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‘आदिवासी’ नहीं, अनुसूचित जनजाति हैं हम

जनजातियों के संबाेधन के लिए बहुत सारे शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं। जैसे मूलनिवासी, देशज, वनवासी, गिरिवासी, गिरिजन, जंगली, आदिम, आदिवासी इत्यादि। लेकिन, इन सबमें आदिवासी शब्द बहुत ही नकारात्मक और अपमानजनक है। सूर्या बाली ‘सूरज’ का विश्लेषण :

आधुनिक भारत में आदिवासी शब्द के मायने और निहितार्थ

मानव विकास के क्रम में हर जाति, संप्रदाय, धर्म, एथेनिक वर्ग के लोग किसी न किसी कबीलाई समूह से ही विकसित हुए हैं। यानी सभी जाति, धर्म के लोग आदिवासी जीवन के कार्यकाल से गुजरे हैं। इतिहास साक्षी है कि सबसे पहले आदिवासी से सभ्य नागरिक बनने के प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा और मोहनजोदड़ाे) से मिले हैं और यह भी सिद्ध हो चुका है कि सिंधु घाटी सभ्यता यहां के मूल निवासियों और जनजातियों की एक विकसित शहरी सभ्यता थी।

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लेखक के बारे में

सूर्या बाली

डाॅ. सूर्या बाली ‘सूरज’ एम्स, भोपाल में चिकित्सक होने के साथ ही अनुसूचित जनजाति मामलों के जानकार व चिंतक हैं। जनजाति समाज व संस्कृति आधारित लेख, कविताएं व गीत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, केयर, इंडियन मेडिकल एसोशिएशन द्वारा सम्मान के अलावा वर्ष 2007 में कालू राम मेमोरियल अवाॅर्ड और फोर्ड फाउंडेशन फेलोशिप प्रदान की गई

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