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आंखन देखी : एक कहानी जयस की

आदिवासी युवाओं के संगठन जयस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया है। इसके साथ ही इस संगठन में दरार भी सामने आये हैं। इसके राष्ट्रीय संरक्षक डा. हीरालाल अलावा पर भी कई आरोप लगाये गये हैं। जयस के निर्माण और आरोपों के बारे में बता रहे हैं राजन कुमार

आज जब ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ (जयस) संगठन पूरे देश में प्रसिद्ध हो चुका है और इसी संगठन के नेतृत्व में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात हो रही है तब कई लोग इसके संस्थापक सदस्य होने का झूठा दावा करने लगे हैं। इसलिए आज यह बताने का समय आ गया है कि जयस की स्थापना कैसे हुई।

फेसबुक से शुरु हुई जयस की मुहिम

बात सन 2011 की है, जब मैं डा. हीरालाल अलावा का फेसबुक फ्रेंड बना। शायद उस दौरान वे ग्‍वालियर में रहते थे। उस समय फेसबुक से बहुत कम लोग जुड़े थे और फेसबुक पर फ्रेंड होना सामान्य बात लगती थी, कुछ हद तक आज भी वैसा ही है। लेकिन उनपर एकाएक नजर तब पड़ी जब वह ‘दलित आदिवासी दुनिया’ में प्रकाशित खबरों की कटिंग अपने फेसबुक वाल पर लगाते थे। उस समय मैं दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक ‘दलित आदिवासी दुनिया’ में बतौर उप-संपादक कार्यरत था। ‘दलित आदिवासी दुनिया’ 2001 से 2015 तक प्रकाशित हुआ, उसके बाद आर्थिक समस्याओं के वजह से यह बंद हो गया। यह अखबार उस समय आदिवासी समुदाय के मुद्दों को उठाने वाला एकमात्र अखबार था।

डॉ. हीरालाल अलावा ‘दलित आदिवासी दुनिया’ में प्रकाशित खबरों की कटिंग को फेसबुक पर शेयर करते समय ‘जय युवा शक्ति’ लिखते थे। फेसबुक पर ही उनसे बातचीत का सिलसिला जारी रहा। उस दौरान आदिवासी मुद्दों पर वे कुछ टिप्पणियां लिख कर प्रकाशनार्थ भेजते थे।

दिल्ली के एम्स में, बांये से, नेपाल के आदिवासी एक्टिविस्ट अशोक खुदांग, डॉ हीरालाल अलावा, सुर्यदेव दास उरांव, नेपाल में तत्कालीन सांसद, शिवनारायण उरांव, पूर्व संविधान सभा सदस्य नेपाल, और इस लेख के लेखक राजन कुमार

डॉ. अलावा से मेरी पहली मुलाकात जुलाई, 2012 में एम्स में हुई। उसी समय एम्स में उनकी ज्वाईनिंग बतौर सीनियर रेजिडेंट डाक्टर हुई थी।

आदिवासियों के मौलिक सवालों पर था जोर

उसी दौरान उन्होंने मुझसे आदिवासियों के लिए एक संगठन बनाने की चर्चा की। मैंने उनसे कहा कि आदिवासियों के लिए अनेक संगठन काम कर रहे हैं, उनसे जुड़ा जा सकता है। उन्होंने अन्य आदिवासी संगठनों से जुड़ने के बजाय एक नया संगठन बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के नाम से तो हजारों संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन आदिवासियों के मुख्य मुद्दे, जैसे- पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार कानून, आदिवासी इलाकों में व्याप्त कुपोषण, भुखमरी, अशिक्षा एवं लचर स्वास्थ्य व्यवस्था पर कोई भी आदिवासी या गैर-आदिवासी संगठन आवाज नहीं उठाता।

