले आरक्षण

हमने वर्ष 1989 में अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम बनाया। उसी समय से यह मांग की जा रही थी कि यह अधिनियम सक्षम नहीं है। बहुत सारे ऐसे अपराध हैं, जो इस अधिनियम की श्रेणी में नहीं आते हैं। अपराधियों को दंड नहीं मिलता है और पीड़ित परिवार को न्याय और राहत नहीं मिलती है। नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने संकल्प लिया और अत्याचार निवारण अधिनियम को और सशक्त करने का काम किया। उस पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई और सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया और उसकी कुछ धाराओं पर अंकुश लगा। हमने पुनः याचिका लगायी, अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन है। यह अत्याचार निवारण अधिनियम, जो हमने बनाया है, वह इसी तरह जारी रहे, इसके लिए कैबिनेट (मंत्रिमंडल) ने निर्णय लिया है और उस निर्णय की जानकारी भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह जी ने आज (2 अगस्त 2018 को) सदन में हम सबको दी। बहुत सारे विषय हैं। सौहार्दपूर्ण चर्चा हुई है।

अल्पसंख्यक उच्च शिक्षण संस्थानों में भी मिले आरक्षण

इसलिए मैं ऐसा कुछ कहना नहीं चाहता हूं कि कटुता का वातावरण बने। परंतु इतना जरूर कहना चाहता हूं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय- जो केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं -पिछली सरकार ने उनको अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय घोषित करके, वहां जो एससी, एसी और ओबीसी के आरक्षण का प्रावधान था, वह समाप्त कर दिया।  यह इस सरकार ने निर्णय लिया है और हम अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर रहे हैं। हम विश्वास दिलाते हैं कि ये केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं और हम इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण दिलाने में हमको सफलता मिलेगी।

अब मैं सीधे-सीधे संविधान 123वें संशोधन विधेयक, जो ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा देने के संबंध में है, उस विषय पर आना चाहता हूं। इस पर पहले इस सदन में चर्चा हुई थी। दो संशोधन- जिनमें से एक प्रेमचन्द्रन जी का था और दूसरा संशोधन भृर्तहरि महताब साहब का था। एक संशोधन यह था कि इस आयोग में सदस्य होंगे उनमें एक महिला सदस्य भी होगी। उस संशोधन को हमने इसलिए स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि एससी कमीशन (अनुसूचित जाति आयोग) और एसटी कमीशन (अनुसूचित जनजाति आयोग), जो संवैधानिक दर्जा प्राप्त हैं, एवं अन्य आयोग हैं, उनमें भी सदस्यों के बारे में इस प्रकार का उल्लेख नहीं है कि उनमें एक महिला सदस्य होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत

हमने उस समय आश्वासन दिया था कि हम भी रूल्स (नियम) बनाएंगे, तो अनिवार्य रूप से एक महिला सदस्य होगी। कम से कम एक महिला सदस्य होगी। इस प्रकार के आश्वासन हमने दिया था। यहां पर उस आश्वासन को स्वीकार किया गया था, परंतु राज्यसभा में भी यह विषय गया तो एक संशोधन आया, जिसमें कहा कि महिला भी सदस्य होगी और एक सदस्य धर्म आधारित होगा। मैं उसका नाम यहां नहीं लेना चाहता हूं। वह गैर-संवैधानिक था, इसलिए हमने उसे स्वीकार नहीं किया। वहां खण्ड-3 को विलोपित करने की निर्णय हो गया, वोटिंग हुई और उसके बाद निर्णय हो गया। तो हम इसका वैकल्पिक प्रावधान करके आये हैं और खण्ड-3 इस विधेयक का हृदय है, जान है और उसके बिना तो इस विधेयक के पारित होने का कोई अर्थ नहीं होगा।

