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राजस्थान : चुनावी मौसम में ‘महारानी’ को आयी आदिवासी नायकों की याद

विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया आदिवासी नायकों को याद कर रही हैं। वह पांचवी अनुसूची को लेकर भी बयान दे रही हैं। जबकि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कभी भी आदिवासियों की सुध नहीं ली। ये आदिवासी नायक कौन हैं और क्यों याद कर रही हैं वसुंधरा राजे सिंधिया, बता रहे हैं कुमार समीर :

राजस्थान में विधानसभा चुनाव ने दस्तक दे दी है। 7 दिसंबर, 2018 को राजस्थान में वोट डाले जाएंगे। यही कारण है कि वहां चुनावी माहौल गरमाने लगा है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सभी जोर-शोर से अपना गणित आजमाने में जुट गये हैं। प्रदेश की सत्ता पर काबिज वसुंधरा राजे सरकार हर छोटे-बड़े वर्ग को साधने की कोशिश में है और चुनावी सौगातों की घोषणा भी खूब हो रही है। राजे सरकार की पैनोरमा पॉलिसी व नामकरण पॉलिसी को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है।

पैनरोमा पॉलिसी के तहत जहां हर वर्ग को साधने के लिए उनके लोक देवताओं, महापुरुषों और साधु-संतों के पैनोरमा बनवाए गए हैं, वहीं आदिवासी समुदाय को लुभाने के लिए उन क्षेत्रों में स्थित आवासीय विद्यालयों का नामकरण आदिवासी महापुरुष और विभूतियों के नाम पर किया गया है। राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सिरोही, पाली और चित्तौरगढ़ में संचालित आश्रम, छात्रावासों, आवासीय विद्यालयों का नाम आदिवासी महापुरुष राणा पूंजा, राजा बांसिया, रानी देवली मीणा और वीरबाला कालीबाई के नाम किया गया है।

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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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