संगठन के नाम को लेकर कन्फ्यूजन था। वह चाहते थे कि संगठन का नाम ऐसा हो, जो युवाओं को आकर्षित करे। वह अपने फेसबुक पोस्ट में कभी ‘जय युवा शक्ति’ लिखते थे तो कभी ‘आदिवासी युवा शक्ति’ लिखते थे, वह इसी तरह का नाम चाहते थे। मैंने उनसे कहा कि जय युवा शक्ति में आदिवासी शब्द नहीं आ रहा है, जबकि आदिवासी युवा शक्ति (आयुश) नामक एनजीओ/संगठन महाराष्ट्र में पहले से है। उसके बाद उन्होंने इन्हीं दोनों नामों को मिलाकर अपने फेसबुक पोस्ट सबसे उपर या नीचे ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ लिखना प्रारंभ किया और फेसबुक पर इसी नाम से अनेक ग्रुप भी बनाए। जिसमें देशभर के हजारों आदिवासी युवा जुड़े और आदिवासी मुद्दे पर चर्चाएं तेज हो गयी।

‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ के नाम से फेसबुक पर शुरू ये गतिविधियां और चर्चाएं ही आगे जाकर ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ (जयस) संगठन के रूप में परिवर्तित हो गया।

जयस का लोगो

उन दिनों जय आदिवासी युवा शक्ति के सभी बैनर/पोस्टर और लोगो (प्रतीक चिन्ह) डॉ. हीरालाल अलावा के सुझाव अनुरूप मैंने ही बनाए। फेसबुक पर अब अनेक आदिवासी युवा अपने नाम या किसी फेसबुक पोस्ट के आगे या पीछे ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ लिखने लगे।

दिल्ली में रह रहे या किसी काम से दिल्ली आने वाले आदिवासी लोगों से हमने (डॉ. अलावा और मैंने) मिलना-जुलना शुरू कर दिया। दलित आदिवासी दुनिया से जुड़ने वाले लोग जब दिल्ली आते तो हमसे मिलते। किसी कार्यक्रम या धरना प्रदर्शन में भाग लेने आते तो हम लोग उनसे मिलते और ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ के बारे में बताते। दिल्ली में रहने वाले आदिवासी युवा ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ के बहाने हर एक-दो सप्ताह पर बैठक करने लगे।

2013 में हुई ‘फेसबुक पंचायत’ और ‘अंतरराष्ट्रीय फेसबुक महापंचायत’

इसी बीच मई, 2013 में डॉ. अलावा अपने घर गये तो फेसबुक पर ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ से जुड़े अपने इलाके के लोगों से मिलने का प्लान बनाया और बड़वानी जिले (मध्यप्रदेश) में ‘फेसबुक पंचायत’ नाम से एक बैठक की। इस बैठक के लिए मैंने बैनर भी बनाया। हालांकि इस बैठक में दो सौ के आसपास लोग शामिल हुए, लेकिन इस बैठक से डॉ. अलावा काफी उत्साहित हुए।

डॉ. अलावा जब दिल्ली लौटे तो देश-विदेश में रह रहे आदिवासियों को एक मंच पर लाने की योजना बनाई और अक्टूबर, 2013 में ‘अंतर्राष्ट्रीय फेसबुक महापंचायत’ का आयोजन मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में किया। उम्मीद की जा रही थी कि इस आयोजन में विदेश में रह रहे भारतीयों के अलावा नेपाल, भूटान और बंग्लादेश के भी आदिवासी सम्मिलित होंगे, क्योंकि नेपाल, भूटान और बंग्लादेश के आदिवासी लोगों ने इस कार्यक्रम में शामिल होने की बात कही थी, इसी के मद्देनजर इस कार्यक्रम का नाम ‘अंतर्राष्ट्रीय फेसबुक महापंचायत’ रखा गया था। नेपाल, भूटान और बंग्लादेश के आदिवासी तो इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए, लेकिन भारत के अन्य प्रदेशों के आदिवासियों के साथ-साथ विदेश में रह रहे कुछ भारतीय आदिवासी जरूर शामिल हुए।

जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डा. हीरालाल अलावा

इस कार्यक्रम में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार ‘पांचवीं अनुसूची’ और आदिवासी नायकों पर चर्चा हुई। कार्यक्रम को मीडिया में अच्छा खासा कवरेज मिला और ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ ने अन्य आदिवासी संगठनों का ध्यान आकर्षित किया। इसी दौरान ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ को अंग्रेजी के नाम के अनुसार संक्षिप्त रूप में जयस नाम को सर्वसम्मति से मान्य किया गया।