यह भी पढ़ें : दंत-नख विहीन नहीं रहा ओबीसी आयोग, मिला संवैधानिक अधिकार

इस खण्ड में उसके कारोबार, अधिकार, कर्तव्य और सदस्यों की संख्या का उल्लेख है। अगर कोई कानून बन जाए, उसको क्या करना है? उसके अधिकार क्या हैं? और उसके कर्तव्य क्या हैं? अगर इसी का उल्लेख न हो, तो उस कानून का कोई अर्थ नहीं होता है। उसमें कौन लोग सदस्य होंगे? कौन अध्यक्ष होंगे? इसलिए राज्यसभा ने जिस खण्ड-3 को विलोपित किया था, उसको फिर से लेकर आये हैं। खण्ड-3 में आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के अलावा, आयोग के विभाजित कार्यों का प्रावधान दर्शाया गया है। खण्ड-3 के विलोपन से विधेयक का समग्र उद्देश्य समाप्त हो जाता है। एक निरसन विधेयक भी हमने पेश किया था, जो यहां (लोकसभा में) पर तो पास हो गया था, लेकिन वहां (राज्यसभा में) उस पर चर्चा ही नहीं हो सकी थी, क्योंकि मूल विधेयक पर चर्चा के दौरान यह सब परिस्थिति बन गयी।

आयोग के गठन से दूर होंगी समस्याएं

मैं इस सभा के विचारार्थ विधेयक में वैकल्पिक खण्ड-3 लाना चाहता हूं, जिसमें राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा इसमें परामर्श किया कि आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास में उसकी भागीदारी करने का प्रावधान है। जो प्रेमचन्द्रन जी और भृर्तृहरि महताब जी ने एक संशोधन यहां दिया था, उसी आशय का संशोधन कर हमने दो जगह प्रावधानित किया है। विधेयक में जहां पहले राज्यों के मामले में राज्यपाल से परामर्श करने का प्रावधान था, वहां इस वैकल्पिक संशोधन में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा संबंधित राज्य के संबंध में रिपोर्ट पर कार्यवाही करने की प्रकिया में राज्य सरकारों को सीधा शामिल करने का भी प्रावधान किया है। अब इस सदन में जो संशोधन आए थे, उनको हमने इसमें समाहित कर लिया है। अब जो विधेयक राज्यसभा से संशोधित होकर आया है, उस पर अब किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं होगी। मैं इन दोनों विकल्पों की बात बता चुका हूं। इन दोनों संशोधनों के साथ अब यह विधेयक अत्यधिक सक्षम और संवैधानिक दायरे में आ रहा है। इसको संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद यह आयोग सशक्त होगा और इनकी समस्याओं का समाधान आयोग के माध्यम से होने लगेगा।

माननीय सदस्यों ने जो विचार-विमर्श किया है और जो सुझाव दिए हैं, मैं यह मानता हूं कि उसमें 80 प्रतिशत समस्याओं का समाधान आयोग के गठन के कारण होने लगेगा। आयोग के बिना इन समस्याओं का समाधान करना संभव नहीं था, जैसे उदाहरण के लिए कुछ मामले ऐसे आए कि साहब, इस प्रदेश में तीन जिलों में अमुक जातियां अमुक कैटेेगरी में हैं। बाकी और किसी में हैं। किसी में एससी में हैं, किसी में एसटी में हैं, किसी में ओबीसी में हैं। अनेक राज्यों के मामले में इस प्रकार की स्थिति है। अब किसी जाति को अनुसूचित जाति में जोड़ने या घटाने की एक प्रकिया है। बहुत से माननीय सदस्यों ने इस प्रकिया के बारे में जानना चाहा था। मैं जानकारी देना चाहता हूं। माननीय अध्यक्ष महोदया, अनेक माननीय सदस्यों ने अपने-अपने राज्य की समस्या बतायी है और यह कहा कि यह जाति इसमें आनी चाहिए, तो उसकी नियम-प्रक्रिया की जानकारी देना मैं आवश्यक समझता हूं।

