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सलाखों के पीछे, महिषासुर की बेटी, जारी है संघर्ष

ब्राह्मणवादियों में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 'नारी शक्ति' का सम्मान हासिल कर चुकीं सुमन सौरभ का खौफ इतना गहरा और असरकारी था कि वह इस समय हत्या की सुपारी देने के आरोप में जेल में हैं। बीते 27 सितंबर 2018 को जमानत याचिका भी नवादा जिला कोर्ट ने खारिज कर दी। फारवर्ड प्रेस की खबर :

फॉलोअप : महिषासुर-दुर्गा विवाद

महिषासुर दिवस का पहला चर्चित आयोजन वर्ष अक्टूबर 2011 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ था। उसके बाद से यह सांस्कृतिक आंदोलन बढ़ता ही गया है। आज देश के सैकड़ों कस्बों-गांवों में ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक वर्चस्व से मुक्ति का यह उत्सव मनाया जाने लगा है। लेकिन इन वर्षों में इससे संबंधित कई अन्य घटनाक्रम भी हुए हैं। कई जगहों पर दुर्गा के खिलाफ टिप्पणी करने पर मुकदमे दर्ज हुए। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में महिषासुर और रावेन के अपमान के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई गई। कुछ कस्बों में दुर्गा के कथित अपमान के खिलाफ प्रदर्शन किए गये तो कुछ जगहों पर महिषासुर के सम्मान में भी बड़ी-बड़ी रैलियां निकाली गईं। ‘महिषासुर-दुर्गा विवाद’ से संबंधित इस फॉलोअप सीरिज़ में हम उन घटनाओं के पुनरावलोकन के साथ-साथ मौजूदा स्थिति की जानकारी दे रहे हैं – संपादक


सुमन की जमानत याचिका खारिज, लेकिन हौसला बुलंद

  • प्रेमा नेगी

दलित-बहुजन नया विमर्श गढ़ें, नई संस्कृति दें, अपने नायक खुद चुने और सदियों से चल रही जातिवादी और आपराधिक परंपराओं को चुनौती दें तो वह सवर्ण समाज के दुश्मन तो मान ही लिए जाते हैं, सत्ता और राजनीतिक खेमे में भी उनकी छवि बेवजह का मुद्दा उठाने वालों की बन जाती है। सवर्ण मानसिकता के विमर्शकारी भी उन्हें गड़े मुर्दे उखाड़ने वाला कहने से बाज नहीं आते। पर अपने समाज के ये नए साहसी नायक इस बात को बखूबी जानते हैं और समझते हैं कि अपनी गौरवमयी परंपरा को अगर ताकत के साथ स्थापित नहीं किया गया तो उनके शोषण से सराबोर बीती सदियां आने वाली अनगिनत सदियों में बदलती रहेंगी और वे हमेशा सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में एक पायदान और कंधे की तरह इस्तेमाल होते रहेंगे।

बिहार की डॉ. सुमन सौरभ को भी अपने समुदाय को सवर्णों का पायदान और कंधा बने रहने देने से गहरा ऐतराज था, जबकि सत्ता और सवर्णों को उनके इस समझदारी से खौफ था। डॉक्टर सुमन का खौफ इतना गहरा और असरकारी था कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा ‘नारी शक्ति’ का सम्मान हासिल कर चुकीं सुमन इस समय हत्या की सुपारी देने की जुर्म में जेल में हैं। डॉ. सुमन की 27 सितंबर को जमानत याचिका भी नवादा जिला कोर्ट ने खारिज कर दी।

कौन हैं डॉ. सुमन सौरभ?