इन दोनों कार्यक्रम में मैं शामिल नहीं हुआ, लेकिन इसके लिए पोस्टर/बैनर बनाया और काफी प्रचार-प्रसार भी किया।

उपरोक्त दोनों कार्यक्रमों में विक्रम अछालिया भी शामिल हुए थे, जो अपने को जयस के संस्थापक सदस्यों में से एक मानते हैं। लेकिन उपरोक्त लिखी बातों से स्पष्ट हो चुका है कि ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ (जयस) डा. हीरालाल अलावा के सोच की उपज थी, और फेसबुक पर किये गये पहल के कारण ही उसने एक संगठन का रुप लिया।

डा. अलावा ने कराया था विक्रम अछालिया व गौरव चौहान से परिचय

विक्रम अछालिया से मेरी पहली मुलाकात दिल्ली में ही हुई थी, सन 2014 में, महीना स्पष्ट याद नहीं है, लेकिन अप्रैल या मई के महीने में। आदिवासी एकता परिषद नामक संगठन का एक कार्यक्रम था। डा. हीरालाल अलावा ने ही मेरी मुलाकात इनसे कराई, साथ में मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ अन्य लोगों से भी परिचय कराए।

इसी बीच व्हाट्सएप भी लोगों के बीच तेजी से फैलने लगा था। जयस युवाओं ने एक-दूसरे को जोड़ने के लिए इसका भी जबरदस्त उपयोग किया।

अब जयस देश के आदिवासी युवाओं के बीच प्रचलित हो चुका था। पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार कानून समेत आदिवासी समाज सभी समस्याओं पर चर्चा होने लगी। जयस के बैनर तले देश के तमाम जगहों पर बैठकें, कार्यक्रम और धरना प्रदर्शन भी होने लगे।

जयस में दरार कैसे आई?

फरवरी, 2015 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भिलाई शहर में जयस के बैनर तले पांचवीं अनुसूची, आदिवासी इतिहास, भाषा, संस्कृति इत्यादि मुद्दों पर ‘बस एक उम्मीद के लिए’ नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी युवक-युवतियों ने मिलकर आयोजित किया था। इस कार्यक्रम में डा. हीरालाल अलावा, विक्रम अछालिया के अलावा गौरव चौहान, महेंद्र कन्नौज जैसे अन्य राज्यों के भी युवा शामिल हुए। गौरव चौहान इंदौर में हुए कार्यक्रम के दौरान ही अमेरिका से भारत आये थे। इस कार्यक्रम में किसी चुनावी बात को लेकर गौरव चौहान और डा. हीरालाल अलावा में मतभेद हो गया। गौरव चौहान का आरोप था कि डा. अलावा खुद को जयस का सर्वेसर्वा समझते हैं, जबकि डा. अलावा का आरोप था कि गौरव चौहान पैसे के बल पर सब कुछ अपने अनुसार करना चाहते हैं। इस कार्यक्रम के बाद से ही जयस के बीच दरार पड़ गई और गौरव चौहान अलग जयस ग्रुप चलाने लगे।

भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट पर जयस का प्रदर्शन

बाद में पता चला कि गौरव चौहान चाहते थे कि उनके एक रिश्तेदार को उस समय के आगामी चुनाव में जयस संगठन सपोर्ट करे, जबकि डा. अलावा इसके पक्ष में नहीं थे।

गौरव चौहान ने इस कहा-सुनी को अपनी नाक की लड़ाई बना ली और जयस में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए हर प्रकार के साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने लगे।

कई सारे युवा इस दुविधा में फंस गये कि डा. अलावा के पक्ष में खड़े हों या गौरव चौहान के पक्ष में, जबकि अधिकतर लोग इस लड़ाई की वजह से जयस से दूर हो गये।

जबकि डा. अलावा ने गौरव चौहान व उनके समर्थकाें से बातचीत करना बंद कर दिया और जयस को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करते रहे।

गौरव चौहान ने जयस के कुछ बेरोजगार युवाओं को कहा कि वे अब अमेरिका नहीं जाएंगे और सपना दिखाया कि भारत में ही एक कंपनी खोलेंगे, जिसमें आदिवासी युवाओं को रोजगार मिलेगा। उन्होंने यह बात मुझे भी बताई और परोक्ष रूप से कुछ आर्थिक लालच भी दिया। मैंने उनका साथ देने से मना कर दिया। हालांकि वह विक्रम अछालिया, महेंद्र कन्नौज समेत कुछ लोगों को अपने साथ लेने में कामयाब हो गए।

