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विश्व हिंदू कांग्रेस : सामाजिक और लैंगिक असमानता पर पर्दा डालने की कवायद

हाल ही में शिकागो में आयोजित विश्व हिंदू कांग्रेस को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने वही कहा जिसके लिए उन्हें जाना जाता है। उन्होंने अल्पसंख्यकों को कीट की संज्ञा दी और धर्म निरपेक्षता में विश्वास रखने वालों को कोसा। यह सब सामाजिक और लैंगिक असमानता पर पर्दा डालने की कवायद ही है। राम पुनियानी का विश्लेषण :

दुनिया के सभी क्षेत्रों और धर्मों की तरह, भारत से भी बड़ी संख्या में हिन्दू दूसरे देशों में जाते रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण है वहां, विशेषकर पश्चिमी देशों में रोजगार के बेहतर अवसरों की उपलब्धता और अपेक्षाकृत ऊँचा जीवनस्तर। दुनिया के लगभग सभी देशों में भारतीय मूल के हिन्दू निवासरत हैं। समृद्ध देशों, जैसे इंग्लैंड, कनाडा और अमेरिका, प्रवासी भारतीयों को अधिक भाते हैं। जो भारतीय पश्चिमी देशों में बस रहे हैं, वे वहां की संस्कृति और सभ्यता में खुद को कुछ हद तक ढाल तो रहे हैं परंतु वे अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। वे अपनी भारतीयता का जश्न मनाने के लिए समारोह आयोजित करते रहते हैं। उनके कई धर्म-आधारित संगठन भी हैं।

अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय हिन्दू रहते हैं। वहां के प्रवासी हिन्दुओं के एक हिस्से ने हाल में 7-9 सितंबर 2018 को शिकागो में वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस का आयोजन किया, जिसमें आरएसएस मुखिया मोहन भागवत को भी आमंत्रित किया गया।

कुछ अप्रवासी भारतीय, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में एनआरआई कहा जाता है, यह मानते हैं कि संघ परिवार ही हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करता है। संघ को हिन्दुओं का प्रतिनिधि संगठन माना जाना अपने आप में आश्चर्यजनक है क्योंकि वह हिन्दू धर्म नहीं बल्कि उसके ब्राह्मणवादी संस्करण का प्रतिनिधित्व करता है। स्वाधीनता संग्राम के दौरान देश के अधिकांश हिन्दुओं ने महात्मा गांधी को अपना नायक स्वीकार किया और स्वाधीनता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। इसके विपरीत, आरएसएस, जिसका एजेंडा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना है, ने स्वाधीनता संग्राम से सुरक्षित दूरी बनाए रखी। वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस के आयोजनकर्ताओं को शायद यह पता ही होगा कि बीसवीं सदी के महानतम हिन्दू, मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या जिस व्यक्ति ने की थी, वह आरएसएस की हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा के प्रति पूर्ण निष्ठा रखता था।

शिकागो, अमेरिका में आयोजित विश्व हिंदू कांग्रेस को संबोधित करते आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

बहरहाल, वर्ल्ड कांग्रेस को संबोधित करते हुए भागवत ने कई ऐसी बातें कहीं जो अन्य धर्मों और अन्य विचारधाराओं में आस्था रखने वाले भारतीयों के प्रति घोर अपमानजनक थीं। हिन्दुओं की एकता पर जोर देते हुए भागवत ने कहा, ‘‘अगर शेर अकेला हो तो जंगली कुत्ते भी उस पर हमला कर उसे पराजित कर देते हैं‘‘। कुछ व्यक्तियों का मानना है कि आरएसएस प्रमुख की यह टिप्पणी, संघ की इस सोच का प्रकटीकरण थी कि मुस्लिम आक्रांताओं ने देश पर हमले किए और अपनी छाप यहां छोड़ी और यह भी कि ईसाई मिशनरियां, देश के निर्धन इलाकों में हिन्दुओं को ईसाई बनाने में जुटी हैं। उन्होंने खेती को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों और उन्हें खत्म करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों की भी चर्चा की। संभवतः, उनके लिए भारत के धार्मिक अल्पसंख्यक कीट हैं।

भारतीय इतिहास की अपनी समझ और अपनी विचारधारा को अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हम हजारों सालों से दुःख और कष्ट क्यों भोग रहे हैं? हमारे पास सब कुछ है, हम सब कुछ जानते हैं। हमने उस ज्ञान को खो दिया जो हमारे पास था। हमने एक साथ मिलकर काम करना बंद कर दिया‘‘।

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उनके भाषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश के कई राजनैतिक दलों ने उनकी टिप्पणियों और विचारों पर क्षोभ व्यक्त किया। एनसीपी के नवाब मलिक ने कहा, ‘‘भाजपा और आरएसएस की विचारधारा हिन्दू-विरोधी है और संघ ही जाति की राजनीति करता है। अगर वे हिन्दुओं को जाति के आधार पर विभाजित करना बंद कर दें तो हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोग भी शेर बन जाएंगे”। कांग्रेस के सचिन सावंत ने कहा, ‘‘आरएसएस की विचारधारा, हिन्दू-विरोधी है। आरएसएस, नीची जातियों और अन्य धर्मों के प्रति अपनी घृणा के लिए जाना जाता है। यह शर्मनाक है कि आरएसएस के मुखिया ने अन्य धर्मों के बारे में नितांत अशोभनीय टिप्पणियां कीं”।