राज्यों के पास रहेगा अधिकार

अगर किसी जाति को एससी में लेना है, तो राज्य सरकार प्रस्ताव करेगी कि यह प्रावधान है। राज्य सरकार के प्रस्ताव जब हमारे पास प्राप्त होंगे, तो हम रजिस्ट्रार जनरल अॉफ इंडिया के पास उस प्रस्ताव को उस पर राय के लिए भेजेंगे। अगर रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ओके कर देगा, सही ठहराएगा और रिकमेंड (संस्तुति/अनुशंसा) करेगा कि हां, इस जाति को अनुसूचित जाति में ले लिया जाए। फिर हम अनुसूचित जाति आयोग के पास उसको भेजेंगे और वह आयोग भी अगर हां करेगा, तो हम मंत्रिमंडल में उसको ले जाएंगे। विधेयक बनाएंगे। मंत्रिमंडल की स्वीकृति ली जाएगी। अगर मंत्रिमंडल स्वीकृति देगा, तो फिर हम संसद के समक्ष आएंगे। संसद के निर्णय से हम जाति उसमें सर्वसम्मति होगी कि नहीं, ऐसा निर्णय होगा। ठीक इसी प्रकार से एसटी के लिए भी है। अगर कोई राज्य किसी जाति को एसटी में सम्मिलित करना चाहता हो, तो ही प्रकिया है कि हमारे पास अनुशंसा के साथ प्रस्ताव भेजेंगे। हम आरजीआई को भेजेंगे। आरजीआई ओके करेगा, तो एसटी आयोग के पास भेजेंगे। अनुसूचित जाति आयोग हां करेगा, तो फिर हम विधेयक बनाएंगे और उस विधेयक को संसद में प्रस्तुत करेंगे। संसद की सहमति से उस पर निर्णय होगा। इसी प्रकार से बहुत सारे माननीय सदस्यों ने कहा कि ग्रेमेटिकल (शब्दों की अशुद्धि के कारणों से), उच्चारण के कारणों से, कॉमा-मात्रा के कारण से, उसी जाति का होने के बाद उनको उस जाति का लाभ नहीं मिलता है। उसके लिए भी यही प्रक्रिया है, राज्य सरकार उसमें संशोधन के लिए, सुधार के लिए, हमारे मंत्रालय के पास या एसटी का है, तो एसटी मंत्रालय के पास प्रस्ताव भेजेंगे और उस प्रस्ताव को हम उसी प्रक्रिया से आरजीआई के पास भेजेंगे। फिर संबंधित आयोग के पास भेजेंगे और अगर सभी से ओके रिपोर्ट मिलेगी तो हम सरकार के पास आएंगे। सरकार विधेयक तैयार करेगी, संसद में वह आएगा और उस पर निर्णय होगा।

अगर किसी राज्य में इस प्रकार की समस्या है, तो मेरा अनुरोध है कि वह राज्य सरकार के माध्यम से इस प्रकार का प्रस्ताव भिजवाएं। हम प्रक्रिया के अंतर्गत कार्यवाही करके सदन के सामने आएंगे। अभी तक ओबीसी को केंद्रीय सूची में मिलाने के लिए आयोग नहीं होने के कारण अत्यावश्यक कठिनाई हो रही है। हमारे पास अनेक राज्यों के ऐसे प्रस्ताव आने के बाद भी हम कुछ नहीं कर सकते हैं, क्योंकि अभी तक जो आयोग बना है, वह आर्टिकल 340 के आधार पर बना है। उस आयोग के पास विषय विशेष के लिए ही अधिकार होता है। जिस विषय को लेकर आयोग गठित किया जाता है, वह उस परिधि में ही विचार-विमर्श करके अपनी राय दे सकता है। परंतु यह आयोग 338 (डी) में जो बनने वाला है, उसको इस प्रकार की प्रक्रिया पर राय देने का अधिकार होगा और राज्य सरकार उस आयोग के पास सीधे भी प्रस्ताव भेज सकेगी या हमारे माध्यम से भी प्रस्ताव भेज सकेगी। आयोग को उसके अधिकार और कर्तव्यों का निर्धारण, उसकी प्रक्रिया का निर्धारण संवैधानिक आधार पर करने का अधिकार होगा। इसलिए आयोग गठित होने के बाद ही, जितनी समस्याएं बताई गई हैं, उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक समस्याओं का समाधान हो पाएगा। कल्याण बनजी साहब ने भी इस आशय के कुछ सुझाव दिए थे। मैंने उनमें से बहुत सारी बातों का जवाब दे दिया है।