बाद में गौरव चौहान कोई कंपनी तो नहीं खोल पाये, लेकिन पुणे में वह किसी आईटी कंपनी में खुद नौकरी करने लगे।

सुलह करना चाहते थे आरोप लगाने वाले

इधर विक्रम अछालिया, महेंद्र कन्नौज समेत गौरव चौहान से जुड़े आदिवासी युवा अपने को अलग-थलग महसूस करने लगे और डा. हीरालाल अलावा से फिर जुड़ना चाहते थे। यह गुट बड़वानी जिले के कुछ जगह तक सिमट कर रह गया।

इसीलिए विक्रम अछालिया, महेंद्र कन्नौज समेत गौरव चौहान गुट के लोग डा. अलावा से सुलह का रास्ता तलाशने लगे। लेकिन उन्होंने इन लोगों से कोई बात नहीं की।

इसी बीच सितंबर, 2015 डा. अलावा का एम्स में सीनियर रेजिडेंट डाक्टर के रूप में तीन साल का कार्यकाल पूरा हो गया और वे अपने घर आ गये। उन्होंने बड़वानी जिले के अंजड़ में एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी ज्वाईन कर ली।

नागालैंड के आदिवासियों के साथ डा. हीरालाल अलावा

गौरव चौहान गुट के लोगों द्वारा डा. अलावा के खिलाफ दुष्प्रचार करने लगे।

इस दौरान नवंबर, 2015 में देवास जिले के देवनलिया गांव में जयस के बैनर तले ‘फेसबुक महापंचायत 2015’ का आयोजन किया गया। गौरव चौहान गुट के लोगों को आशा थी कि इस बार डा. अलावा से सुलह हो जाएगा। इसी के मद्देनजर इन लोगों ने इस कार्यक्रम में मुझसे शामिल होने का आग्रह किया। मैं भी चाहता था कि संगठन में किसी प्रकार का मतभेद न रहे, इसलिए मैंने इस कार्यक्रम में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली। दिल्ली से बाहर जयस के किसी कार्यक्रम में शामिल होने का यह मेरा पहला मौका था और मध्यप्रदेश भी पहली बार ही आया था।

कार्यक्रम एक और दो नवंबर को था, लेकिन ट्रेन लेट हो गई और एक नवंबर की शाम में इंदौर पहुंचा। ट्रेन के लेट हो जाने का अफसोस तो था, लेकिन यह सोचकर आश्वस्त हो गया कि दो नवंबर के कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा तो पता चला कि दो दिवसीय कार्यक्रम का एक दिन में ही समापन करने की योजना है। यह जानकर मुझे बहुत अफसोस हुआ, लेकिन कुछ कर भी नहीं सकता था। हालांकि गौरव चौहान गुट के लोग रुके थे और मेरे आने का इंतजार कर रहे थे। उनलोगों को पूर्ण विश्वास था कि मैं सुलह कराने में सफल हो जाउंगा।

इंदौर से देवनलिया के लिए निकल पड़ा। जिस रास्ते से मैं देवनलिया आया, वह रास्ता बहुत खराब था और पहाड़ियों से होकर गुजरता था। रात में उधर से कोई भी गाड़ी नहीं गुजरती थी। साथ के लोगों ने बताया कि यहां रात में तेंदुआ कभी भी हमला कर सकता है। खैर जो भी हो, जैसे-तैसे रात नौ बजे देवनलिया पहुंचा।

गौरव चौहान गुट ने पहले तो मुझे डा. हीरालाल अलावा के खिलाफ भड़काने की पूरी कोशिश की। उन लोगों ने आरोप लगाया कि डा. अलावा लड़कियों को छेड़ते हैं और जयस से जुड़े युवाओं से ढंग से बात नहीं करते हैं। मैंने उनलोगों को बताया कि डा. अलावा को मैं पिछले तीन साल से जानता हूं, उनके साथ अनेक कार्यक्रमों में जाने का मौका मिला। वह मेरे अच्छे दोस्त हैं और हर समय साथ रहते हैं। डॉ. अलावा के बारे में आप लोगों के सारे आरोप झुठे हैं।

