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जेएनयू चुनाव : छात्र राजद और तेजस्वी पर सवाल

बिहार में तेजस्वी दलित, पिछड़ा और मुसलमानों को एकता का  पाठ पढ़ा रहे हैं। ऐसा ही अगर जेएनयू में भी कर पाते तो यह उनकी राजनीति और जेएनयू की राजनीति के लिए अच्छा होता। बता रहे हैं चंद्रसेन :

प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव आगामी 15 सितम्बर 2018 को होंगे। इस बार बिहार की क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने भी जयंत जिज्ञासु को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाकर जेएनयू की राजनीति में उपस्थिति दर्ज कराने का निर्णय लिया है।  

हालांकि जेएनयू को वामपंथियों का लाल गढ़ माना जाता रहा है। पिछले कुछ वर्षों से इस कैंपस में नए संगठन और अलग तेवर की राजनीति उभर कर आयी है। मसलन लेफ्ट-राइट के द्विआधारी राजनीतिक गणित को तोड़ते हुए बिरसा आंबेडकर फूले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बापसा) ने अपनी प्रभावकारी उपस्थिति दर्ज करायी है। उसका नारा ‘लाल भगवा एक है’ अब जेएनयू में गूंजने लगा है। बापसा के साथ-साथ ओबीसी फोरम, आदिवासी संगठन और मुस्लिम ग्रुप्स ने विकल्प की राजनीति को आगे बढ़ाया है।

  • पहली बार जेएनयू में राजद ने उतारा है अपना उम्मीदवार

  • पिछली बार बापसा ने दर्ज करायी थी धमाकेदार उपस्थिति

  • तेजस्वी यादव पर बहुजन एकता तोड़ने का लग रहा आरोप

जेएनयू छात्र संघ के चुनाव में राजद के ताल ठोंकने से पहले एक घटना घटित हुई। यूनाईटेड ओबीसी फोरम नाम के संगठन ने अपने ही वरिष्ठ छात्र नेता मुलायम सिंह यादव और दिलीप यादव पर यादववाद का आरोप लगाते हुए उन्हें संगठन से बाहर निकाल दिया है।

राजद पर भी इसी तरह का आरोप लग रहा है। बताते चलें कि राजद उम्मीदवार के रूप में नामांकन से पहले वामपंथी कन्हैया कुमार के दाहिने हाथ रहे जयंत जिज्ञासु ने उन पर जातिवाद का आरोप मढ़ कर सीपीआई से  इस्तीफा दिया। ऐसे में विरोधी सवाल उठा रहे हैं कि क्या जयंत जेएनयू में चुनाव लड़ने के लिए वामपंथी से समाजवादी बने थे या फिर बिहार में अपने साथी कन्हैया की ही तरह राजनीति तलाश रहे हैं?

जेएनयू छात्र संघ में राजद की ओर से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी जयंत जिज्ञासु बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव व अन्य के साथ

बहरहाल सवाल तेजस्वी प्रसाद यादव पर भी उठ रहा है। क्या वे अतिपिछड़ों और दलितों को सिर्फ बिहार में अपने मतदाता के रूप में देख रहे हैं? वह भी तब जब तेजस्वी बिहार में आंबेडकरवाद के नारे लगा रहें हैं तो जेएनयू में उन्हें आंबेडकरवादी संगठन या राजनीति से परहेज क्यों? आखिर पहली बार ही चुनाव में उतरते हुए उन्होंने क्यों यादव जाति से आने वाले जयंत जिज्ञासु को अपना उम्मीदवार बनाया है? क्या तेजस्वी यादव को सिर्फ बिहार में ही दलित, पिछड़ा और मुसलमान एकता बनाना है, जेएनयू में नहीं?

जेएनयू के छात्रों का  मानना है कि राजद ने जेनएयू जैसे विश्वविद्यालय में अपने छात्र संगठन को उतारने में जल्दबाजी और अपरिपक्वता दिखाई है। उनका तर्क है कि जिस तरह से पूरे देश, खासकर बिहार में वह दलित पिछड़ा और मुसलमानों को एकता का  पाठ पढ़ा रहे हैं वैसा ही अगर जेएनयू में भी कर पाते तो यह उनकी राजनीति और जेएनयू की राजनीति के लिए अच्छा होता।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

चंद्रसेन

चंद्रसेन इंडिया-चाइना इंस्टीच्यूट, न्यू स्कूल, न्यूयार्क, अमेरिका में पोस्ट डॉक्टरल शोधार्थी हैं। इससे पूर्व जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी भी रह चुके हैं

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