वर्ष 2016 में 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों महिला सशक्तीकरण और तमाम अन्य तरह के सामाजिक कामों में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाने के लिए डॉ. सुमन सौरभ को ‘नारी शक्ति’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। खुद को सगर्व महिषासुर की बेटी कहने वाली डॉ. सुमन आजकल जेल में हैं। आरोप है कि उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल की जिला इकाई महासचिव कैलाश पासवान की हत्या करवाने के लिए सुपारी दी थी। इतना ही नहीं यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि महिला सशक्तीकरण के नाम पर वह देह व्यापार संचालित करती हैं।

पुलिस की हिरासत में सुमन सौरभ

यह दुष्प्रचार उस बहादुर महिला पर लगाया जा रहा है जिसने नवादा जैसे पिछड़े इलाके जहां आज भी सामंतियों का वर्चस्व है, वहां महिषासुर दिवस का आयोजन किया और सार्वजनिक तौर पर खुद को महिषासुर की बेटी कहा। ब्राह्मणवाद और सामंतवाद के खिलाफ लड़ने का यह जज्बा उन्हें अपने पिता कामेश्वर महतो से विरासत में मिली। 70-80 के दशक में गांव के दबंग जाति के लोगों के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई तो एक हत्या के एक मामले में उन्हें फंसा दिया गया, जिसके लिए उन्हें फांसी की सजा मिली, मगर बाद में राष्ट्रपति की दया याचिका से उनकी मौत की सजा माफ हुई। पिता की अनुपस्थिति में उनकी परिवरिश एक दलित वर्ग के मुसहर जाति के परिवार ने किया।

27 सितंबर को इस मसले पर जिला अदालत नवादा में हुई सुनवाई में डॉ. सुमन की बेल याचिका खारिज कर दी गई है। उनके पिता कामेश्वर महतो कहते हैं कि अब सुमन की जमानत के लिए हम हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे, जरूरत पड़ी तो सुमन की बेगुनाही साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक भी जाएंगे।

16 जुलाई को नवादा कोर्ट में डॉ. सुमन ने सरेंडर किया तो मीडिया को बताया कि उन्हें राजद नेता कैलाश पासवान के अपहरण के बाद हत्या मामले में जान-बूझकर फंसाया जा रहा है, क्योंकि मैं मनुवादियों, सत्ताधारी पार्टी, हिंदुवादियों, ब्राह्मावादियों के गले की फांस बन रही थी। मुझे अपने रास्ते से हटाने के लिए यह षड्यंत्र बुना गया है। मैं बेकसूर हूं।’  

यही बात दावे के साथ ‘बिहार सेवा संस्थान’ को संचालित करने वाली डॉ. सुमन के क्षेत्र के वे दलित-दमित-पिछड़े-गरीब लोग भी कह रहे हैं, जिनकी किसी भी तरह की सहायता के लिए वह हर समय तैयार रहती थीं। गरीब-पिछड़े लोग दावा करते हैं हमारे समाज के लिए अपनी जिंदगी को अहमियत न देने वाली डॉ. सुमन कभी भी किसी की हत्या करवा ही नहीं सकतीं, मगर शासन-प्रशासन के लिए उनकी बात कोई मायने नहीं रखती, यह इससे भी साबित हो जाता है कि अब उन्हें जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा।  

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कम उम्र से ही एक छोटी सी सिलाई मशीन से घर पर काम शुरू कर इतने व्यापक पैमाने पर महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में मिसाल कायम कर रही डॉ. सुमन बिहार के नवादा में किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं।

पक्ष में खड़े हैं दलित-बहुजन

डॉ. सुमन को हत्यारोपी ठहराये जाने पर बामसेफ से जुड़े रामफल पंडित कहते हैं, ‘सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुमन सौरभ को राजनीतिक लपेटे में लेकर हत्या की सुपारी देने और देह व्यापार के झूठे केस में फंसाया गया है। अगर वह वाकई इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती तो अभी तक पुलिस के हाथ कोई पुख्ता सबूत लग जाता, जबकि चार्जशीट दायर करने के साथ ही संभावनाएं उनकी जमानत की बन रही हैं। आरोपों का क्या है वो तो कोई भी कुछ भी लगा सकता है और यह संभावनाएं और ज्यादा प्रबल तब हो जाती हैं, जबकि आप सत्ता में हों। राज्य में सत्तासीन पार्टी के लोगों के दबाव के चलते ही डॉ. सुमन को षड्यंत्रपूर्वक फंसाया गया है।’

