राजस्थान उच्च न्यायालय में मनु की प्रतिमा लगी हुई है। राजस्थान ज्यूडिशियल ऑफिर्स एसोशिएशन ने 1989 में मुख्य न्यायाधीश की इजाजत से उच्च न्यायालय परिसर में मनु की प्रतिमा स्थापित की थी। तभी से इसका विरोध हो रहा है। इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दाखिल की गई है। 8 अक्टूबर 2018 को दो महिलाओं शीला बाई और कांता रमेश अयारे ने मनु की प्रतिमा के मुंह पर कालिख पोत दिया। ये दोनों महिलायें महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की है। राजस्थान पुलिस ने इन महिलाओं काे गिरफ्तार कर लिया है। इनके संबंध में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार ने मुकदमा दर्ज कराया है।
गौर तलब है कि बहुजन संगठन लंबे समय से मनु की प्रतिमा उच्च न्यायालय परिसर के हटाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश की सर्वोच्च संहिता संविधान है न कि मनुस्मृति। भारतीय न्यायालयों के निर्णय मनुस्मृति या किसी अन्य स्मृतियों के आधार पर नहीं दिए जाते हैं, उसका आधार भारत का संविधान और उसके आलोक में बने कानून हैं। ऐसी स्थिति में किसी उच्च न्यायालय मे देश की बहुजन आबादी (शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं) की दासता और ब्राह्मण सर्वोच्चता के संस्थापक और समर्थक मनु की प्रतिमा लगाये रखने का कोई औचित्य नहीं बनता है।
भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. आंबेडकर ने भी मनु का खुलकर विरोध किया था। 1927 में ही आगे बढ़कर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मनु्स्मृति का दहन किया था। अर्जक संघ के संस्थापक रामस्वरूप वर्मा भी रामायण और मनुस्मृति का दहन करते थे।
बहुजन संगठनों का कहना है कि उच्च न्यायालय परिसर में मनु की मूर्ति का होना संविधान और डॉ. आंबेडकर के समता, स्वतंत्रता और बंधुता की भावना के खिलाफ है। मनु न्याय नहीं अन्याय का प्रतीक है। किसी भी अन्याय के प्रतीक का न्याय के परिसर में क्या स्थान हो सकता है। पिछले वर्ष इस प्रतिमा को हटाने के लिए जनांदोलन की घोषणा भी हुई थी।
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इन दो महिलाओं द्वारा मनु् के चेहरे पर कालिख पोतने के बाद एक बार फिर मनुस्मृति चर्चा में आ गई है। आइए देखते हैं कि ब्राह्मणों, शूद्रों और महिलाओं के बारे में मनुस्मृति के क्या विचार हैं? डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब ‘प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति’ (2012 में प्रकाशित) और रामस्वरूप वर्मा ने अपनी किताब ‘मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक’ (2017 में प्रकाशित) में मनुस्मृति के प्रावधानों पर विस्तार से विचार किया है।
ब्राह्मणों के बारे में मनु की राय
मनु ने लिखा है कि ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने के कारण, ज्येष्ठ होने से और वेद धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही संपूर्ण सृष्टि का स्वामी है-
उत्तमांड्गोंद्भवाज्ज्यैवष्ठ्याद् ब्राह्मणश्चैव धारणात् ।
सर्वस्यैंवास्य सर्गस्य धर्मतो ब्राह्मण: प्रभु:।।
आगे मनु कहते हैं कि समस्त सृष्टि में प्राणधारी जीव श्रेष्ठ है। प्राणियों में बुद्धिजीवी श्रेष्ठ हैं, बुद्धिजीवियों में मनु्ष्य श्रेष्ठ है और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है। इतना ही नहीं, मनु का कहना है कि पृथ्वी पर जो कुछ है, वह सब ब्राह्मणों का है। यानी ब्राह्मण अच्छे कुल में जन्म लेने के कारण धरती की सभी वस्तुओं का स्वामी है-
सर्व स्वं ब्राह्मणस्येद यत्किंचिज्जगतीगतम् ।
श्रैष्ठन्येनाभिजनेनेदं सर्वं ब्राह्मणोंअर्हति ।।
मनु यह कहते हैं कि जिस प्रकार वैदिक और अवैदिक रीति से स्थापित की हुई अग्नि महान देवता है। उसी प्रकार ब्राह्मण विद्वान हो या मूर्ख, वह महान देवता है। इस कारण से हमेशा ब्राह्मण को परम देवता की तरह पूजना चाहिए-
सवर्था ब्राह्मणा : पूज्या परमं दैवतं हितत्
इतना ही नहीं, मनु ब्राह्मणों को सभी वर्णों का स्वामी भी घोषित करते हैं। साफ शब्दों में लिखा है कि जाति की विशिष्टता, उत्पत्ति स्थान की श्रेष्ठता, अध्ययन एवं व्याख्यान आदि नियमों द्वारा आचार धारण करने और जनेऊ संस्कार आदि की श्रेष्ठता से ब्राह्मण ही सबका स्वामी है-
वेशेष्यात्प्रकृतिश्रैष्ठ्यान्यियमस्य़ च धारणात ।
संस्कार विशेष वर्णानां ब्राह्मण: प्रभु ।।
मनु का कहना है कि राजा किसी भी ब्राह्मण को प्राणदंड न दे, चाहे उस ब्राह्मण ने कितना भी बड़ा अपराध किया हो। उसे ऐसे ब्राह्मण अपराधी को अपनी संपत्ति सहित और सकुशल राज्य से बाहर कर देना चाहिए।
