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अगर चौराहे पर लगी दलित प्रेमी की मूर्ति तो हो जाएगा खून-खराबा

नफरत फैलाने वालों के नाम पर रेलवे स्टेशन बनते हैं, लेकिन प्रेम करने वालों, जाति तोड़ने वालों और दुनिया में बराबरी चाहने वालों की मूर्ति आदिवासी, दलित और पिछड़े बहुतायत वाले राज्य तेलंगाना में इसलिए नहीं लगाने दी जाएगी क्योंकि यह मूर्ति प्रेम को महान और जातीय श्रेष्ठता के घमंड और उसकी जड़ता को समाज के विकास और बराबरी के मूल्यों की दुश्मन बताएगी :

आजादी के 68 वर्षों बाद आजादी के जश्न को हर साल दलितों ने भी उतने ही उत्साह और लगन से मनाया है, जितना कि दूसरी जाति और संप्रदाय के लोग मनाते हैं। पर जब आजादी को पाने का वक्त आता है, उसे जीने का मौका मिलता है तो पाबंदियों की जकड़बंदी चौतरफा भरभराकर उनपर इस कदर गिरने लगती है कि वह सोच नहीं पाते कि वे इस देश के नागरिक हैं या गुलाम। उनका अधिकार संवैधानिक है या फिर बड़ी जातियों से मिला दान।

आप सोचिए कि इस देश में दंगाइयों की मूर्ति प्रधानमंत्री, सांसद और विधायक लगवाते हैं। हमारे सामने ही गांधी के हत्यारों की मूर्ति लगाना एक वैचारिक आंदोलन बन जाता है। औरतों को दो टके का भी न समझने वाले नेताओं की मूर्तियां इस देश के युवाओं की आदर्श बनती हैं और जातिवाद के प्रतीकों की मूर्तियों से देश के चौराहे अटे पड़े हैं। इतना ही नहीं नफरत फैलाने वालों के नाम पर रेलवे स्टेशन बनते हैं, लेकिन प्रेम करने वालों, जाति तोड़ने वालों और दुनिया में बराबरी चाहने वालों की मूर्ति आदिवासी, दलित और पिछड़े बहुतायत वाले राज्य तेलंगाना में इसलिए नहीं लगाने दी जाएगी कि यह मूर्ति प्रेम को महान और जातीय श्रेष्ठता के घमंड और उसकी जड़ता को समाज के विकास और बराबरी के मूल्यों की दुश्मन बताएगी।

ससुर ने ही करायी थी मां और पत्नी के सामने प्रणय की हत्या

इसी महीने 14 सितंबर को तेलंगाना राज्य के नालागोंडा के मिरयालागुडा शहर में प्रणय की हत्या कर दी गयी थी। हत्या उस समय हुई जब वह अपनी मां के साथ गर्भवती पत्नी अमृता को नियमित स्वास्थ्य चेकअप के लिए अस्पताल गया था। अस्पताल से बाहर आते ही प्रणय की मां के सामने उसे धारदार हथियारों से मार दिया गया। प्रणय ही हत्या उसकी पत्नी के पिता ने कराई, क्योंकि अमृता वैश्य और प्रणय दलित था।

प्रणय और अमृता की तस्वीर

दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले नालागोंडा के मिरयालागुडा शहर के पेरामल्ला प्रणय कुमार और वैश्य समाज की 19 वर्षीय अमृता वार्षिनी ने 8 महीने पहले लव मैरिज की थी। प्रणय दलित समाज के माला जाति से ताल्लुक रखते थे, जबकि अमृता कथित उच्च जाति वैश्य से ताल्लुक रखती थी। उनकी शादी इसी साल 31 जनवरी को हुई थी। अमृता 5 महीने की गर्भवती है। प्रणय अपनी मां प्रेमलता के साथ पत्नी को अस्पताल रूटीन चेकअप के लिए ले गया था, जहां अस्पताल से निकलते वक्त पत्नी और मां के सामने ही, भरी दोपहरी में उसकी धारदार हथियार से हत्या कर दी गयी।

