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एससी-एसटी पर नहीं लागू हो क्रीमी लेयर, पीएस कृष्णन ने पीएम को भेजा संशोधन विधेयक का प्रारूप

पदोन्नति में आरक्षण संबंधी फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने क्रीमी लेयर लागू करने की बात कही है। भारत सरकार के पूर्व नौकरशाह पीएस कृष्णन ने जून 2012 में ही सरकार को आगाह किया था। उन्होंने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त निरस्त करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक लाने का सुझाव दिया है

पदोन्नति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्ष्ण संबंधी एम. नागराज मामले में बीते 26 सितंबर 2018 को आए फैसले के बाद भ्रम की स्थिति है। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने इस फैसले में एक साथ दो बातें कही। पहली तो यह कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को राज्य पदोन्नति में आरक्षण दे सकता है और इसके लिए उसे मात्रात्मक आंकड़े देने की आवश्यकता नहीं है। इसी फैसले में दूसरी बात कही गयी है जो कि आरक्षण के पूरे प्रावधान पर सवाल खड़ा करता है। यह क्रीमी लेयर से जुड़ा है।

जाहिर तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध होना तय था। यह हुआ भी। अनेक दलित एवं आदिवासी नेताओं ने अपने बयानों में कहा कि वे एससी और एसटी में क्रीमी लेयर ढूँढने के कोर्ट के फैसले पर चुप नहीं बैठेंगे।

इन्हीं विवादों और प्रतिक्रियाओं को देखते हुए दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के कल्याण एवं उनके लिए बने कई कानूनों से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े रहे भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय में पूर्व सचिव  पी. एस. कृष्णन ने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर संविधान के अनुच्छेद 16(4), 16(4A), और 164(B) में शीघ्र संशोधन की मांग की है ताकि देश में एससी और एसटी को सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित की जा सके और उन मुद्दों को दुरुस्त किया जा सके जिसे न्यायपालिका ठीक नहीं कर पाई है।

पीएस कृषणन, भारत सरकार के पूर्व सचिव

कृष्णन ने अपने पत्र में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस नवीनतम फैसले के बावजूद क्रीमी लेयर जैसे कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो एससी और एसटी के लिए सरकारी नौकरियों में पदोन्नति वाले पदों पर समानता के संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मुश्किलें पैदा करते रहेंगे।  उन्होंने जिन मुद्दों की बिन्दुवार चर्चा की है उनमें क्रीमी लेयर, प्रोमोशन वाले पदों पर आरक्षण का प्रतिशत क्या हो, प्रशासनिक सक्षमता का मतलब, हर कैडर में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में मात्रात्मक आंकड़े आदि शामिल हैं।

भ्रम पैदा करता है क्रीमी लेयर शब्द

कृष्णन ने कहा है कि ‘क्रीमी लेयर’ शब्द भ्रम पैदा करता है। मंडल कमीशन मामले में आए फैसले में इसके लिए जातियों के ‘सामाजिक रूप से उन्नत व्यक्ति/हिस्सा’ कहा गया है जिसे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग बताया गया। उन्होंने कहा कि एससी और एसटी के लोगों की पहचान का आधार ‘पिछड़ापन’ नहीं था बल्कि ‘सामाजिक पिछड़ापन’ था।  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लोगों की पहचान के लिए ‘सामाजिक पिछड़ेपन’ को आधार माना गया, जिसके साथ शैक्षिक पिछड़ापन भी जुड़ा है।

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कृष्णन के अनुसार, अनुसूचित जाति (एससी) की पहचान का आधार ‘छुआछूत’ था जो कि सामाजिक पिछड़ेपन से ज्यादा अशक्त करने वाला है और यह आज भी जारी है। अनुसूचित जातियों की अनुसूची वास्तव में जातियों की सूची है जो कि “छुआछूत” के शिकार रहे हैं और अभी भी हैं।  इसी तरह, अनुसूचित जनजातियों की पहचान का मानदंड था समाज के आदिम संगठन थे जो कि परंपरागत जाति-आधारित सामाजिक संगठन से अलग थे। इसके अलावा वे दूरस्थ इलाकों में अलग-थलग रहने वाले आदिम विशिष्टताओं वाले लोग हैं। दूसरे शब्दों में, एसटी की अनुसूची कबीलों की सूची है न कि  जातियों की और इसलिए अनुच्छेद 342 में “जाति” को सोच-समझकर बाहर कर दिया गया है ताकि इससे विशिष्ट कबीले के होने की बात स्पष्ट हो।

जबकि क्रीमी लेयर का सिद्धांत उन लोगों से जुड़ा है जो सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के शिकार रहे हैं। परंतु अब सामाजिक रूप से उन्नत हो गए हैं। आदिम जातियों पर यह लागू नहीं होता। उन्होंने कहा कि जब अनुसूचित जाति में क्रीमी लेयर की बात की जाती है तो उस समय इसके बारे में एक ही प्रश्न पूछा जा सकता है कि ऐसा कोई व्यक्ति इस समूह में है जो अब ‘अछूत’ नहीं रहा।

