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ऐसे की जा रही है विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी के साथ हकमारी

यूजीसी और भारत सरकार के द्वारा निर्देश जारी किये जाने के बावजूद विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा धड़ा-धड़ विज्ञापन निकाले जा रहे हैं। इन विज्ञापनों में डिपार्टमेंट को आधार बनाया जा रहा है। इस कारण आरक्षित वर्गों के हितों की हकमारी हो रही है। फारवर्ड प्रेस की खबर :

केंद्र की अवहेलना कर जल्दबाजी में भरी जा रही हैं विश्वविद्यालयोें में रिक्तियां

देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा केंद्र सरकार के निर्णय की अवहेलना कर विज्ञापन निकाले जा रहे हैं। यह तब किया जा रहा है जब केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा रही है कि वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की समीक्षा करे, जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों में डिपार्टमेंट को इकाई मानकर पदों का सृजन हो। विश्वविद्यालयों के इस कृत्य से आरक्षित वर्गों के हितों की हकमारी हो रही है। इस पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) रोक नहीं लगा रहा है। गौरतलब है सरकार निर्देश दे चुकी है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने तक विश्वविद्यालयों में  नियुक्तियां न की जाएं।

बताते चलें कि बीते 20 अप्रैल 2018 को भारत सरकार के निर्देश पर यूजीसी ने एक सर्कुलर जारी किया था।। इसके मुताबिक 5 मार्च 2018 को जारी सर्कुलर जो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर आधारित था, स्थगित रखते हुए पूर्व के अनुसार विश्वविद्यालयों में रोस्टर के आधार नियुक्तियां किये जाने का निर्देश दिया गया था। साथ ही यूजीसी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गयी थी। मामला विश्वविद्यालयों में डिपार्टमेंट को इकाई मानकर पदों का सृजन करने और रोस्टर बनाने से जुड़ा था।

लेकिन देश के कई विश्वविद्यालयों द्वारा केंद्र सरकार के निर्णय की अवहेलना की जा रही है। धड़ा-धड़ विज्ञापन निकाले जा रहे हैं ताकि आरक्षित वर्गों को उनका वाजिब हक न मिल सके।

  • 5 मार्च 2018 को यूजीसी ने सर्कुलर जारी कर नये रोस्टर प्रणाली को लागू किया

  • विरोध होने पर 20 अप्रैल 2018 को बैकफुट पर गयी सरकार, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

गौर तलब है कि यूजीसी द्वारा जारी 5 मार्च 2018 को जारी सर्कुलर में कहा गया कि आरक्षण विश्वविद्यालय व कॉलेज की कुल सीट नहीं, बल्कि डिपार्टमेंट के आधार पर होना चाहिए। आरक्षण का आधार डिपार्टमेंट होने से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) व अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित सीटों की संख्या काफी कम हो जा रहीं थीं।

नियम-कानून ताक पर : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली

उक्त सर्कुलर के पहले केंद्रीय, राज्य और मानद विश्वविद्यालयों /उच्च शिक्षण संस्थानों में कुल खाली सीटों के आधार पर नियुक्ति की जाती थी। लेकिन यूजीसी के सर्कुलर से नए नियम में डिपार्टमेंट मेंं कुल स्वीकृत पदों के आधार पर आरक्षण दिये जाने की बात कही गयी। इसका एक पक्ष यह है कि यदि डिपार्टमेंट के हिसाब से रोस्टर बनाकर पदों को विज्ञापित किया जाएगा तो कभी भी आरक्षित वर्ग को उसका प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, सामाजिक न्याय केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर

उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जाति को 15 फीसदी,  अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी और अन्य पिछडा वर्ग को 27 फीसदी  आरक्षण का प्रावधान है।

धड़ा-धड़ निकाले गए विज्ञापन

हाल ही में कुछ विश्वविद्यालयों ने सहायक प्रोफेसरों के पदों के विज्ञापन निकाले जहां आरक्षण के हिसाब से जो पद बनते थे वे पद उन्हें न देकर अब सामान्य हो गए। इनमें अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल भी शामिल है। जहां सहायक प्रोफेसर के 18 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया। रोस्टर का निर्धारण डिपार्टमेंट के आधार पर किया गया। लिहाजा एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित पदों की संख्या शून्य रही।  वहीं तामिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुल 65 पदों के लिए विज्ञापन निकाले गये हैं। इनमें प्रोफेसर के 13, एसोसिएट प्रोफेसर के 30 पद और असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 22 पद शामिल थे। नये रोस्टर के मुताबिक प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के सभी पद सामान्य श्रेणी के घोषित कर दिये गये। जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर के 22 पदों में से केवल 2 पद ओबीसी के लिए आरक्षित हो सके। वहीं एससी और एसटी के लिए आरक्षित पदों की संख्या शून्य रही।

  • विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा कुल 706 पदों के लिए विज्ञापन जारी

  • ओबीसी को केवल 57 और एससी के लिए केवल 18 पद आरक्षित

  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय में एसटी को आरक्षण नहीं

एक उदाहरण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक का भी है जहां कुल 52 पदों के लिए विज्ञापन निकाले गये और ओबीसी के नाम केवल एक पद आरक्षित किया गया। जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के बावजूद एससी और एसटी के लिए कोई पद आरक्षित नहीं किया गया। एक और उदाहरण हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय का है जहां संविदा के आधार पर पदों को भरने के लिए कुल 80 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया। इसमें एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं है। ऐसा ही मामला, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, जयपुर में सामने आया जहां कुल 33 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया और सभी के सभी सामान्य श्रेणी के थे।

यह भी पढ़ें : ओबीसी-दलित-आदिवासी एका से झुका केंद्र, विश्वविद्यालयों में चलेगा पुराना रोस्टर

केंद्र सरकार के फैसले को दरकिनार कर काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने भी 99 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया जिसमें नये रोस्टर फार्मूले के हिसाब से एससी के लिए 7 और ओबीसी के लिए केवल 13 सीटें जबकि सामान्य श्रेणी के लिए 79 सीटें मुकर्रर की गयीं। वहीं वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने भी कुल 60 पदों के लिए विज्ञापन निकाला जिसमें एससी को 3 और ओबीसी को 5 पद आरक्षित किये गये। जबकि एसटी के लिए आरक्षित पदों की संख्या शून्य रही। वहीं इलाहबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, इलाहबाद द्वारा कुल 163 पदों के लिए विज्ञापन निकाले गये हैं। इनमें ओबीसी के लिए 30 और एससी के 7 पद आरक्षित किये गये।

आरक्षित वर्गों की हकमारी का एक और उदाहरण सीएसजेंएम विश्वविद्यालय, कानपुर में सामने आया है जहां कुल 15 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया और आरक्षित वर्गों के लिए कोई पद आरक्षित नहीं है। झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय ने भी 63 पदों के लिए विज्ञापन निकाला जिसमें ओबीसी के लिए 4 और एससी के लिए 1 पद आरक्षित रखे गये। वहीं पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, पंजाब द्वारा विज्ञापित पदों की संख्या 58 है जिसमें एससी के लिए शून्य, एसटी के लिए शून्य और ओबीसी के लिए केवल 2 पद आरक्षित हैं।

आरक्षित वर्ग को मिलने थे 353 पद, मिले केवल 75

इस प्रकार देखें तो उपरोक्त् विश्वविद्यालयों द्वारा कुल 706 पदों के लिए विज्ञापन जारी किये गये। यदि भारत सरकार के आरक्षण नीति के हिसाब से देखा जाए तो इनमें 353 पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के लिए आरक्षित होने चाहिए थे। लेकिन एससी को केवल 18 पद और ओबीसी को 57 पद दिए गये हैं। वहीं एसटी के लिए कोई पद आरक्षित ही नहीं है। जबकि ओबीसी कोटे के हिसाब 189 पद होने चाहिए थे। ऐसा न करते हुए केवल 57 पद ही दिए गये हैं और 132 पदों को समाप्त कर दिया गया। इसी तरह से एससी व एसटी दोनों को मिलाकर कुल 161 पदों पर दावेदारी बनती थी लेकिन केवल 18 पदों को ही आरक्षित किया गया।

आरक्षित वर्गों की हकमारी के संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के एकेडमिक काउंसिल के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन का कहना है कि कॉलेजों में अफरा-तफरी का माहौल है। विश्वविद्यालय प्रशासनों ने अभी तक कॉलेजों को विभागवार रोस्टर बनाने संबंधी कोई नियम/पत्र नहीं भेजा है। साथ ही किसी तरह की नीति नहीं बनाई है कि रोस्टर बनाने का आधार क्या होगा। जिसके आधार पर रोस्टर किस तिथि से बनाया जाए लेकिन कॉलेजों ने अपनी मर्जी से रोस्टर बनाना शुरू कर दिया, इससे अराजकता का माहौल पैदा हो गया है। उन्होंने मांग किया है कि 5 मार्च के सर्कुलर को पहले वाले पदों पर लागू नहीं किया जाए और जिन पदों को मार्च से पूर्व विज्ञापित किया जा चुका है, उन्हें भरा जाए ताकि आरक्षित वर्ग को सही प्रतिनिधित्व मिल सके।


(कॉपी संपादन : प्रमोद रंजन)


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