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सभी जातियों के नौजवान! इस छोटेपन से बचिये

हिंदी के ख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कहते हैं कि जो आदमी अपनी जाति को अच्‍छा और दूसरी जाति काे बुरा मानता है वह छोटे मिजाज का आदमी होता है। दिनकर द्वारा रामसागर चौधरी को लिखे इस खत में उन्होंने जातिवाद के प्रति अपनी पीड़ा व्यक्त की है

पत्र

एक युवक के नाम दिनकर का पत्र

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

11, केनिंग लेन,
नई दिल्‍ली
4-3-61

प्रिय श्री रामसागर चौधरी,

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

सच ही, मैं आपको नहीं जानता तब भी आपका 28-2-61 का पत्र पढ़ दु:खी हुआ। यह लज्‍जा की बात है‍ कि बिहार के युवक इतनी छोटी बातों में आ पड़े।

मैं जातिवादी नहीं हूं। तब भी अनेक बार लोगों ने मेरे विरुद्ध प्रचार किया है और जैसा आपने लिखा है, वे अब ऐसी गन्‍दी बातें बोलते हैं। लेकिन, तब मैं जातिवादी नहीं बनूंगा। अगर आप भूमिहार-वंश में जनमे या मैं जनमा तो यह काम हमने अपनी इच्‍छा से तो नहीं किया, उसी प्रकार जो लोग दूसरी जातियों में जनमते हैं, उनका भी अपने जन्‍म पर अधिकार नहीं होता। हमारे वश की बात यह है कि भूमिहार होकर भी हम गुण केवल भूमिहारों में ही नहीं देखें। अपनी जाति का आदमी अच्‍छा और दूसरी जाति का बुरा होता है, यह सिद्धान्‍त मान कर चलनेवाला आदमी छोटे मिजाज का आदमी होता है।

आप-लोग यानी सभी जातियों के नौजवान-इस छोटेपन से बचिये। प्रजातंत्र का नियम है कि जो नेता चुना जाता है, सभी वर्गों के लोग उससे न्‍याय की आशा करते हैं। कुख्‍यात प्रान्‍त बिहार को सुधारने का सबसे अच्‍छा रास्‍ता यह है कि लोग जातियों को भूल कर गुणवान के आदर में एक हों। याद रखिये कि एक या दो जातियों के समर्थन से राज नहीं चलता। वह बहुतों के समर्थन से चलता है। यदि जातिवाद से हम ऊपर नहीं उठे तो बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जायेगा।

आप सोचेंगे, यह उपदेश मैं आपको क्‍यों दे रहा हूं? किन्‍तु, आपने पूछा, इसलिए, आप ही को लिख भी रहा हूँ। आज आप पीड़ित हैं, अपने को आप दु:खी समझते हैं। आपके विरूद्ध जिनका द्वेष उभरा है, कल उनका क्‍या भाव था? शायद अपने को वे उपेक्षित अनुभव करते थे। इसलिए, स्‍वाभाविक है कि उनका असन्‍तोष व्‍यक्‍त हो रहा है। और उपाय भी क्‍या था? इसलिए, आपको धीरज रखने को कहता हूँ, उच्‍चता पर आरूढ़ रहने को कहता हूँ।

दिनकर रचनावली

जाति नाम का शोषण करके मौज मारने वाले चन्‍द लोग, जो कुछ करते हैं उसकी कुत्‍सा उस जाति-भर को झेलनी पड़ती है, यह आप-लोग समझ रहे हैं? यही शिक्षा कल उन्‍हें भी मिलेगी जो आप को केवल इसलिए डस रहे हैं कि आप भूमिहार हैं। तो इससे निकलने का मार्ग कौन-सा है? केवल एक मार्ग है। नियमपूर्वक अपनी जाति के लोगों को श्रेष्‍ठ और अन्‍य जातिवालों को अधम मत समझिये। और यह धर्म उस समय तो और भी चमक सकता है जब आदमी आँच की कसौटी पर हो।

आपका

दिनकर

 

[उपरोक्त सामग्री  वेबपोर्टल  ‘जनज्वार’ ने प्रकाशित की है। इसे यहां पोर्टल के संपादक की अनुमति से पुनर्प्रकाशित किया गया है। ‘जनज्वार’ पर दर्ज ब्यौरे के अनुसार, वह  “पत्रकारों, विशेषज्ञों और पत्रकारिता के प्रति जनसरोकार रखने वाले नागरिकों का एक सा​मूहिक आयोजन है, जिसका मकसद अपने पाठकों को सही सूचना और जानकारी देना है, जिससे कि वे लोकतंत्र की मजबूती में एक सचेत और सक्षम नागरिक की भूमिका निभा सकें।”]

(कॉपी-संपादन : राजन/प्र.रं.)


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लेखक के बारे में

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (23 सितंबर 1908- 24 अप्रैल 1974) आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। उनका जन्म बिहार के बेगुसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। उन्हें उनकी पुस्तक ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘उर्वशी’ के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे

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