इतना सुनने के बाद पहले तो वे लोग डर गये, लेकिन विक्रम अछालिया ने मुझे फिर से विश्वास में लेकर बोले कि आप छत्तीसगढ़ नहीं गये थे, इसलिए आपको पता नहीं है। उन्होंने छत्तीसगढ़ की एक लड़की का नाम बताया। साथ ही कहा कि महेंद्र कन्नौज उनके गृहक्षेत्र के हैं, जो यहीं पर बैठे हैं, जयस के लिए काफी काम किए हैं लेकिन डा. अलावा इनसे ढंग से बात नहीं करते हैं। मैंने उन लोगों को आश्वस्त किया कि मैं डा. अलावा से इन मुद्दों पर बात करुंगा।

लेकिन इन बातों को सुनकर मुझे कुछ अजीब-सा लगा। मैंने विक्रम अछालिया, महेंद्र कन्नौज और गौरव चौहान गुट के अन्य लोगों से पूछा कि जब आपलोग डा. अलावा पर इतने संगीन आरोप लगा रहे हैं तो फिर डॉ. अलावा से क्यों सुलह करना चाहते हैं। तब विक्रम अछालिया ने कहा कि डा. अलावा अच्छे आदमी हैं, उन्होंने जयस के रूप में इतना अच्छा संगठन खड़ा कर दिया। आदिवासियों के मुद्दों पर खुलकर बोलते हैं। सिर्फ हमलोगों से ढंग से बात नहीं करते हैं।

खैर, जो भी हो। विक्रम अछालिया ने जिस लड़की का नाम बताया था, उसे मैं जानता था और बाद में दिल्ली आने के पश्चात परोक्ष रूप से उस लड़की से डा. अलावा के मुद्दे पर बात किया तो उस लड़की ने विक्रम अछालिया की बातों को बेबुनियाद बताया और विक्रम अछालिया पर खुद को बदनाम करने का आरोप लगाया।

मध्यप्रदेश आया था तब डा. अलावा से मिले बगैर जा भी नहीं सकता था, अतः अगले दिन उनसे मिलने का प्लान बनाया। उनका घर बड़वानी से लगभग 35 किमी दूर है। गौरव चौहान गुट के साथ ही मैं बड़वानी चला आया। रास्ते भर वे लोग डा. अलावा के खिलाफ आरोप बोलते रहे।

मैंने विक्रम अछालिया से पूछा कि अगर डा. अलावा सुलह करने को तैयार नहीं हुए तो आप क्या करेंगे?

विक्रम अछालिया का जवाब था कि हम उनका विरोध करेंगे, उनके हर काम का विरोध करेंगे। डा. अलावा भी चुनाव लड़ने की बात करते हैं, हम उनके खिलाफ चुनाव में प्रत्याशी उतारेंगे। अगर वह कुक्षी से चुनाव लड़ेंगे तो महेंद्र कन्नौज उनके खिलाफ खड़ा होगा और उनको हराने की पूरी कोशिश की जाएगी।

आरोपों के बारे में हीरालाल अलावा का जवाब

अगले दिन शाम को डा. अलावा मुझे बड़वानी लेने आये। रास्ते भर मैंने उनसे गौरव चौहान गुट के लोगों की बातें की। वे मुझसे नाराज हो गये। उन्होंने मुझसे स्पष्ट कहा कि इस मुद्दे पर मुझे कोई बात नहीं करनी है। उन्होंने आगे कहा कि गौरव चौहान अमीर बाप का बेटा है, उसके पास पैसा है और पैसे के दम पर वह सभी लोगों को अपने वश में करना चाहता है। जो लोग मुझपर बेबुनियाद आरोप लगाते हैं, उनसे मैं क्या बात करूं? वे लोग मेरा दिन-रात विरोध करते हैं, लेकिन मैंने कभी उनका विरोध नहीं किया। मैं कभी उनका विरोध नहीं करता, क्योंकि मेरे पास यह सब करने के लिए समय नहीं है। हां, मैं उनसे बात नहीं करुंगा, क्योंकि उन लोगों ने मुझपर झुठे आरोप लगाए हैं।