शूद्रों के बारे में मनु की राय
जबकि शूद्रों के बारे में मनुस्मृति की राय है कि शूद्र नीच, किसी उच्च पद के अयोग्य, अशिक्षित, संपत्ति रहित और अपमानित व्यक्ति के रूप में अपना जीवन व्यतीत करेगा। उसका तथा उसकी संपत्ति का जबरन इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि कोई शूद्र अभिमानपूर्वक ब्राह्मण को धर्म का उपदेश देने की जुर्रत करता है, तो राजा का कर्तव्य है कि उसके मुंह और कानों में खौलता हुआ तेल डलवा दे-
धर्मोपदेशं दर्पेण विप्राणामस्य कुर्वत:।
तप्तमासेचेत्तैलं वक्त्रे श्रोते च पार्थिव :।।
किसी भी शूद्र के पास संपत्ति इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि धनी शूद्र घमंडी हो जाता है और वह अपने उद्दंड या उपेक्षापूर्ण व्यवहार से ब्राह्मणों को कष्ट पहुंचाता है-
शक्तेनापि हि शूद्रेण न कार्यो धनसंजय :।
शूद्रो हि धनसाध्य ब्राह्मणानेव वाधते ।।
मनु का कहना है कि शूद्र किसी द्विज और उसकी जाति का नाम धृष्टतापूर्वक लेता है, तो उसके मुंह में दस अंगुली लंबी दहकती हुई, लोहे की कील डाल देनी चाहिए –
नामजातिग्रहं त्वेषां अभिद्रोहेण कुर्वतः ।
निक्षेप्योऽयोमयः शङ्कुर्ज्वलन्नास्ये दशाङ्गुलः । ।
मनु का कहना है कि ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए सिर्फ एक कर्म निर्धारित किया है। वह है विनम्र होकर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीन वर्णों की सेवा करना-
एकं एव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् ।
एतेषां एव वर्णानां शुश्रूषां अनसूयया । ।
महिलाओं के बारे में मनु की राय
डॉ. आंबेडकर ने लिखा कि मनु जितना शूद्रों के प्रति जितना कठोर है, स्त्रियों के प्रति उससे तनिक भी कम कठोर नहीं है। स्त्रियों के संदर्भ में मनु पुरूषों को यह आदेश देता है कि परिवार के पुरूषों का यह कर्तव्य है कि वे अपने परिवार की स्त्रियों को दिन-रात अपने अधीन रखें। यदि स्त्रिया विषय-वासना की ओर झुकती हैं, तो पुरूषों का कर्तव्य है कि उन पर नियंत्रण करें-
अस्वतंत्रा: स्त्रियःकार्योःपुरुषैःस्वैर्द्दिवानिशम्।
विषयेषुचसञ्ज्ञन्त्यःसंस्थाप्याञात्मनोवशे॥
मनु साफ शब्दों में कहते हैं कि स्त्री को कभी भी स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहिए। स्त्री को बचपन में पिता, युवावस्था में पति और जब उसका पति मर जाता है, तो पुत्र के नियंत्रण में रहना चाहिए-
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।
पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ॥
मनु का यह भी कहना है कि किसी लड़की, नवयुवती को या वृद्धा को भी अपने घर में स्वतंत्रतापूर्वक कोई काम नहीं करना चाहिए।
मनु स्त्रियों को स्वतंत्रता न देने का सबसे बड़ा कारण यह बताते हैं कि स्त्रियां दूसरे पुरूषों को आकृष्ट करने और संभोग के लिए हमेशा आतुर रहती हैं। मनु लिखते हैं कि न तो रूप का ध्यान रखती हैं, न आयु का। कोई भी पुरूष हो सुंदर या कुरूप वह उसके साथ संभोग के लिए आतुर रहती हैं-
नैता रूपं परीक्षन्ते नासां वयसि संस्थितिः ।
सुरूपं वा विरूपं वा पुमानित्येव भुञ्जते ।। ।
मनु का कहना है कि स्त्रियों में आठ अवगुण हमेशा होते हैं। जिसके चलते उनके ऊपर विश्वास नहीं किया जा सकता है। वे अपने पति के प्रति भी वफादार नहीं होती हैं। मनु स्मृति का आदेश है कि पति चाहे जैसा भी हो, पत्नी को उसकी देवता की तरह पूजा करनी चाहिए। मनु किसी भी स्थिति में पत्नी को पति से अलग होने का अधिकार नहीं देता है। मनु स्मृति का आदेश है कि पति चाहे दुराचारी, व्यभिचारी और सभी गुणों से रहित हो तब भी साध्वी स्त्री को हमेशा पति की सेवा देवता की तरह मानकर करनी चाहिए-
अशील: कामवृत्तो वा गुणैर्वा परिवर्जित : ।
उपचर्म: स्त्रिया साध्व्या सततं देववत्पत्ति : ।।
मनु शूद्रों की तरह स्त्रियों को भी शिक्षा और संपत्ति के अधिकार से वंचित करता है। वह पुरूषों को स्त्रियों को पीटने का भी अधिकार देता है।
पूरी मनु स्मृति शूद्रों और स्त्रियों के प्रति घृणा से भरी हुई है। दुर्भाग्य यह है कि आज भी सवर्ण पुरूष उन्हें महान ऋषि और महान संविधान निर्माता मानते हैं। आरएसएस के विचारक उन्हें आदर्श संविधान निर्माता और दार्शनिक कहते हैं।
कहना अतिश्योक्ति नहीं कि जिन स्त्रियों को मनु ने अपनी मनुस्मृति के माध्यम से कलंकित किया है। उन्हीं में से शायद कुछ स्त्रियों ने उसके चेहरे पर कालिख पोतने की कोशिश की है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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