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क्या एससी-एसटी पर भी लागू होगा क्रीमी लेयर, अटकलें जारी

सुप्रीम कोर्ट की पीठ को इस बात पर भी अपना रुख स्पष्ट करना है कि एससी-एसटी के लोगों में पिछड़ापन अभी भी कायम है और वे इतने पिछड़े हैं कि उन्हें पदोन्नति में आरक्षण की जरूरत है। परंतु क्रीमी लेयर का मामला भी महत्त्वपूर्ण है। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :

पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने हालांकि अपना फैसला सुरक्षित रखा है। लेकिन इस फैसले को लेकर अटकलों का दौर शुरु हो गया है। कयास लगाया जा रहा है कि पीठ ओबीसी के जैसे ही एससी-एसटी पर भी क्रीमी लेयर लगायेगी और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के उन कर्मियों को ही पदोन्नति में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा जो क्रीमी लेयर के दायरे में नहीं आते हैं।

फिलहाल क्रीमी लेयर की सीमा आठ लाख रुपए है।

इस तरह की अटकलबाजी के कई कारण हैं। पहला तो यह कि एम. नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि सरकारें पदोन्नति में एससी/एसटी को आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं। लेकिन साथ ही, उसने यह भी कहा है कि अगर कोई राज्य सरकार इसमें आरक्षण देना चाहती है तो उसे उस समूह के बारे में ऐसे आंकड़े जुटाने होंगे जो इस बात को साबित कर सकें कि यह समूह पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में इसको कम प्रतिनिधित्व मिला हुआ है।

गौर तलब है कि एक के बाद एक कई राज्य सरकारों ने पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधानों की घोषणा की परंतु उन राज्यों के उच्च न्यायालयों ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि इस बारे में पर्याप्त आंकड़े नहीं जुटाये गए हैं और इस तरह यह एम. नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हैं।

सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली

इस तरह इसके बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को पदोन्नति में आरक्षण देने का अधिकार दिया है, इसे कोई भी राज्य सरकार लागू नहीं कर पाई है। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर इस अनुमति का मतलब क्या है।  जो पक्ष एम. नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा का विरोध कर रहा है, उसका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति के लिए जिन शर्तों को निर्धारित किया है वे जायज हैं और राज्य सरकारें उन्हें पूरा किये बिना ही लागू करना चाहती हैं।

वहीं जो लोग इस मामले में संविधान पीठ के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनको इस बात में भी ज्यादा दिलचस्पी है कि पीठ क्रीमी लेयर के बारे में क्या रुख अपनाता है। और फिर आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा तो है ही जिसको सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा की तरह अनुलंघ्य माना है।   

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वैसे इस बात की उम्मीद कम ही है कि सुप्रीम कोर्ट पदोन्नति में आरक्षण के लिए आंकड़े जुटाने की शर्त में कोई ढील देगी। इस संविधान पीठ के अध्यक्ष और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा इस बारे में पहले ही कह चुके हैं कि आंकड़ों को जुटाना महत्त्वपूर्ण है। राज्य सरकारें आंकड़े जुटाने की लम्बी प्रक्रिया से बचना चाहती हैं। उनका कहना है कि जातिगत जनगणना जो हुई थी उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये गए और इस तरह हम विभिन्न जातियों और उनके वास्तविक हाशियाकरण के बारे में नवीनतम स्थिति क्या है यह नहीं जानते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा

सुप्रीम कोर्ट की पीठ को इस बात पर भी अपना रुख स्पष्ट करना है कि एससी/एसटी श्रेणी के लोगों में पिछड़ापन अभी भी कायम है और वे इतने पिछड़े हैं कि उन्हें सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण की जरूरत है।

परंतु क्रीमी लेयर का मामला भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक सिर्फ यह माना गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग में ही क्रीमी लेयर है, एससी/एसटी में नहीं है।

उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कुछ करेगी जिससे पदोन्नति में आरक्षण देने में राज्य सरकारों को सहूलियत हो और आंकड़ों के संग्रहण की बाध्यता का कोई हल ढूंढा जाएगा। यह भी उम्मीद की जा रही है कि क्रीमी लेयर को लेकर उसकी राय में बदलाव आए ताकि ओबीसी और एससी/एसटी में इसको लेकर जो खींचतान है, वह कम हो सके।  

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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अशोक झा

लेखक अशोक झा पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा से की थी तथा वे सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली सहित कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं

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