8 मार्च 2016 को राष्ट्रपति के हाथों ‘नारी शक्ति’ सम्मान हासित करतीं सुमन सौरभ

सामाजिक कार्यकर्ता मुसाफिर कुशवाहा जिनके साथ मिलकर डॉ. सुमन ने काफी काम किया है और उन्हें बेहतर तरीके से जानते-समझते हैं, कहते हैं, ‘सामाजिक और नारी सशक्तीकरण के लिए पूर्ण रूप से समर्पित सुमन सौरभ जोकि खुद को महिषासुर की बेटी कहती हैं, उनके कामों से मनुवादियों के पाखंडवाद को धक्का पहुंचता था। जब 8 मार्च 2016 में उन्हें राष्ट्रपति के हाथों ‘नारी शक्ति’ सम्मान दिया गया, तो मीडिया में भी इस बात की चर्चा हुई कि महिषासुर की बेटी राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हुईं। तभी से वह ब्राह्मणवाद, जातिवाद और सामंतवाद के पोषकों की आंख की किरकिरी बनी हुई थीं और उन्हें फंसाने की साजिशें रची जाने लगी थीं और हत्या के झूठे केस में उन्हें फंसाना उसी साजिश का एक हिस्सा था। मीडिया ने भी सुमन की गिरफ्तारी के बाद उनके खिलाफ झूठी खबरें करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’

महिषासुर दिवस के आयोजन की शुरुआत जेएनयू से हुई थी, मगर डॉ. सुमन उससे पहले से डंके की चोट पर हिंदू धर्म के पाखंड की मुखालफत करते हुए महिषासुर शहादत दिवस आयोजित करती आई हैं। बौद्ध धर्म को मानने वाली और अलीगढ़ विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान में डाक्टरेट डॉ. सुमन ने एक बातचीत में कहा भी था कि ‘मैंने महिषासुर शहादत दिवस मनाने का संकल्प पहली बार 2010 में लिया और अपने घर में ही अपने ही परिवार को बुलाकर इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार किया। काफी विरोध हुआ और मुझे सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। बावजूद इसके मैं निराश नहीं हुई। 2013 में यादव शक्ति पत्रिका पढ़ने का मौका मिला। उससे पता चला कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिवस खुले तौर पर मनाया गया तो मैंने भी इसे खुले तौर और वृहत रूप से इसे बिहार सेवा संस्थान में मनाने का संकल्प लिया।’

मुसाफिर कुशवाहा की मानें तो ‘डॉ. सुमन द्वारा संचालित बिहार सेवा संस्थान की 5 एकड़ जमीन को हड़पने के लिए भी इस साजिश को अंजाम दिया गया। बिहार में सत्ताधारी जदयू के पूर्व विधायक के पति जोकि दबंग और सामंतवादी विचारों के पोषक है, की नजर काफी समय से इस जमीन पर थी, जिसे वह साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरीके से हड़पना चाहते हैं। इसके अलावा सुमन सौरभ का आरजेडी विधायक के सहयोग से समाजसेवा के कामों को बेहतर तरीके से करना प्रतिद्वंद्वी पूर्व विधायक पति को रास नहीं आ रहा था। महिषासुर दिवस के आयोजन से दिन-ब-दिन उनकी बढ़ती लोकप्रियता को भी उनके विरोधी पचा नहीं पा रहे थे।’

