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छपरा में बड़ी संख्या में दलित-पिछड़ों ने किया बौद्ध धर्म स्वीकार

बिहार के छपरा जिले में बीते 14 अक्टूबर को बड़ी संख्या में दलितों-पिछड़ों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। यह इसलिए भी खास है क्योंकि हाल के वर्षों में दलितों पर अत्याचार के कई मामले प्रकाश में आये हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर

बीते 14 अक्टूबर 2018 को बिहार के छपरा जिले में दो हजार से अधिक दलित-पिछड़ों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया। यह घटना छपरा जैसे जिले के लिए कई मायनों में खास है। मसलन छपरा वर्तमान में लालू प्रसाद के अवसान के बाद भाजपा का गढ़ बन चुका है। साथ ही हाल के वर्षों में इस जिले में दलित उत्पीड़न के कई मामले सामने आये हैं। इसी वर्ष अप्रैल में मशरख प्रखंड के डूमरसन चौक पर सामंती विचारधारा के लोगों ने बाबा साहब डाॅ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा को खंडित कर दिया था। इसके ठीक पहले मार्च में भी इसी तरह की एक घटना मढ़ौरा प्रखंड कार्यालय के समीप घटित हुई थी।

जाहिर तौर पर वर्तमान में जबकि सामंती ताकतों का वर्चस्व है, दलितों-पिछड़ों द्वारा बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म स्वीकार किये जाने की घटना को प्रतिरोध के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय बौद्ध महासभा, आंबेडकर रविदास महासंघ, भारतीय बौद्ध जागरण मंच एवं डॉ. बीआर आंबेडकर परिगणित कल्याण संघ के तत्वाधान में महात्मा बुद्ध की देशना एवं धम्म दीक्षा समारोह का आयोजन शहर के केंद्र में जिला स्कूल प्रांगण में किया गया। कार्यक्रम के दौरान लोगों ने बाबा साहब एवं महात्मा बुद्ध के पदचिन्हों पर चलने की शपथ ली। उन्हें नागपुर के धम्म गुरू भिखुनी विजया मैतरिया ने धम्म की दीक्षा दी। इस मौके पर बौद्ध भिखुनी ने कहा कि महात्मा बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर ही समाज में फैले असमानता, वर्ण-व्यवस्था, ढ़ोंग-पाखंड, बली प्रथा, अंधविश्वास एवं सामाजिक कुरीतियों को दूर किया जा सकता है।

छपरा में बौद्ध धर्म स्वीकार करने पहुंचे दलित और पिछड़े वर्ग के लोग

लोगों ने जताया बुद्ध और आंबेडकर में विश्वास

बौद्ध धर्म स्वीकार करने वालों में कई ऐसे रहे जिन्होंने पूरे परिवार के साथ शिरकत की। इनमें से एक छपरा जिले के सदर प्रखंड के कुतुबपुर निवासी सह आंबेडकर रविदास महासंघ के प्रधान महासचिव रामलाल राम भी हैं। उन्होंने कहा कि समाज में फैले वर्ण व्यवस्था, भेदभाव, अंधविश्वास एवं सामंतवाद के कारण पुरे परिवार के साथ धर्मान्तरण किया है। साथ ही कहा कि वर्तमान परिवेश में समाज में असमानता की खाई और अधिक बढ़ गई है। खासकर सामान्य वर्ग के लोग अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के साथ काफी भेदभाव कर रहे है।

बौद्ध धम्म की दीक्षा देते धम्म गुरू भिखुनी विजया मैतरिया

वहीं जिले के सदर प्रखंड के घेघटा निवासी अमर नाथ राम ने पूरे परिवार के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद बताया कि बाबा साहब डॉ. बी.आर. आंबेडकर के पद चिन्हों पर चलकर ही समाज में समानता हो सकती है। इसलिए उन्होंने महात्मा बुद्ध के बताये 22 सम्यक संदेश पर चलने का संकल्प लिया है। इसी प्रकार डोरीगंज चिरांद निवासी रामनाथ मांझी ने बताया कि समाज में व्याप्त असमानता, अंधविश्वास, पाखंड व सामाजिक कुरीतियों के कारण धर्म परिवर्तन किया है। उन्होंने कहा कि अाज के परिवेश में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों पर अत्याचार में काफी वृद्धि हुई है। ऐसे में बाबा साहब एवं महात्मा बुद्ध के चलकर समानता का संदेश देने को लेकर धर्म परिवर्तन किया है।

यह भी पढ़ें : सत्ता बदलते ही बिहार में दलितों पर अत्याचार बढ़ा

आरएसएस खेमे में खलबली

बड़ी संख्या में दलितों और पिछड़ों के द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार किये जाने पर आरएसएस के खेमे में खलबली मची है। छपरा में बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर आरएसएस ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी है। हालांकि इस संबंध में किसी भी राजनेता ने अधिकारिक बयान नहीं दिया है। इस संबंध में छपरा के सांसद राजीव प्रताप रूडी ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत के दौरान बड़ी संख्या में दलितों और पिछड़ों द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार किये जाने की जानकारी नहीं होने की बात कही। वहीं सारण प्रमंडल के ही महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इन्कार किया।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

नागमणि

नागमणि बहुजन विमर्श और समस्याओं पर सतत लिखने वाले छपरा, बिहार के स्थानीय पत्रकार हैं।

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