स्कॉलरशिप को लेकर सरकार उदार

अनेक माननीय सदस्यों ने छात्रवृत्ति के बारे में कहा है। मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि ‍हमने छात्रवृत्ति में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की है, बल्कि हमने उसमें और बढ़ोतरी की है। हॉस्टल और स्कूल की जो पहले निर्धारित दरें थीं, हमने उसमें बढ़ोतरी की है। केवल इतना ही नहीं, हमने इनकम लिमिट भी बढ़ायी है। मैं अच्छे सौहार्दपूर्ण निर्णय में कहीं व्यवधान नहीं खड़ा करना चाहता हूं। आपके समय में ओबीसी वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति देने की इनकम लिमिट 44 हजार रुपए थी। आज की तारीख में, नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हम ने उसे ढाई लाख रुपए की है। इनकम लिमिट ढाई लाख रुपए होने के कारण छात्रों की संख्या बढ़ी है और हमने छात्रवृत्ति में भी वृद्धि की है। एससी वर्ग में 98 हजार रुपए ग्रामीण क्षेत्र वालों की इनकम लिमिटेड थी, वहीं शहरी क्षेत्र में यह एक लाख 20 हजार रुपए थी। हमने दोनों श्रेणियों में इनकम सीमा ढाई लाख रुपए की है। हमने छात्रावास और स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के लिए भी छात्रवृत्ति में वृद्धि की है। हमने छह प्रकार की छात्रवृत्ति और आर्थिक सहायता देने का निर्णय लिया है। प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति, पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति, ओवरसीज स्कॉलरशिप, जो विदेश जाकर पढ़ते हैं, अन्य छात्रवृत्तियाें के अलावा पहले से माैजूद फेलोशिप छात्रवृत्ति में भी हमने वृद्धि की है। अगर कोई उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता है, डिग्री हासिल करने की पढ़ाई करना चाहता है। उसको भी हम 30-60 लाख रुपए देते हैं। ओबीसी वालों को विदेश में जाकर पढ़ने के लिए ब्याज सब्सिडी देते हैं और एससी वर्ग वालों को पूरा पैसा देते हैं। इसके साथ ही साथ, हम शिक्षा के उन्नयन के लिए भी आवश्यक सहायता देते हैं। अगर कोई कोचिंग लेना चाहता है, तो हम फ्री कोचिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराते हैं। कोचिंग सेंटर्स वालों को, वहां जिनके पास छात्र पढ़ते हैं, उनको पैसा भी देने का काम करते हैं।