पहले भी पूर्व दबंग विधायक के पति बिहार सेवा संस्थान की जमीन पर तमाम तिकड़मों से झूठी रजिस्ट्री करा चुके हैं, 6 महीने पहले कोर्ट ने झूठी रजिस्ट्रियों को खारिज करते हुए बिहार सेवा संस्थान के पक्ष में फैसला सुनाया था, इससे भी वह अकबकाए हुए थे। ताज्जुब की बात तो यह है कि जिन आरजेडी नेता कैलाश पासवान की हत्या के लिए सुमन सौरभ जेल की सलाखों के पीछे हैं उनके पहली पत्नी के बेटे संजय पासवान ने अपनी सौतेली मां पर हत्या का शक जताया है और एफआईआर में भी इसका जिक्र किया है, क्योंकि उनकी हत्या से 2 हफ्ते पहले हुए विवाद में कैलाश पासवान की दूसरी पत्नी किरण देवी ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी, मगर पुलिस इस दिशा में कोई जांच नहीं कर रही।

सामाजिक कार्यकर्ता मुसाफिर कुशवाहा मानते हैं कि ‘आरजेडी और जदयू की क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई का डॉ. सुमन को निशाना बना सलाखों के पीछे भेज दिया गया।’

सुमन सौरभ के पति जहां दिल्ली में रहकर एक फैक्ट्री संचालित करते हैं, वहीं एक बेटा बिहार से बाहर रहकर पढ़ाई करता है और बड़ा बेटा बिहार में ही मां के साथ संस्था के कामों में सहायता करता है।

इन सबके बीच इस बात का भी आकलन किया जाना चाहिए कि जहां तमाम नारी आश्रयगृह और बाल आश्रय गृह शासन-प्रशासन की मिलीभगत से शोषण-बलात्कार और अन्य तमाम अनैतिक गतिविधियों के अड्डे बन चुके हैं, वहीं ‘बिहार सेवा संस्थान’ पर कभी किसी ने अंगुली नहीं उठाई, क्योंकि वह वाकई समाज की बेहतरी के लिए काम कर रही थीं। मगर उनकी गिरफ्तारी के वक्त एक फेक मैसेज वाट्सअप यूनिवर्सिटी पर जरूर वायरल हुआ कि उनके द्वारा संचालित महिला आश्रयगृह सेक्स रैकेट में लिप्त है, बल्कि किसी के पास इस बात का कोई आधार नहीं था और न ही इस तरह की कोई बात पुलिस ने अपनी जांच में कही। यह अफवाह मात्र उन्हें बदनाम करने की एक चाल थी।

डॉ. सुमन सौरभ के भाई उज्ज्वल सुमन कहते हैं, ‘मेरी बहन को राजनीतिक तौर पर फंसाया गया है। अगर हम खुलेआम उन लोगों का नाम उजागर करेंगे तो सत्ता संरक्षित दबंग नेता हमें अगले किस मामले में फंसा दें कहा नहीं जा सकता। डॉ. सुमन लंबे समय से महिषासुर दिवस आयोजित कर रही हैं, इस कारण भी वह हिंदू धर्म के ठेकेदारों और ब्राह्मणवादियों के आंख की किरकिरी बनी हुई थीं।’ बहरहाल, क्या सच है और क्या झूठ यह तो न्यायालय के निर्णय के बाद ही पता लग पाएगा।  लेकिन इस बार महिषासुर दिवस मनाने की तैयारियों के बारे में उज्ज्वल कहते हैं, ‘जब डॉ. सुमन ही जेल से नहीं छूटेंगी तो हम लोग आयोजन कैसे करेंगे। फिलहाल जो स्थितियां हैं कोई और महिषासुर दिवस आयोजित करने के लिए आगे नहीं आना चाहेगा, क्योंकि अगर किसी ने पहलकदमी की भी तो उसे शासन-प्रशासन नहीं डराएगा, कोई कार्रवाई नहीं करेगा इसकी क्या गारंटी है।’

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

प्रेमा नेगी

प्रेमा नेगी 'जनज्वार' की संपादक हैं। उनकी विभिन्न रिर्पोट्स व साहित्यकारों व अकादमिशयनों के उनके द्वारा लिए गये साक्षात्कार चर्चित रहे हैं

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