h n

आरक्षण कोई भीख नहीं, बल्कि संरक्षण की व्यवस्था है : अनुप्रिया पटेल

केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल मानती हैं कि आज भी वे अपने पिता सोनेलाल पटेल के बताये रास्ते पर चल रही हैं। एससी-एसटी और ओबीसी उनकी प्राथमिकता में हैं। फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत

आरक्षण को लेकर जब-तब दबी जुबां सवाल खड़े किए जाते हैं। कभी कोई इसके तौर-तरीके पर सवाल खड़े करता है तो कभी कोई समीक्षा और पुर्नसमीक्षा की बात करता है लेकिन हर बार ऐसे सवाल करने वालों को मुंह की खानी पड़ती है। ऐसा संभव केवल और केवल समाज के निचले तबके की एकजुटता की वजह से हो पा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल का तो साफ मानना है कि आरक्षण को लेकर सवाल करने वाले बिना होम वर्क वाले स्टूडेंट की तरह होते हैं। होम वर्क करने वाला स्टूडेंट इस तरह के सवाल खड़े कर ही नहीं सकता है। इस विषय पर केंद्रीय मंत्री से फारवर्ड प्रेस की हुई बातचीत के संपादित अंश :  

क्या आप मौजूदा आरक्षण व्यवस्था से संतुष्ट हैं?   

आरक्षण को सबसे पहले समझने की जरूरत है। आरक्षण कोई भीख नहीं है बल्कि यह संरक्षण की व्यवस्था है। इसका उद्देश्य सरकारी विभागों के उच्च पदों तक समाज के निचले तबके की हिस्सेदारी सुनिश्चित कराना है ताकि उनके बेहतर जीवन यापन के लिए सही रणनीति तैयार की जाए और सही ढंग से लागू की जाए। इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं, वक्त जरूर लग रहा है, लेकिन भरोसा है कि हम सब बाबा साहेब के सपने को जरूर साकार करने में सफल रहेंगे। देर है, अंधेर नहीं। समाज के निचले तबकों को मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन यह भी सच है कि इन प्रयासों को और तेज करने की जरूरत है।  

केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल

आरक्षण के अब तक के सफर को अगर आपसे कहा जाए कि दस में से कितने नम्बर देंगी तो आपका क्या जवाब है ?

वैसे तो अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था 68 साल पहले ही लागू कर दी गई थी, हां- अन्य पिछड़े वर्ग ओबीसी के लिए जरूर 28 साल पहले आरक्षण को मंजूरी दी गई। लेकिन आज भी इनकी हिस्सेदारी जितनी होनी चाहिए, उससे काफी कम है। मिसाल के तौर पर अगर हम केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों के पदों विशेषकर अधिकारी वर्ग के पदों पर गौर करें तो साफ हो जाएगा कि अभी संतुलन में वक्त लगेगा। रिकार्ड से साफ है कि एससी वर्ग के महज 8.63 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग के महज 5.40 प्रतिशत अधिकारी ही इन जगहों पर पहुंच पाए हैं। लेकिन उम्मीद है कि जल्द इसमें तेजी आएगी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने का कार्य किया गया है।  

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

आपको लगता है कि आरक्षण का लाभ कुछ को ही मिल पा रहा है? एक तबका फायदा उठा रहा है लेकिन दूरदराज नीचे बैठे तबके का कुछ नहीं हो रहा है? उनका आज भी हाथ खाली है?

यह तो स्वाभाविक है कि जो थोड़ा जागरूक होता है, किसी भी सुविधा का लाभ वो पहले प्राप्त करता है, लेकिन अब धीरे-धीरे समाज के सभी तबके के लोग जागरूक हो रहे हैं और अपने हक-हुकूक को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, इसका उन्हें धीरे-धीरे लाभ भी प्राप्त हो रहा है।

एससी/एसटी एक्ट और उसके संशोधनों पर आपकी क्या राय है? क्या कानून में संशोधन तत्काल जरूरी था?

आज भी हमारे देश में अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के खिलाफ आए दिन घटनाएं होती हैं। उन्हें घोड़ी पर चढ़ने नहीं दिया जाता है। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता है। आंकड़े तो यही कहते हैं कि उनके खिलाफ लगातार हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे में तत्काल विधेयक लाना जरूरी था, लाया गया। आगे जरूरत महसूस होगी तो उसके लिए भी प्रयास किए जाएंगे।  

यह भी पढ़ें : संसद में उठी एससी-एसटी एक्‍ट को संविधान की नौवीं अनुसूची में रखने की मांग

पिछले दिनों बीएचयू में छात्रों ने आपका रास्ता रोका था और उनलोगों ने एससी/एसटी एक्ट वापस लेने के नारे लगाए थे। आपका इस घटना के संबंध में क्या कहना है?    

लोकतंत्र में अपनी बात रखने का सबको अधिकार है, लेकिन पिछले दिनों बीएचयू में जिस तरह की घटना हुई, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक सोची-समझी रणनीति के तहत की गई। मैं, बस इतना कहना चाहती हूं कि किसी भी निर्दोष के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज नहीं होने दिया जाएगा।

आप युवा नेत्री हैं, आपके पिता सोनेलाल पटेल समाज के लिए ताउम्र संघर्ष करते रहे। अपने पिता के राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की दिशा में आपकी क्या रणनीति है?

देखिए, मेरे पिताजी की असामयिक निधन की वजह से मुझे राजनीति में अचानक आना पड़ा। पिताजी के बताए आदर्शों पर चलने की कोशिश कर रही हूं। पिताजी जीवन भर कमेरा समाज, गरीब, किसान, दबे-कुचलों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे। आज हमारे पिताजी हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा हमारे साथ है। मैं उसी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हूं। एनडीए सरकार में अपना दल(एस) सहयोगी पार्टी के तौर पर शामिल है। सरकार में शामिल होने के बावजूद हम अपने एजेंडे पर चलते हुए कमेरा समाज, किसान, गरीबों के बेहतर जीवन के लिए उनसे संबंधित समस्याओं को सदैव केंद्र और राज्य सरकार के सामने उठाते रहेंगे।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

संबंधित आलेख

पुष्यमित्र शुंग की राह पर मोदी, लेकिन उन्हें रोकेगा कौन?
सच यह है कि दक्षिणपंथी राजनीति में विचारधारा केवल आरएसएस और भाजपा के पास ही है, और उसे कोई चुनौती विचारहीनता से ग्रस्त बहुजन...
महाराष्ट्र : वंचित बहुजन आघाड़ी ने खोल दिया तीसरा मोर्चा
आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने अपनी ओर से सात उम्मीदवारों की सूची 27 मार्च को जारी कर दी। यह पूछने पर कि वंचित...
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा में मेरी भागीदारी की वजह’
यद्यपि कांग्रेस और आंबेडकर के बीच कई मुद्दों पर असहमतियां थीं, मगर इसके बावजूद कांग्रेस ने आंबेडकर को यह मौका दिया कि देश के...
इलेक्टोरल बॉन्ड : मनुवाद के पोषक पूंजीवाद का घृणित चेहरा 
पिछले नौ सालों में जो महंगाई बढ़ी है, वह आकस्मिक नहीं है, बल्कि यह चंदे के कारण की गई लूट का ही दुष्परिणाम है।...
कौन हैं 60 लाख से अधिक वे बच्चे, जिन्हें शून्य खाद्य श्रेणी में रखा गया है? 
प्रयागराज के पाली ग्रामसभा में लोनिया समुदाय की एक स्त्री तपती दोपहरी में भैंसा से माटी ढो रही है। उसका सात-आठ माह का भूखा...