आप देखते होंगे कि अक्सर सोशल मीडिया पर दलित कार्यकर्ता और हाशिए के समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले सवाल उठाते हैं कि अगर सफाई कर्मचारियों की जाति दलित के बजाए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होती तो क्या काम की स्थितियां इतनी भयावह होतीं, क्या काम के दौरान ऐसी बेपरवाह मौतें होती रहतीं, क्या काम करने के साधन इतने पिछड़े जमाने के और भयावह होते व मौतों के आंकड़े छपते रहते और बेपरवाह सरकारें इसे एक बयान देने भर से अपना काम चला लेतीं?
यह सवाल अब गंभीर हो गया है, क्योंकि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ‘एसीएसके’ ने एक भयावह रिपोर्ट जारी कर देश को बताया है कि 1 जनवरी 2017 से हर पांचवें दिन सेप्टिक टैंक और सीवर साफ करने वाले एक कर्मचारी की काम के दौरान मौत हो रही है। भारत में यह सर्वे आजादी के 68 वर्षों बाद पहली बार हुआ है, इससे पहले कोई संस्थागत और सिलसिलेवार सर्वे सीवर और सेप्टिक टैंक में घुसने के दौरान होने वाली मौतों को लेकर नहीं हुआ है। यह सर्वे अखबारों में छपी खबरों और राज्य सरकारों द्वारा भेजे गए आंकड़ों पर आधारित है।
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