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कांचा की किताबें काेर्स से नहीं हटाना चाहता है संबंधित विभाग

दिल्ली विश्वविद्यालय के काेर्स से कांचा आयलैया की किताबें हटाने का विश्वविद्यालय स्टैंडिंग कमेटी का फैसला रद्द हाे सकता है। क्याेंकि संबंधित विभाग ने किताबें हटाने से इनकार कर दिया है। फिलहाल इसके लिए स्टैंडिंग कमेटी की इसी महीने यानी नवंबर में बैठक हाेगी, जिसका सबकाे बेसब्री से इंतजार है। फारवर्ड प्रेस की रिपाेर्ट :

डीयू : कांचा आयलैया काे राहत, काेर्स में रह सकती हैं उनकी किताबें

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पाठ्यक्रम से कांचा आयलैया शेफर्ड की किताबें हटाए जाने का प्रस्ताव रद्द हाे सकता है। इस मामले में डीयू के राजनीति विज्ञान विभाग- जहां अब तक कांचा आयलैया की किताबें पढ़ाई जाती रही हैं -ने किताबाें पर प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया है। दरअसल, दिल्ली विश्वविद्यालय की स्टैंडिंग कमेटी ने गत 24 अक्टूबर काे कांचा आयलैया की तीन किताबें- ‘व्हाई आई एम नाट हिंदू’, ‘पोस्ट हिंदू इंडिया’ और ‘बफैलाे नेशनलिज्म’ हटाने का प्रस्ताव पास कर दिया था। इस पर विश्वविद्यालय के प्राेफेसर्स, लेखकाें और बुद्धिजीवियों के बीच बहस का माहाैल बन गया। अनेक बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बहुजन साहित्य का हनन मान रहे थे, जाे सही भी है। वहीं, विश्वविद्यालय के अधिकतर शिक्षक शुरू से ही कांचा आयलैया की किताबाें पर राेक लगाने के खिलाफ थे। कांचा आयलैया की इन तीन किताबाें पर प्रतिबंध लगाने की गहमागहमी के बीच कुछ शिक्षकाें ने इस्लाम के अंतर्राष्ट्रीय इतिहास पढ़ाने और दूसरे धर्माें काे न पढ़ाए जाने पर भी सवाल खड़े किए थे।

खैर! इस बीच अपने सिलेबस लागू करने वाले राजनीतिक विज्ञान विभाग ने साफ कर दिया है कि वह इससे इत्तेफाक नहीं रखता है और इस बाबत विभाग की बैठक में साफ कर दिया गया है कि विभाग कांचा आयलैया की किताबें हटाए जाने के पक्ष में नहीं है।

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दिल्ली विश्वविद्यालय

डीयू के एसोसिएट प्रोफेसर सरोज गिरि के मुताबिक, ‘डिपार्टमेंटल बैठक में एक मत से यह बात स्वीकार की गई है कि जब देश-विदेश में बहुजन लेखक कांचा आयलैया की किताबें पढ़ाई जाती हैं और 2009 से डीयू के सिलेबस का भी ये किताबें हिस्सा हैं, तो फिर आखिर क्यों इन्हें हटाने की जरूरत महसूस की गई। शैक्षणिक नियमाें के तहत ये (किताबें) सिलेबस का हिस्सा हैं। इसलिए इन किताबों को बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिश समझ से परे है। बैठक में इस तरह के हस्तक्षेप पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की गई है। साथ ही बैठक में कहा गया है कि इस तरह की कोई भी कोशिश विभाग की स्वायत्तता (किताबों के चयन की स्वतंत्रता) पर सवाल खड़े करती है।’

कांचा आयलैया

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इस बाबत फारवर्ड प्रेस ने विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वीणा कुकरेजा से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से जवाब नहीं मिला। जानकारों की मानें, तो कांचा आयलैया की किताबों का अब यह मामला अभी फंसा हुआ ही नजर आ रहा है, क्योंकि स्टैंडिंग कमेटी के किताबों पर प्रतिबंध वाले प्रस्ताव को इतनी जल्दी खारिज नहीं माना जा सकता है। क्योंकि आयलैया की किताबों को कोर्स में रखने-न रखने का अंतिम फैसला एकेडमिक काउंसिल की बैठक में लिया जाएगा। बता दें इस कमेटी में कमेटी के सदस्य प्रोफेसर्स के अतिरिक्त अनेक शिक्षक भी शामिल होंगे। इन शिक्षकों ने आयलैया की किताबें प्रतिबंधित करने पर कड़ी आपत्ति जताई है।

कांचा आयलैया के समर्थन में उतरे शिक्षक

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खास बात यह है कि इस बैठक में जिस भी डिपार्टमेंट से संबंधित मामला होता है, उसका प्रतिनिधित्व उस डिपार्टमेंट का हेड करता है। और बैठक में बताता है कि डिपार्टमेंट की इस बाबत राय क्या है? यानी एकेडमिक काउंसिल की बैठक में अगर संबंधित विभाग की तरफ से प्रतिकूल टिप्पणी आती है, तो फिर उसे पास करना-कराना आसान नहीं होगा। ऐसे में इंतजार है इस महीने होने वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक का।       

(कॉपी संपादन : प्रेम)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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