भारीपा बहुजन महासंघ के प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि ‘‘भागवत ने देश के विपक्षी दलों को जंगली कुत्ता बताया। मैं भागवत की इस मानसिकता की घोर निंदा करता हूं। उन्हें कोई हक नहीं कि वे विपक्षी दलों को इस तरह के अपमानजनक विशेषण से संबोधित करें”।

यह दिलचस्प है कि वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस के आयोजन स्थल पर लगे पोस्टर, बिना किसी लागलपेट के आरएसएस के एजेंडे को प्रतिबिंबित कर रहे थे। लव जिहाद से संबंधित एक पोस्टर में मंसूर अली खान पटौदी व शर्मिला टैगोर के विवाह को लव जिहाद बताया गया था। एक पोस्टर में यह पूछा गया था कि क्या सैफ अली खान अपनी पत्नी करीना कपूर को मुसलमान बनने पर मजबूर करेंगे? और यह भी कि उन्होंने अपने बच्चे को एक अरबी नाम (तैमूर) क्यों दिया। पोस्टरों से यह स्पष्ट था कि हिन्दू कांग्रेस के आयोजनकर्ता यह मानते हैं कि अंतर्जातीय विवाह, हिन्दुओं का अंत कर देंगे। आयोजनकर्ताओं की मानसिकता विशुद्ध पितृसत्तात्मक थी। वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस के इन दावों और घोषणाओं को अमेरिका में रहने वाले प्रगतिशील हिन्दुओं ने चुनौती दी। भारतीय मूल के लोगों के एक समूह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि आरएसएस की राजनीति ‘‘हिन्दू श्रेष्ठतावादी विचारधारा से प्रेरित है और वह भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता और उनके मानवाधिकारों को कुचलना चाहता है”। शिकागो के ‘साउथ एशियन्स फॉर जस्टिस’ संगठन के युवा कार्यकर्ताओं ने यह नारा बुलंद किया कि, ‘‘आरएसएस वापस जाओ, हमारे शहर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है‘‘ व ‘‘हिन्दू फासीवाद को रोको”। इन प्रदर्शनकारियों की सम्मेलन में भाग लेने आए प्रतिभागियों से झड़पें भी हुईं।

विश्व हिंदू कांग्रेस के दौरान लगे ‘आरएसएस वापस जाओ के नारे’ (साभार : Worldusheadlines.com)

कुल मिलाकर, वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस जैसे संगठन, अमेरिका में हिन्दुओं के पहचान के संकट का लाभ उठाना चाहते हैं। जो हिन्दू अमेरिका गए उन्हें वहां पहुंचने के बाद एक सांस्कृतिक सदमा लगा। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वहां सामाजिक व लैंगिक असमानता के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने पाया कि वहां महिलाएं अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। यह सब उनकी मानसिकता से मेल नहीं खाता था। ये वे लोग हैं जो अपनी मातृभूमि से जुड़े तो रहना चाहते हैं परंतु धन का लोभ उन्हें अमेरिका छोड़ने नहीं दे रहा है। वे हैरान-परेशान हैं क्योंकि वे जातिगत और लैंगिक असमानता के आदी हैं, जो अमेरिका में नहीं है। आरएसएस उनके लिए मरहम का काम कर रहा है। वह भारत के अतीत का महिमामंडन कर यहां व्याप्त सामाजिक और लैंगिक असमानता पर पर्दा डालना चाहता है। आरएसएस मार्का हिन्दुत्व उन्हें वह पहचान देता है, जिससे वे अपने मूलभूत मूल्यों को सुरक्षित रखते हुए पैसा कमा सकते हैं। इसलिए, हिन्दुओं के इस तबके के लिए आरएसएस, हिन्दू धर्म का पर्यायवाची है।

इसी रणनीति का प्रयोग कर अमेरिका में विश्व हिन्दू परिषद और उसके जैसे कई अन्य संगठनों ने अपनी जड़ें जमाईं। चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में अप्रवासी भारतीय, भाजपा के लिए प्रचार करने भारत आते हैं। संघ परिवार और भाजपा को वे खुले हाथों से आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवाते हैं। आरएसएस की तर्ज पर गठित एक संस्था हिन्दू स्वयंसेवक संघ अमेरिका में हजारों शाखाएं चला रही है।

आरएसएस मुखिया ने अमेरिका में जो कुछ कहा, वह निश्चित रूप से भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नीचा दिखाने का प्रयास था। हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि अमेरिका में सक्रिय साउथ एशियन्स फॉर जस्टिस जैसे प्रगतिशील संगठन, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा देते रहेंगे और आरएसएस की उस विघटनकारी सोच का डटकर मुकाबला करेंगे जिसे संघ, भारत की सरहदों से हजारों मील दूर फैलाना चाहता है।

(काॅपी संपादन : एफपी डेस्क, अनुवाद : अमरीश)


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लेखक के बारे में

राम पुनियानी

राम पुनियानी लेखक आई.आई.टी बंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।

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