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शूद्रातिशू्द्रों के लिए विवाहेत्तर संबंधों के अपराध नहीं होने के मायने

धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए माननीय न्यायालय से व्यक्ति स्वातंत्रय के पक्ष में जो भावना व्यक्त की है, वह उचित है। लेकिन भारत जैसे देश में, जहां जाति आधारित भेदभाव की अनगिनत सीढ़ियां हैं, और उन्हें नैतिक साबित करने वाले धर्मग्रंथ हैं, वहां इस व्यैक्तिक-मुक्ति के मायने क्या होंगे, यह तुरंत कह पाना कठिन है

विवाहेत्तर संबंधों पर उच्चतम न्यायालय का फैसला एक बड़ी सामाजिक बहस को जन्म देगा। वस्तुत: विवाहेत्तर संबंधों की शुचिता परिवार और समाज के निर्माण के लिए सबसे आवश्यक नैतिकताओं में से एक है। इसी नींव पर सभी सामाजिक व्यवस्थाएं टिकीं हैं। लेकिन इस नैतिकता को कानून द्वारा बहाल नहीं किया जा सकता। इसलिए अपने फैसले में माननीय न्यायालय से व्यक्ति स्वातंत्रय के पक्ष में जो भावना व्यक्त की है, वह उचित है। लेकिन भारत जैसे देश में, जहां जाति आधारित भेदभाव की अनगिनत सीढ़ियां हैं, और उन्हें नैतिक साबित करने वाले धर्मग्रंथ हैं, वहां इस व्यैक्तिक-मुक्ति के मायने क्या होंगे, यह तुरंत कह पाना कठिन है। हिंदू धर्मग्रंथों ने अनुलोम और प्रतिलोम सेक्स संबंधों के लिए अलग-अलग नैतिकताएं और परिभाषाएं निर्धारित कर रखी हैं। ये परिभाषाएं शूद्र-अतिशूद्र समुदायों की विवाहित-अविवाहित महिलाओं को द्विज समुदाय की भोग्या के रूप में प्रस्तुत करती हैं। विवहेत्तर संबंधों को अब कानून की नजर में एक अपराध के रूप में तभी प्रस्तुत किया जा सकेगा, जब एक पक्ष आत्महत्या कर ले। हां, यह फैसला विवाहेत्तर संबंध के आधार पर विवाह-विच्छेद यानी तलाक की इजाजत देता है। यह सब चीजें विस्तृत व्याख्या की मांग करती हैं, लेकिन तत्काल इतना तो कहा ही जा सकता है कि भारत जैसे देश में जाति-उच्छेद के बिना इस प्रकार की कानूनी आधुनिकता लाने के प्रयास जमीनी स्तर पर अनेक विपरीत परिणामों को भी जन्म देंगे।

इस मसले पर हम आगे भी सामग्री प्रकाशित करेंगे। फिलहाल, पढ़ें कि सुप्रीम के जजमेंट की मुख्य बातें क्या हैं।
-प्रबंध संपादक

भारत में भी अब विवाहेत्तर संबंध अपराध नहीं,  सुप्रीम कोर्ट ने कहा धारा 497 असंवैधानिक

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने व्यभिचार कानून की वैधता पर गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। न्यायालय ने व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से मनमाना है और महिला की वैयक्तिकता को ठेस पहुंचाता है। उच्चतम न्यायालय में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को व्यभिचार की धारा आईपीसी 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था। पीठ के सामने मसला उठा था कि आइपीसी की धारा 497 अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा- पति पत्नी का मालिक नहीं होता है। पति-पत्नी के रिश्ते की खूबसूरती होती है मैं, तुम और हम। समानता के अधिकार के तहत पति-पत्नी को बराबर अधिकार है। महिला को समाज के हिसाब से चलने के लिए नहीं कहा जा सकता। इस फैसले के बाद अब दूसरे व्यक्ति की पत्नी के साथ विवाह के बाद यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। जब तक कोई पक्ष आत्महत्या के लिए मजबूर न हो जाए।

क्या थी धारा 497

इस धारा के मुताबिक, दूसरे व्यक्ति की पत्नी के साथ विवाह के बाद यौन संबंध बनाने पर सिर्फ पुरुष के लिए सजा का कानून था, लेकिन महिलाओं को ऐसे अपराध में सजा से मुक्त रखा गया था। अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला से उसकी इच्छा के अनुसार शारीरिक संबंध बनाता तो उस महिला का पति धारा 497 (व्यभिचार) के तहत उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करवा सकता था। लेकिन महिला का पति अपनी पत्नी के खिलाफ केस दर्ज नहीं करवा सकता था। इतना ही नहीं आरोपी पुरुष की पत्नी भी महिला के खिलाफ केस दर्ज नहीं करवा सकती थी। इस कानून के अनुसार आरोपी पुरुष के खिलाफ भी महिला का पति ही केस दर्ज करवा सकता था। अगर पुरुष पर महिला से अवैध संबंध का आरोप साबित होता है तो पुरुष को ज्यादा से ज्यादा पांच साल की सजा हो सकती थी।

उच्चतम न्यायालय ने क्या कहा, जानिए दस बातें :

  1. 157 साल पुराने व्यभिचार कानून को उच्चतम न्यायालय ने रद्द किया।
  2. उच्चतम न्यायालय ने कहा- किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं।
  3. उच्चतम न्यायालय ने व्यभिचार कानून को बताया असंवैधानिक, कहा- चीन, जापान, ब्राजील में ये अपराध नहीं।
  4. प्रधान न्यायाधीश ने कहा- व्यभिचार कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, मगर यह अपराध नहीं हो सकता। भारतीय संविधान की खूबसूरती ये है कि ये मैं, तुम और हम को शामिल करता है।
  5. उच्चतम न्यायालय ने कहा- जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करता है वो संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है वो अंसवैंधानिक है।
  6. न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा- व्यभिचार कानून मनमाना है। उन्होंने कहा कि यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। यह पूर्णता निजता का मामला है, महिला को समाज की चाहत के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता।
  7. पीठ में शामिल एकमात्र महिला न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ने भी व्यभिचार को असंवैधानिक बताते हुए इसे खारिज कर दिया।
  8. न्यायाधीश मल्होत्रा ने व्यभिचार को नैतिकता की दृष्टि से गलत कहा और यह भी कहा कि सेक्सुअल स्वायत्तता सही नहीं।
  9. न्यायाधीश रोहिग्टन नरीमन ने भी सेक्शन 497 असंवैधानिक बताते हुए इसे खारिज कर दिया।
  10. उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में साफ किया कि महिला और पुरुष दोनों को समान अधिकार होंगे।

(कॉपी-संपादन : राजन/सिद्धार्थ)


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