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एबीवीपी ने अंकित बसोया से दिलवाया इस्तीफा, कटघरे में दिल्ली विश्वविद्यालय

फर्जी डिग्री के मामले में अंकित बसोया ने एबीवीपी के कहने पर छात्रसंघ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। परंतु, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को सवालाें का जवाब देना शेष है। फारवर्ड प्रेस की खबर :

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के अध्यक्ष अंकित बसोया ने भले ही इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सवाल ये कि अंकित बसोया पर जब फर्जी डिग्री के आरोप लगे, तब उसकी जांच में देर क्यों की गई? क्या ऐसा करने के पीछे कोई मजबूरी थी? क्या उन पर 60 दिनों तक इस मामले को टालने का दबाव था, ताकि लिंगदाेह कमेटी के फैसले के तहत दोबारा चुनाव की गुंजाइश न बचे? ऐसे अनेक सवाल विश्वविद्यालय प्रशासन को लेकर उठ खड़े हुए हैं। लेकिन, विश्वविद्यालय प्रशासन ने खामोशी ओढ़ ली है।

हालांकि, फारवर्ड प्रेस से बातचीत के दौरान इस बाबत जब पूछा गया कि तमिलनाडु की थिरुवल्लुवर यूनिवर्सिटी से अब तक अंकित बसोया की डिग्री क्यों नहीं वेरीफाई करवाई गई, ताे विश्वविद्यालय के बुद्धिस्ट डिपार्टमेंट हेड केटी सराओ ने कहा कि अगर यूनिवर्सिटी की तरफ से जवाब नहीं आएगा, तो वे खुद तमिलनाडु जाकर डिग्री की सत्यता का पता लगाएंगे।

अंकित बसोया, निवर्तमान अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ

कुल मिलाकर देखें, तो डिपार्टमेंटल हेड के इस जवाब से साफ है कि दो महीने से ज्यादा समय बीत चुका है और अब तक उनके पास संबंधित विश्वविद्यालय से कुछ भी नहीं आया है, यानी उनका हाथ खाली है। जबकि ऐसा होने से क्या हुआ, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि चुनाव के 60 दिन बीत जाने के बाद फिर से चुनाव की गुंजाइश नहीं रह जाती है। क्योंकि, लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुसार, चुनाव परिणाम के 60 दिन बीत जाने के बाद पद के लिए चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। ऐसे में उपाध्यक्ष के पास अध्यक्ष के सारे अधिकार स्वाभाविक रूप से आ जाएंगे। और क्योंकि, उपाध्यक्ष भी एबीवीपी का ही है; इसलिए सारी पाॅवर एबीवीपी के पास ही रहेगी।

डीयू के विभिन्न छात्र संगठन इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। जांच प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े करते हुए आरोप लगाए जा रहे हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह से एबीवीपी के दबाव में है। एनएसयूआई की राष्ट्रीय प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि जिस तरह से साजिश करके धोखा किया गया है, वह अब किसी से छिपा नहीं है। फर्जी डिग्री मामला आया, तो उन लोगों (एनएसयूआई) ने इसकी शिकायत पुलिस व प्रशासन के साथ-साथ अदालत तक में अर्जी दाखिल की। लेकिन, इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन अंकित बसोया की डिग्री की जांच नहीं करवा पाया है।

रुचि गुप्ता के मुताबिक, ‘‘सोची-समझी रणनीति के तहत साजिशन जांच में देर की गई। अंकित का 62वें दिन इस्तीफा देने का फैसला साबित करता है कि एबीवीपी 60 दिन बीत जाने का इंतजार कर रही थी। क्योंकि, लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुसार चुनाव परिणाम के 60 दिन बीत जाने के बाद पद के लिए चुनाव नहीं कराया जा सकता है। लेकिन, यहां एक बात है कि 18 सितंबर को यह मामला एनएसयूआई ही लेकर आई थी और उस हिसाब से 60 दिन पूरे नहीं हुए हैं। और सबसे बड़ा सवाल, जब अंकित डीयू का छात्र ही नहीं है, तो चुनाव कैसे कानूनी तौर पर सही हो सकता है? इस मामले में 20 नवंबर को कोर्ट में डीयू प्रशासन को जवाब देना है, उसका इंतजार करने बाद हम लोग अगला कदम बढ़ाएंगे।’’