यह भी पढ़ें : चुनौती भरी हैं बहुजन साहित्य की राहें

हमने प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के माध्यम से ढाई हजार गांवों को 20-20 लाख रुपए की आवश्यक सहायता देकर, इन वर्गों के क्षेत्रों में अच्छा काम करने के लिए, इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सहायता दी है। हमने 21 राज्यों में वह देने का निर्णय लिया है। अभी हम उसमें भी वृद्धि करके 24 राज्यों में देने का काम कर रहे हैं। हमने जो ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, यह उसकी संक्षिप्त जानकारी है। फिर हम अनुसूचित जाति वर्ग, पिछड़ा वर्ग, दिव्यांग वर्ग और सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम यह चार निगम हम चलाते हैं। इन चारों वित्त विकास निगमों के माध्यम से हमने कौशल प्रशिक्षण देते हैं। हमने करीब डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को कौशल प्रशिक्षण दिया है और 12 लाख से ज्यादा लोगों को वित्त विकास निगमों के माध्यम से ऋण सुविधा उपलब्ध कराई है। कौशल प्रशिक्षण के दौरान हम मानदेय भी देते हैं और ब्याज की दर भी चार और पांच प्रतिशत तो वार्षिक है। ये निर्णय पहले भी हो सकते थे, लेकिन पहले क्यों नहीं किए गए? आंबेडकर प्रतिष्ठान माध्यम से हम अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को चिकित्सा सुविधा भी देते हैं। किडनी, कैंसर, हार्ट, ब्रेन और स्पाइनल इंजरी की बीमारी के लिए हम सुविधा भी उपलब्ध कराते हैं। अंतर्जातीय विवाह में भी हम ढाई लाख रुपए के आस-पास प्रोत्साहन राशि देते हैं। यदि मैं सभी योजनाओं का उल्लेख करना चाहूं, तो दो घंटे में भी बात पूरी नहीं होगी। चार साल की उपलब्धियां चार घंटे में बताई जा सकें, ऐसा भी प्रयास किया जा सकता है। जब उपाध्यक्ष जी आसन पर बैठे थे, तब उन्होंने भी कुछ विषयों की चर्चा की थी।

हालांकि, उस विषय से संबंधित जानकारी मैंने दे दी है। कौन-सी जाति एससी में, एसटी में लानी है, उसकी क्या प्रक्रिया है? उसकी विस्तृत जानकारी मैंने दे दी है। खड़गे साहब ने भी विषय उठाया था। मैं समझता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी से वे संतुष्ट होंगे। भृर्तृहरि महताब जी ने भी सुझाव दिए हैं। मैं उन्हें बधाई देता हूं, क्योंकि उन्हें उत्कृष्ट सांसद का पुरस्कार कल ही (1 अगस्त को) मिला है। आपने कुछ संशोधन प्रस्तुत किए हैं। मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपने जो महिला सदस्य की बात कही है, उसके लिए मैंने पहले ही बता दिया है कि एससी, एसटी आयोग में या अन्य आयोग में जो शब्दावली लिखी हुई है, वही शब्दावली इस एक्ट (धारा) में भी है और मैंने आपको पिछली बार भी आश्वस्त किया था कि जब हम नियम बनाएंगे, तो हम अनिवार्य करेंगे कि एक महिला सदस्य जरूर हो। इस प्रकार का आश्वासन पहले भी दिया था और आज भी दे रहा हूं कि जब हम नियम बनाएंगे, तो महिला को सदस्य बनाने का प्रावधान उसमें करेंगे। इसके साथ ही साथ दो संशोधन प्रेमचंद्रन जी ने और आपने प्रस्तुत किए थे और अभी भी आपने कहा था कि संशोधन हमने पहले से ही इसमें कर दिए हैं। मैं समझता हूं कि अब आपको इस विधेयक में किसी प्रकार की असहमति का कारण नहीं होगा। बहुत-से माननीय सदस्यों ने अपने-अपने सुझाव दिए हैं, मैं उन्हें आश्वस्त कर सकता हूं कि उन सुझावों पर हम नियमानुसार संवैधानिक प्रावधानों के दायरे में विचार-विमर्श करेंगे और आवश्यकतानुसार निर्णय करेंगे। महोदया, मैं अंत में निवेदन करना चाहता हूं कि संविधान में 123वें संशोधन, जो राज्यसभा द्वारा संशोधित है, उसे पारित किया जाए। (इति)

(उपरोक्त भाषण भारत सरकार की लोकसभा की वेबसाइट पर जारी अनएडिटेड सामग्री एवं उस भाषण के वीडियो के आधार पर प्रकाशित किया गया है। इस भाषण को पठनीय बनाने के लिए वाक्य विन्यास आदि में आंशिक संपादन भी किया गया है।)

(लिप्यांतरण एवं संपादन : प्रेम बरेलवी)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

थावरचंद गहलोत

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...