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द्विज इतिहास दृष्टि को चुनौती देने वाले राजेन्द्र प्रसाद सिंह

भारतीय इतिहास को देखने की राष्ट्रवादी और वामपंथी दृष्टियों पर द्विज दृष्टि की छाया रही है। इन इतिहास दृष्टियों को बहुजन समाज में जन्में अध्येताओं ने चुनौती दी और बहुजन दृष्टि से इतिहास को देखा। ऐसे अध्येताओं में राजेन्द्र प्रसाद सिंह भी शामिल हैं। उनकी इतिहास दृष्टि की विवेचना कर रहे हैं कुमार बिन्दु :

देश के प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक प्रो. राजेन्द्र प्रसाद सिंह की इतिहास-दृष्टि राष्ट्रवादियों, मार्क्सवादियों, लोहियावादियों व अांबेडकरवादियों से सर्वथा भिन्न है। वे भारत की संस्कृति व सभ्यता को एक नए नजरिए से देखते हैं। हालांकि उनकी इतिहास-दृष्टि मार्क्स और अांबेडकर की विचारधारा के आसपास भी नजर आती है। वे अपनी पुस्तक ‘इतिहास का मुआयना’ की भूमिका में लिखते हैं कि इतिहास लेखन में इतिहासकार कुछ छोड़ते हैं, कुछ जोड़ते हैं और कुछ तथ्यों का चयन करते हैं। ऐसा इतिहास वस्तुतः राजनीतिक शक्ति मात्र का इतिहास होता है। चिनुआ अचैबी के शब्दों में कहा जाए तो जब तक हिरण अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, तब तक हिरणों के इतिहास में शिकारियों की शौर्य-गाथाएँ गाई जाती रहेंगी। इसलिए भारत के इतिहास में वैदिक संस्कृति उभरी हुई है, बौद्ध संस्कृति पिचकी हुई और मूल निवासियों का इतिहास बीच-बीच में उखड़ा हुआ है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें भाषा वैज्ञानिक राजेन्द्र प्रसाद सिंह की इतिहास-दृष्टि

 

लेखक के बारे में

कुमार बिन्दु

कवि व वरिष्ठ पत्रकार कुमार बिन्दू बिहार के रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन इलाके में रहते हैं। पटना से प्रकाशित ‘जनशक्ति’ और ‘दैनिक आज’ से संबद्ध रहते हुए उन्होंने बहुजन साहित्य की रचना की। उनकी अनेक कविताएं व समालोचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। संप्रति वह दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ से संबद्ध हैं।

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