पीएस कृष्णन कहते हैं कि कोई व्यक्ति सामाजिक पिछड़ेपन से तो मुक्त हो सकता है लेकिन ‘अछूत’ होने के कलंक से निजात पाना बहुत मुश्किल है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री संपूर्णानंद की प्रतिमा का जगजीवन राम द्वारा अनावरण का उदाहरण दिया जो भारत सरकार के अन्तरिम सरकार में मंत्री रहने के अलावा कई महत्त्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे और मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में उप प्रधानमंत्री तक बने। संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण करने के बाद उस मूर्ति को जगजीवन राम के जाने के बाद गंगाजल से धोया गया।


कृष्णन ने कहा है कि संविधान पीठ के सामने इस मामले को ठीक से पेश नहीं किया गया कि जाति या जनजाति होने के कलंक को मिटा पाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत ही मुश्किल है।

कृष्णन ने दिया संशोधन का मसौदा

पीएस कृष्णन ने अपने पत्र में कहा है कि इन मामलों को दुरुस्त करने के लिए उचित संविधान संशोधन जरूरी है।  उन्होंने इस संशोधन का प्रारूप भी मंत्री और प्रधानमन्त्री को भेजा है। उनके ये सुझाव इस तरह से हैं

1 . अनुच्छेद 16(4A) का संशोधन : इसका संशोधन निम्न तरह से हो – (i) संविधान के किसी भी अनुच्छेद में चाहे कुछ भी क्यों न हो, राज्य के अधीन सभी तरह की सेवाओं में सभी वर्ग के पदों पर होने वाली नियुक्तियों,  प्रोमोशन और इसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाली वरिष्ठता में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान करेगा। और इस तरह का आरक्षण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का तब तक मौलिक अधिकार होगा जब तक कि

(I) केंद्र और राज्य सरकारों के तहत हर कैडर में सेवाओं के सभी स्तरों पर उनका प्रतिनिधित्व देश में उनकी जनसंख्या के अनुपात के बराबर न हो जाए। इस जनसंख्या के निर्धारण का आधार अंतिम आम जनगणना हो।  

(II)अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को ऊपर बताए गए प्रतिनिधित्व के स्तर के तहत खुली प्रतिस्पर्धा के द्वारा योग्य न बना दिया  जाए, और

(III) ‘छुआछूत’ अपने सभी रूपों में समाप्त न हो जाएं, आदिम जातियों का अलगाव और इसके सभी परिणाम समाप्त न हो जाएं और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास और कल्याण के सभी मानदंडों की दृष्टि से समाज के उन्नत वर्गों के साथ बराबरी में न आ जाएं ।

2. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण प्रत्यक्ष भर्ती में क्रमशः 15 और 7.5 प्रतिशत हो और देश में या उस राज्य विशेष में उनकी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से हो अगर इन पदों पर उनकी नियुक्ति प्रोमोशन के माध्यम से होनी है।

3 . किसी भी कोर्ट के आदेश, निर्देश या फैसले के बावजूद, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता की गणना सर्विसेज की उस समूह या वर्ग के आधार पर हो।

4 . अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रोमोशन में आरक्षण पदों के सभी स्तरों पर बिना किसी सीमा और अपवाद के हो।

5 . राज्य पदों और सेवाओं का चुनाव करेगा, उन पदों का भी जिस पर प्रोमोशन किया जाना है जिसके लिए  एससी और एसटी के पर्याप्त योग्य उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं और एससी और एसटी वर्ग से योग्य उम्मीदवारों को तैयार करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करे ताकि सभी पदों और सेवाओं के लिए इनके योग्य उम्मीदवार तैयार किए जा सकें और उस समय तक ये उम्मीदवार प्रोमोशन के लिए उपलब्ध हो सकें।

6. किसी कोर्ट का भले ही जो आदेश हो, निर्देश हो या फैसला हो, क्रीमी लेयर एससी और एसटी पर न तो सीधी भर्ती में लागू हो और न ही उनके प्रोमोशन में।

7. राज्य एससी और एसटी के लिए किसी परीक्षा में क्वालिफ़ाइंग मार्क्स में ढील देगा और यह सुनिश्चित की जाए कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित पदों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को ही नियुक्त किया जाए।

8 . राज्य एससी और एसटी को पदों पर नियुक्ति से पहले और नियुक्ति के बाद उनके लिए पूर्ण सुनियोजित प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगा ताकि प्रशासन में किसी भी तरह की कमी को दूर किया जा सके और एससी और एसटी के लिए व्याप्त दुर्भावना दूर की जा सके।

(ii) अनुच्छेद 164(B) : राज्य उस साल की किसी भी रिक्तियों को खंड-4 और खंड-4A के तहत उसके अगले साल या बाद के सालों में इन पिछले सालों की रिक्तियों के रूप में भरेगा न की वर्तमान वर्ष की रिक्तियों के साथ उसको मिला देगा। और यह आगे ले जाने वाला नियम उस समय तक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों का प्रतिनिधित्व हर कैडर में अनुच्छेद 16 (4A) के उप-खंड-ii के तहत निर्धारित अनुपात के बराबर नहीं हो जाता और यह केंद्र और राज्यों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए निर्धारित प्रतिशत आरक्षण के स्तर तक नहीं पहुँच जाता।

