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आयुष्मान भारत योजना : कौन हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दरिद्र नारायण?

आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे दरिद्र नारायण की असली सेवा की संज्ञा दी है। आखिर कौन हैं ये दरिद्र नारायण? क्या ये दलित, पिछड़े और आदिवासी हैं? या केंद्र की नजर में इसकी कोई और परिभाषा है? फारवर्ड प्रेस की खबर :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 सितंबर 2018 को झारखंड की राजधानी रांची में आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की। इस मौके पर उन्होंने इस योजना को दरिद्र नारायण की असली सेवा करार दिया है। उन्होंने कहा कि इस योजना से गरीबों और वंचित तबकों का इलाज सुनिश्चित किया जा सकेगा। अबतक एक बड़ा तबका महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कष्टकारी जीवन जीने को अभिशप्त था। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में यह दरिद्र नारायण कौन हैं? क्या वे देश के दलित, पिछड़े और आदिवासी हैं जिनकी संख्या सबसे अधिक है लेकिन उत्पादन के संसाधनों और सरकारी सेवाओं में जिनकी हिस्सेदारी न्यून है?

मोदी सरकार की यह योजना आगामी 25 सितंबर आरएसएस के संस्थापक रहे पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर पूरे देश में लागू होगी। हालांकि पांच राज्यों ने इसे लागू करने से इंकार किया है। इनमें दिल्ली, पंजाब, तेलंगाना, ओडिशा और केरल शामिल हैं।

गौर तलब है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की योजना बिहार में कुख्यात रही थी। वर्ष 2008 से लेकर 2011 के बीच राज्य में करीब पन्द्रह हजार लोगों का इलाज के नाम पर अवैध तरीके से धन की लूट हुई थी। साथ ही सैंकड़ों महिलाओं का गर्भाशय इलाज के नाम पर निकाल दिया गया था जबकि उन्हें इसकी बीमारी ही नहीं थी। इतना ही नहीं फर्जीवाड‍़े का आलम यह था कि दर्जनों पुरुषों का गर्भाशय भी निकालकर अस्पताल वालों ने सरकारी राशि हजम कर ली थी।

खैर, सबसे पहले दरिद्र नारायण की चर्चा करते हैं। यह हिंदू धर्म का एक और मिथक है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार सतयुग जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतरण हुआ। राम का अवतरण इसी सतयुग के बाद आये त्रेतायुग में हुआ था, ऐसा हिंदू धर्म ग्रंथ ही बताते हैं। इसके बाद द्वापर युग आया जब कृष्ण के रूप में विष्णु ने धरती पर जन्म लिया। द्वापर युग के अंत के साथ ही कलियुग की शुरुआत हुई। इसी युग के साथ ही दरिद्र नारायण के मिथक को जन्म दिया गया।

हालांकि सरकारी भाषा में इसे बीपीएल की संज्ञा दी गयी है। बीपीएल यानी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजर-बसर करने वाले लोग। इन्हीं लोगों के लिए सरकार ने आयुष्यमान भारत योजना की शुरुआत ऐसे मौके पर की है जब पूरे देश में तेल की कीमतों में आग लगी हुई है और महंगाई आसमान दिन पर दिन आसमान छू रही है।

झारखंड की राजधानी रांची में आयुष्यमान भारत योजना की शुरुआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

चलिए सबसे पहले इस योजना की चर्चा करते हैं। इस योजना के तहत देश के कुल 10 करोड़ 74 लाख परिवारों को लाभ मिलेगा। लाभ क्या मिलेगा, यह समझना बहुत आसान है। पहले मनमोहन सिंह सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन की शुरुआत की थी। इस योजना के तर्ज पर ही आयुष्यमान भारत योजना के तहत गरीब लोगों को महंगे अस्पतालों में इलाज हो सकेगा और इसके लिए राशि का भुगतान सरकारें करेंगी। सरकारें मतलब केंद्र और राज्य सरकारें। दोनों सरकारें 60 और 40 के अनुपात में खर्च वहन करेंगी। हालांकि विशेष राज्य का दर्जा हासिल राज्यों यथा हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में यह अनुपात 90 और 10 का है। जबकि केंद्र शासित राज्यों में 100 फीसदी खर्च केंद्र सरकार करेगी।

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एक बार फिर सवाल यह कि वे कौन हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दरिद्र नारायण की संज्ञा दे रहे हैं? आयुष्मान भारत योजना के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा जारी सूचनाओं के अनुसार इसके लिए 2011 में हुए जाति, आर्थिक और सामाजिक जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया गया है। जबकि इस रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक ही नहीं किया गया है। इसे लेकर विपक्षी दलों द्वारा आवाज उठायी जाती रही है।

बताते चलें कि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2011 में हुए जातिगत जनगणना की वैधता पर सवाल उठाया था और कहा था कि सरकार 2021 में नये सिरे से जातिगत जनगणना करायेगी।

फिर केंद्र सरकार किन आंकड़ों की बात कर रही है? यानी दरिद्र नारायण कौन हैं, सवाल अभी भी अधूरा ही है।

इसका एक जवाब केंद्र सरकार ने नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों के जरिए देने का प्रयास किया है। केंद्र सरकार के अनुसार 60 लाख परिवार हर साल बीमारी के कारण गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इन 60 लाख परिवारों की जातिगत और सामाजिक पृष्ठभूमि क्या है, इसका खुलासा नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट में नहीं किया गया है। सरकार इसी सर्वे के आधार पर कह रही है कि देश में बीमार पड़ना लोगों महंगा पड़ने लगा है। कहा जा रहा है कि लोगों को इलाज में पूर्व की तुलना में अब 300 फीसदी अधिक खर्च करना पड़ रहा है। इनमें से 80 फीसदी लोग अपनी जेब से खर्च करते हैं। केवल 20 फीसदी लोग ही सरकारी अस्पतालों के भरोसे रहते हैं। सर्वे के आंकड़े यह भी बताते हैं कि 60 फीसदी लोग अपनी आय का हिस्सा अपने इलाज पर खर्च करते हैं जबकि 25 फीसदी लोग उधार लेकर इलाज कराते हैं। इनमें बैंकों की हिस्सेदारी बहुत कम है। मतलब साफ है कि गरीब सूदखोरों से कर्ज लेकर अपना इलाज कराते हैं।

रांची स्थित राजेंद्र मेडिकल कालेज अस्पताल की बदहाली

प्रधानमंत्री के दरिद्र नारायण की परिभाषा इतनी सरल नहीं है। हालांकि इसके लिए आंकड़े जातिगत जनगणना की रिपोर्ट है। लेकिन इसमें कहीं भी जाति शामिल नहीं है। सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में 8 करोड़ तीन लाख और शहरी क्षेत्रों में 2 करोड़ 33 लाख गरीब को शामिल किया गया है। इनका चयन सामाजिक आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए छह मानक तय किये गये हैं। डी 1, डी 2, डी 3, डी 4, डी 5 और डी 6। जबकि शहरी क्षेत्रों में 11 मानक होंगे।

बहरहाल, नेशनल रूरल हेल्थ मिशन योजना के नये स्वरूप आयुष्यमान भारत योजना का लाभ गरीबों को कितना मिलेगा। यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इसका सबसे अधिक लाभ निजी अस्पतालों को जरुर मिलेगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 15 हजार 636 अस्पतालों ने इस योजना के लिए अस्पतालों के पैनल में शामिल होने को आवेदन दिया है। इसमें 8 हजार 735 अस्पताल शामिल हो चुके हैं।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क/सिद्धार्थ)


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