अंकित बसोया के प्रमाण-पत्रों की जांच की मांग को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन करते आइसा के सदस्य

इसी तरह आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई सीवाईएसएस के प्रदेश महासचिव हरिओम प्रभाकर व आइसा की दिल्ली प्रदेश सचिव मधुरिमा कुंडू ने भी इस लड़ाई को आगे तक ले जाने की बात करते हुए कहा कि एबीवीपी ने जान-बूझकर मामले को 60 दिन तक लटकाए रखा, ताकि उपाध्यक्ष पद पर जीते शक्ति सिंह को अध्यक्ष बनाया जा सके। यह सब कुछ एबीवीपी ने साजिश के तहत किया है, जो बिलकुल स्वीकार नहीं किया जाएगा।

वहीं इस मामले पर एबीवीपी की मीडिया संयोजक मोनिका चौधरी का कहना है कि डीयू की जांच पूरी होने तक के लिए अंकित से इस्तीफा लिया गया है। हालांकि, अंकित अभी दोषी नहीं हैं। उन पर आरोप है। फर्जी डिग्री के आरोप की वजह से डूसू की इमेज खराब हो रही थी, इस वजह से उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा गया।

फर्जी डिग्री मामला : कब क्या हुआ

  • 13 सितंबर 2018 – अंकित बसोया चुने गए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष
  • 18 सितंबर 2018 – फर्जी डिग्री से दाखिला लेने का एनएसयूआई ने लगाया अंकित पर आरोप
  • 25 सितंबर 2018 – डीयू ने बुद्धिस्ट स्टडीज हेड केटी सराओ की अगुवाई में जांच कमेटी का गठन किया।
  • 01 अक्टूबर 2018 – एनएसयूआई ने हाई कोर्ट जाकर अंकित का दाखिला निरस्त करने के लिए याचिका डाली।
  • 03 अक्टूबर 2018 – थिरुवेलयुवर विश्वविद्यालय ने तमिलनाडु के प्रमुख सचिव (शिक्षा) को लिखित रूप में जानकारी दी कि अंकित बसोया कभी भी उनके विश्वविद्यालय का छात्र नहीं रहा है।
  • 09 अक्टूबर 2018 – डीयू का जवाब थिरुवेल्युवर विश्वविद्यालय उन्हें जानकारी उपलब्ध नहीं करा रहा।
  • 16 अक्टूबर 2018 – थिरुवेल्युवर विश्वविद्यालय का जवाब अब तक डीयू की तरफ से संपर्क किया ही नहीं गया है।
  • 23 अक्टूबर 2018 – थिरुवेल्युवर विश्वविद्यालय ने कन्फर्म किया कि उन्हें डीयू का अंकित बसोया मामले के सिलसिले में मिला, लेकिन साथ ही कहा कि इसके साथ डाक्यूमेंट्स वेरीफिकेशन के लिए तय चालान फीस के 500 रुपए नहीं दिए गए हैं।
  • 25 अक्टूबर 2018 – डीयू ने कहा कि उनकी तरफ से फीस जमा कर दी गई है।
  • 30 अक्टूबर 2018 – दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिनों के भीतर डीयू प्रशासन से जांच पूरी करने को कहा।
  • 12 नवंबर 2018 – दिल्ली विश्वविद्यालय तय समय सीमा में जांच पूरी नहीं कर सका और थोड़ा और वक्त देने की गुहार लगाई।
  • 15 नवंबर 2018 – एबीवीपी ने अंकित बसोया से डूसू अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने को कहा और जांच पूरी होने तक संगठन से निलंबित कर दिया।
  • 16 नवंबर 2018 – एनएसयूआई ने प्रेस कांफ्रेस कर चुनाव रद्द करने की मांग की।

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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