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वर्ग-भेद के प्रखर आलोचक मुक्तिबोध की नजर से, वर्ण भेद कैसे ओझल हो गया

मुक्तिबोध वर्ग-चेतना संपन्न मार्क्सवादी कवि-आलोचक रहे हैं। उन्होंने वर्ग-भेद आधारित समाज और साहित्य की तीखी आलोचाना की है, लेकिन उनकी नजर से वर्ण-भेद पूरी तरह गायब है। कहीं-कहीं उसके पक्ष में भी खड़े दिखते हैं। मुक्तिबोध के आलोचनात्मक विवेक का विश्लेषण कर रहे हैं, बहुजन लेखक कंवल भारती :

मुक्तिबोध के आलोचना-कर्म का बहुजन नजरिए से मूल्यांकन

मेरे लिए गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ एक कवि के रूप में जितने जटिल हैं, उतने जटिल वह आलोचक के रूप में नहीं हैं। उनकी कविता में अभिव्यक्ति की जटिलता और दुरूहता सबसे अधिक है, इसलिए वह मेरे कभी पल्ले नहीं पड़ते। एक दफे यह बात मैंने निजी बातचीत में प्रणय कृष्ण से कही थी, तो उनका कहना था कि अगली बार जब बैठेंगे, तो यह दुरूहता खत्म हो जायेगी। उन्होंने सही कहा था, क्योंकि वह मुक्तिबोध को पढ़ाते हैं और उस पर अधिकार भी रखते हैं। पर, किसी के समझाने से समझा, तो क्या समझा?

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लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

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