डॉ. अलावा ने आगे कहा कि विक्रम अछालिया चुनाव लड़ना चाहते हैं और महेंद्र कन्नौज भी। मैंने (डा. अलावा ने) उन दोनों लोगों से कहा कि जयस के लिए अच्छे से काम करो। जयस मजबूत होगा तो आपलोग ही चुनाव में जयस की तरफ से खड़े होंगे और विधानसभा-लोकसभा में आदिवासियों की बात उठाओगे। लेकिन ये लोग गौरव चौहान के बातों में आकर जयस को तोड़ने की साजिश में लग गये हैं। मैं इन लोगों से बात नहीं करुंगा।

प्रारंभिक दिनों में दिल्ली में जयस की एक बैठक की तस्वीर

इसके कुछ दिन बाद एम्स में असिस्टेंट प्रोफेसर की वैकेंसी निकली। डा. अलावा इसमें सेलेक्ट हुए और पुनः छह महीने बाद 2016 में इन्होंने एम्स में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ज्वाईन किया।

इधर जयस को लेकर गौरव चौहान गुट के पास ना कोई विजन था और ना ही कोई विचार, अतः ये लोग जयस से नाता तोड़कर आदिवासी एकता परिषद और आदिवासी मुक्ति संगठन के साथ चले गये।

जयस सबसे आगे

दूसरी तरफ डा. अलावा दिल्ली आने के बाद भी जयस को तेजी से बढ़ाने में लगे रहे। 2016 में डा. अलावा ने जयस के बैनर तले ‘मिशन 2018’ के नाम से एक आंदोलन का आह्वान किया, जिसका मुख्य उद्देश्य संविधान की पांचवीं अनुसूची का आदिवासी क्षेत्रों में सख्ती से अनुपालन कराना था, जिसके लिए सन 2018 में देश के एक करोड़ आदिवासियों द्वारा संसद घेराव करना था। इसके लिए डा. अलावा जयस युवाओं के साथ पूरे जी-जान से जुट गये। देश के सभी राज्यों के आदिवासियों से मिलना, मिशन 2018 के बारे में बताना शुरू कर दिया, और यह पूरे देश के लिए एक चर्चा का विषय बन गया। मध्यप्रदेश में तो जयस जहां आरएसएस, भाजपा और कांग्रेस के लिए चुनौती बन गया, वहीं यहां के आदिवासी एकता परिषद और आदिवासी मुक्ति संगठन से भी ज्यादा लोकप्रिय हो गया।

आदिवासी मुक्ति संगठन, आदिवासी एकता परिषद द्वारा जयस को लेकर एकबार फिर मतभिन्नता सामने आई जब जयस समर्थित आदिवासी छात्र संगठन ने मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के छात्र संगठनों को बुरी तरह हरा दिया। आदिवासी छात्र संगठन के जीते हुए छात्र नेताओं नेताओं ने खुद को मीडिया में जयस समर्थित छात्र संगठन बताया। जबकि आदिवासी मुक्ति संगठन और आदिवासी एकता परिषद का दावा था कि आदिवासी छात्र संगठन उनके द्वारा बनाया गया है। बाद में खबर आई कि गौरव चौहान गुट के जो लोग आदिवासी मुक्ति संगठन और आदिवासी एकता परिषद से जुड़े थे, उन्हीं के बेस पर आदिवासी मुक्ति संगठन और आदिवासी एकता परिषद इसे अपना संगठन बता रहे थे।

जयस से अलग हो चुके गौरव चौहान गुट के लोगों ने आदिवासी मुक्ति संगठन और आदिवासी एकता परिषद के सहयोग से फिर सक्रिय हुये और अपने गुट का नाम जयस कोर कमेटी रखा, जिसका एकमात्र उद्देश्य था डा. हीरालाल अलावा का विरोध करना।

बहरहाल, विक्रम अछालिया अपने आपको चाहे जयस के संस्थापक सदस्य कहें या जयस कोर कमेटी के कर्ताधर्ता कहें। लेकिन यह स्पष्ट है कि विक्रम अछालिया झूठ बोल रहे हैं और उनके नेतृत्व वाली जयस कोर कमेटी फर्जी है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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