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मीडिया में आई खबरों और स्थानीय लोगों के मुताबिक शादी के बाद दोनों परिवारों में अनबन थी और किसी परिवार ने प्रणय और अमृता के प्रेम विवाह का स्वागत नहीं किया। पर बाद में प्रणय के पिता ने बेटे और बहू को अपना लिया था। पर वैश्य होने की ठसक के कारण अमृता के पिता ने बेटी के प्रेम विवाह को कभी नहीं स्वीकार किया और घर से भी रिश्ता-नाता तोड़ लिया था। आर्थिक रूप से संपन्न दलित परिवार से आने वाले प्रणय कुमार को वैश्य जाति से ताल्लुक रखने वाली अमृता से स्कूली दिनों से ही प्यार था। तब प्रणय 10वीं में और अमृता 9वीं में पढ़ती थी। बाद में दोनों ने बीटेक किया और दोनों ने अपने परिवार में शादी की इच्छा जाहिर की। पर अमृता के पिता को ये बिल्कुल मंजूर नहीं था, वे पहले भी कई बार अमृता को जान से मारने की धमकी दे चुके थे।

प्रणय की मूर्ति लगवाना चाहती है उसकी पत्नी, प्रशासन भी तैयार

प्रणय की सरेआम हत्या के बाद उनकी पत्नी अमृता की इच्छा थी उनके की मूर्ति चौराहे पर लगे, जिससे लोगों का यह उदाहरण याद रहे और समाज प्रेम की मिसाल में कुर्बानी के महत्व को माने। अमृता चाहतीं हैं कि समाज से जातीय विद्वेष और उत्पीड़न खत्म हो व जातीय श्रेष्ठता का मानसिक रोग भी। प्रणय की हत्या के बाद दलित संगठनों के प्रचंड विरोध के बाद इस बात पर स्थानीय प्रशासन तैयार भी हो गया था। उसने तेलंगाना के नालागोंडा जिले में जहां दिनदहाड़े प्रणय को अमृता के पिता के भेजे हत्यारे ने धारदार हथियार से मार डाला, उसी शहर के मुख्य इलाके शकुंतला थियेटर सेंटर चौराहे पर मूर्ति लगाने की इजाजत भी दे दी थी।   

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पर ऐसा हो पाता उससे पहले ही नालागोंडा के मिरयालागुडा शहर में गैर दलितों ने मोर्चा खोल लिया और सीधी चुनौती दी कि अगर सार्वजनिक जगह पर प्रणय की मूर्ति बनी तो वे उसे तोड़ डालेगे और उसके बाद कानून-व्यवस्था की जो अकल्पनीय स्थिति पैदा होगी, उसके लिए सीधे प्रशासन और दलित जिम्मेदार होंगे।

तेलंगाना के नालागोंडा में 24 सितंबर को बड़ी संख्या में गैर दलित जुटे और उन्होंने माता—पिता की एक सभा बुलाई और उन्होंने स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाया कि वे लोग किसी भी कीमत पर प्रणय की मूर्ति चौराहे पर नहीं लगने देंगे। इन परिवारों का तर्क था कि यह दो परिवारों का आपसी मसला है। प्रणय की हत्या में समाज का कोई हाथ नहीं है। समाज इस हत्या की निंदा भी करता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम प्रणय की मूर्ति सार्वजनिक जगह पर लगने देंगे।

विरोध करने वालों का तर्क

इस मामले में गैर दलितों की ओर से बने माता-पिता एसोसिएशन में सक्रिय वकील और भाजपा नेता श्याम चिलुकुरी का कहना है कि हम प्रणय के परिजनों के दुख को समझ सकते हैं। वह चाहें तो अपने बेटे की मूर्ति अपने घर या अपनी जमीन पर लगाएं पर सार्वजनिक स्थान पर उसकी मूर्ति लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

इजाजत क्यों नहीं दी जा सकती के बारे में भाजपा नेता श्याम चिलुकुरी का जवाब था, ‘इससे आने वाली पीढ़ियों में गलत मैसेज जाएगा।’

अब प्रशासन भी गैर दलितों के दबाव में है। मिरवालागुडा के पुलिस अधिकारी  पी श्रीनिवास का कहना है कि माता-पिता एशोसिएशन के प्रतिनिधियों से मिलने के बाद मुझे नहीं लगता कि यहां मूर्ति के लिए कोई जगह दी जानी चाहिए। इस मामले में राजस्व, पुलिस और नगर निगम तीनों एक हैं, क्योंकि इनकी इजाजत के साथ ही मूर्ति लगाने की अनुमति मिलेगी या नहीं मिलेगी।

गौर तलब है कि प्रणय के परिवार की आेर से मिरयालागुडा के नगर निगम आयुक्त को एक पत्र देकर आग्रह किया गया था कि उन्हें शकुंतला थियेटर चौराहे पर प्रणय की मूर्ति लगाने की इजाजत दी जाए। इस बात की पुष्टि करते हुए मिरयालागुडा के नगर निगम आयुक्त सी सत्य बाबू ने कहा, ‘हमने पत्र को उपर भेज दिया है, क्योंकि इसके लिए सरकार की इजाजत की जरूरत पड़ेगी।’  