(iii) अनुच्छेद 16(4) : इस अनुच्छेद को इस तरह से संशोधित किया जाए कि यह सिर्फ ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े’ लोगों के लिए ही हो। इनकी पहचान सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर हो क्योंकि अनुच्छेद  16(4A) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए है। इसके तहत –

(क) संवैधानिक प्रावधान कुछ भी हो, राज्य के अधीन सभी वर्गों के पदों में नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान करेगा और इन पर नियुक्ति इस वर्ग के तहत पहचान किए गए सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों (जो परंपरागत जाति व्यवस्था में निम्न श्रेणी के हैं, परंपरागत पेशे में लगे हैं जिसको परंपरागत रूप से निचले दर्जे का माना जाता है और जो शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं) की ही नियुक्ति करेगा और राज्य के अनुसार सेवा में जिनका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है और इस तरह का आरक्षण सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग का मौलिक अधिकार होगा।

(ख) प्रत्येक कैडर के सभी स्तर के सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व  उस स्तर तक पहुंचता है जो उनके लिए निर्धारित प्रतिशत आरक्षण के बराबर है।

(ग)  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को खुली प्रतिस्पर्धा द्वारा योग्य बनने के लिए तैयार किया जाता है ताकि वे अपने लिए निर्धारित (जैसा कि ऊपर a में बताया गया है) प्रतिनिधित्व का स्तर प्राप्त कर सकें।

(घ) सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग पूरी तरह समाप्त हो जाता है  और वे विकास और कल्याण के हर संदर्भ में समाज के उन्नत जाति के लोगों की बराबरी प्राप्त कर लेते हैं।

(च) अगर शिक्षा संस्थानों और नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित निर्धारित सीटों के उम्मीदवारों से ये सीट नहीं भर पाते हैं तो इन स्थानों पर उन व्यक्तियों की नियुक्ति न हो जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के उन्नत व्यक्ति/वर्ग से आते हैं। अगर इस समूह से पर्याप्त संख्या में योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं तो उस स्थिति में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के उन्नत वर्ग/व्यक्ति की इस पद पर नियुक्ति की जा सकती है।

(छ) अनुच्छेद 16(4A) के खंड -vii के प्रावधान सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग पर भी लागू होंगे।

(iv)    14 (A) में निम्नलिखित बातें जोड़ी जाएँ –

1. राज्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को सामाजिक समानता देने से इनकार नहीं करेगा और सामाजिक समानता प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा जैसा की नीचे खंड-2 में दिया जा रहा है।

 2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए समाज के उन्नत जातियों के विकास और कल्याण के हर मानदंडों जैसे आर्थिक, हर स्तर के शैक्षिक, स्वास्थ्य, पोषण, शिशु और बच्चों के जीवित रहने से संबंधित, आवास और निवास-क्षेत्र की सुविधाओं से संबंधित आदि को मान्यता दी जाती है और इसे इनके लिए सामाजिक समानता माना जाएगा और इसे संविधान की मौलिक संरचना के रूप में संविधान की मौलिक विशेषाता मानी जाएगी।

 3. आरक्षण सहित सामाजिक न्याय के सभी पहलू को राज्य सामाजिक समानता लाने के लिए अपने हाथ में लेगा क्योंकि संविधान के मौलिक संरचना के रूप में इसे संविधान की मौलिक विशेषता समझी जाएगी।

कृष्णन ने कहा है कि उन्होंने यह संशोधन 2012 में ही तैयार किया था और इसे केंद्र में तत्कालीन सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक को 14 जून 2012 को भेजा था। उस समय इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उसके बाद से संविधान संशोधन जरूरी हो गया है।

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में उन्होंने कहा है कि  इस संशोधन प्रस्ताव को उन्होंने सामाजिक एकीकरण और राष्ट्रीय प्रगति को ध्यान में रखकर किया है जिसके लिए एससी, एसटी, और सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े समूह को बराबरी का अधिकार मिलना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि  यह संशोधन उन्होंने इसलिए भेजा है ताकि संविधान संशोधन की तैयारी शुरू कर दी जाए जिससे कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस बारे में संशोधनों को संसद में पेश किया जा सके। उन्होंने नवीनतम हालत के अनुसार इस प्रस्ताव में संशोधन किया है। इसी क्रम में उन्होंने इसमें न्यायमूर्ति वेंकटचलैया की अध्यक्षता में संविधान के कार्यकलाप की समीक्षा के लिए बनी राष्ट्रीय समिति के कतिपय सुझावों को भी रखा है। उन्होंने कहा है कि अगर  इस मामले में उनसे और मदद की अपेक्षा की गई तो उन्हें खुशी होगी।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

अशोक झा

लेखक अशोक झा पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा से की थी तथा वे सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली सहित कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं

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