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कबीर का देश निकाला और मृत्यु

क्या कबीर मगहर अपनी मर्जी से गये थे? इस सवाल का जवाब जटिल है। लेकिन उपलब्ध ऐतिहासिक संदर्भों से यह तो स्पष्ट होता है कि उन्हें मजबूरी में ही काशी छोड़कर मगहर जाना पड़ा। यह एक प्रकार का देश निकाला था। पढ़ें कंवल भारती का मत

कहै कबीर सुनहु रे संतो भ्रमि परे जिनि कोई।

जस कासी तस मगहर ऊसर हिरदैं राँम सति होई।।[1]

हिन्दी के विद्वानों ने कबीर साहेब की मृत्यु को लेकर भी विवाद पैदा किया है और इस बात को लेकर भी, कि वे अपनी मुक्ति का श्रेय काशी को देना नहीं चाहते थे, इसलिये मगहर जाकर मरे थे। ये विद्वान दरअसल कबीर को समझना ही नहीं चाहते, इसलिये वे भ्रमित ही कर सकते थे। उनका कहना है कि कबीर अन्तिम समय में काशी छोड़कर इसलिये मगहर चले गये थे, क्योंकि वे काशी में मरना नहीं चाहते थे। उनके मगहर जाने के पीछे जो कहानी गढ़ी गयी, वह बाबू श्याम सुन्दर दास के शब्दों में इस प्रकार है।

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लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

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