h n

आंध्र प्रदेश में खुलेगा केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय, कैबिनेट ने दी मंजूरी

केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश में आदिवासी केंद्रीय विश्वविद्यालय खोले जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इससे विश्वविद्यालय खोले जाने का पथ प्रशस्त हो गया है लेकिन कई सवाल भी उठ रहे हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर :

केंद्र सरकार ने बीते 8 नवंबर 2018 को एक अहम निर्णय लिया। इसके मुताबिक आंध्र प्रदेश में केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी। इस संबंध में एक प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने मंजूरी प्रदान की।

केंद्रीय मंत्रिपरिषद के वरिष्ठ सदस्य रविशंकर ने इस आशय की घोषणा संवाददाता सम्मेलन में की। उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के रेली गांव में की जाएगी। इसे आंध्र प्रदेश केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि इसके लिए मंत्रिपरिषद ने 420 करोड़ रुपए की राशि के व्यय को भी मंजूरी प्रदान कर दी है। यह राशि विश्वविद्यालय की स्थापना के पहले चरण के लिए व्यय की जाएगी।

मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (साभार : पीएमओ)

उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के प्रावधानों के आधार पर किया जा रहा है।

गौर तलब है कि इसी आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के आधार पर आंध्र प्रदेश को दो भागों में बांटकर एक नये प्रांत तेलंगाना का गठन किया गया था। जिस समय यह हुआ तभी इस बात का प्रावधान किया गया था कि केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश में आदिवासी समुदाय के युवाओं के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करेगी।

बहरहाल, केंद्र सरकार के फैसले पर समाजवादी फारवर्ड ब्लॉक के नेशनल सेक्रेटरी एम. सुब्बाराव का कहना है कि केंद्र सरकार का यह फैसला केवल राजनीतिक है। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जबकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान आदि राज्यों में चुनाव होने हैं व वहां आदिवासी समुदाय के वोट निर्णायक हैं। केंद्र में सत्तासीन भाजपा सरकार चुनाव के समय स्वयं को आदिवासियों का हितैषी बताने का प्रयास कर रही है।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

यह पूछे जाने पर कि विश्वविद्यालय के खोले जाने से आदिवासी समाज के युवाओं को लाभ मिलेगा, सुब्बा राव ने कहा कि आदिवासी समुदाय के लिए प्राथमिक शिक्षा पर सबसे अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। केवल 4 से 5 फीसदी आदिवासी युवा ही बोर्ड या इससे अधिक की कक्षाओं में पढ़ाई कर पाते हैं।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

पुष्यमित्र शुंग की राह पर मोदी, लेकिन उन्हें रोकेगा कौन?
सच यह है कि दक्षिणपंथी राजनीति में विचारधारा केवल आरएसएस और भाजपा के पास ही है, और उसे कोई चुनौती विचारहीनता से ग्रस्त बहुजन...
महाराष्ट्र : वंचित बहुजन आघाड़ी ने खोल दिया तीसरा मोर्चा
आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने अपनी ओर से सात उम्मीदवारों की सूची 27 मार्च को जारी कर दी। यह पूछने पर कि वंचित...
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा में मेरी भागीदारी की वजह’
यद्यपि कांग्रेस और आंबेडकर के बीच कई मुद्दों पर असहमतियां थीं, मगर इसके बावजूद कांग्रेस ने आंबेडकर को यह मौका दिया कि देश के...
इलेक्टोरल बॉन्ड : मनुवाद के पोषक पूंजीवाद का घृणित चेहरा 
पिछले नौ सालों में जो महंगाई बढ़ी है, वह आकस्मिक नहीं है, बल्कि यह चंदे के कारण की गई लूट का ही दुष्परिणाम है।...
कौन हैं 60 लाख से अधिक वे बच्चे, जिन्हें शून्य खाद्य श्रेणी में रखा गया है? 
प्रयागराज के पाली ग्रामसभा में लोनिया समुदाय की एक स्त्री तपती दोपहरी में भैंसा से माटी ढो रही है। उसका सात-आठ माह का भूखा...