मुक्तिबोध के आलोचना-कर्म का बहुजन नजरिए से मूल्यांकन
मेरे लिए गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ एक कवि के रूप में जितने जटिल हैं, उतने जटिल वह आलोचक के रूप में नहीं हैं। उनकी कविता में अभिव्यक्ति की जटिलता और दुरूहता सबसे अधिक है, इसलिए वह मेरे कभी पल्ले नहीं पड़ते। एक दफे यह बात मैंने निजी बातचीत में प्रणय कृष्ण से कही थी, तो उनका कहना था कि अगली बार जब बैठेंगे, तो यह दुरूहता खत्म हो जायेगी। उन्होंने सही कहा था, क्योंकि वह मुक्तिबोध को पढ़ाते हैं और उस पर अधिकार भी रखते हैं। पर, किसी के समझाने से समझा, तो क्या समझा?
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