पर इन बातों से बेफिक्र दलित संगठन प्रणय की प्रेमिका की इच्छा कि चौराहे पर उसके मारे गए प्रेमी की मूर्ति लगे, इस काम में जुटे हुए हैं। इस बात को लेकर पूरे तेलंगाना में बहस छिड़ी हुई है। सोशल मीडिया इस पर बंटा हुआ है। विरोधी कह रहे हैं कि यह मूर्ति आने वाली पीढ़ियों को क्या यह संदेश देगी कि हाईस्कूल में प्यार कर बैठो।

यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि 14 सितंबर को दिनदहाड़े मारे गए प्रणय का अमृता से 2011 में प्रेम हो गया था, जब वे दोनों हाईस्कूल में एक ही स्कूल में पढ़ते थे। हत्या के मामले में पुलिस अबतक 7 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। इसमें वैश्य समाज से आने वाली अमृता के पिता मारूति राव भी शामिल हैं। आरोप है कि अमृता के पिता ने बिहार से सुपारी किलर को बुलाकर उसके पति प्रणय की हत्या कराई थी।  

समर्थन में खड़े हो रहे दलित बुद्धिजीवी

दलित सवालों को समाजशास्त्रीय स्तर पर समझने वाले शोधार्थी संजय जोठे प्रणय कुमार की मूर्ति न लगने देने पर कहते हैं कि ‘यह ब्राह्मण वर्चस्ववादी हिंदू समाज की सोच है कि हम किसी दलित का सम्मान नहीं होने देंगे, चाहे वह किसी की मौत के बाद ही क्यों न हो रहा है। प्रणय की मूर्ति आखिर उनकी मौत के बाद ही तो लगवाई जा रही थी। दलितों और वंचितों का सम्मान अगर कट्टर हिंदुवादियों के गैर मुद्दों से जुड़ते हुए भी होता है तो उसे भी वह नहीं होने देते। दलितों के प्रेम के अधिकार की अभिव्यक्ति वो भी किसी उच्च जाति के युवक/युवती के साथ साकार नहीं होने देने को जैसे प्रतिबद्ध हैं। कहीं भी पब्लिकली अगर दलितों का कोई मुद्दा उठता है, तो विरोध में उनकी तलवारें खिंच आती हैं।’

समाजशास्त्र के शोधार्थी संजय जोठे

दलितों के अधिकारों को लेकर लगातार संघर्ष में शामिल उत्तर प्रदेश के पूर्व आईजी एस.आर. दारापुरी इस मसले पर कहते हैं, ‘पहली बात तो यह की दलित युवा प्रणय की आॅनर किलिंग बहुत गलत थी, जो बताती है कि हमारे समाज में जाति का जहर कितना ज्यादा भरा हुआ है। आजादी के सत्तर साल से भी ज्यादा का वक्त बीत जाने के बावजूद समाज की जातीय सोच उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है। अमृता जाहिर तौर पर प्रणय की मूर्ति लगवाने की पहल इसलिए ले रही थीं क्योंकि वह उनकी यादों को संजोते हुए समाज को एक संदेश देना चाह रही थीं कि झूठी शान के आगे उनका प्यार किस तरह उनसे छीन लिया गया यह सभी लोग जानें। साथी के छिन जाने के बावजूद अमृता की प्रणय के प्रेम के लिए उठाया जा रहा यह कदम वाकई क्रांतिकारी है, जिसके लिए समाज के प्रगतिशील और दलित बुद्धिजीवियों को आगे आ उसका साथ देना चाहिए और कथित समाज और हिंदुवादी ठेकेदारों की निंदा करनी चाहिए।’

एस. आर. दारापुरी

एस.आर. दारापुरी आगे कहते हैं, ‘दलितों को डराने-धमकाने और उन्हें हमेशा नीचा महसूस कराने के लिए ही तमाम तरह के उत्पीड़न और रेप की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। दलितों को ये लोग हमेशा इसी अहसास में डुबोये रखना चाहते हैं कि तुम्हें मनुस्मृति में वर्णित वर्ण व्यवस्था के अनुसार ही व्यवहार करना है अगर तुमने आगे आने की कोशिश की तो उसके लिए तुम्हारी जान लेने से भी गुरेज नहीं किया जाएगा।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

प्रेमा नेगी

प्रेमा नेगी 'जनज्वार' की संपादक हैं। उनकी विभिन्न रिर्पोट्स व साहित्यकारों व अकादमिशयनों के उनके द्वारा लिए गये साक्षात्कार चर्चित रहे हैं

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