इस वर्ष 2 अप्रैल 2018 को हुए देशव्यापी आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश के मेरठ में दलितों पर सामंती लोगों का कहर जारी है। यह आंदोलन सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधन किए जाने के खिलाफ किया गया था। स्वत:सफूर्त हुआ यह आंदोलन अत्यंत ही प्रभावकारी साबित हुआ। केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किए गए संशोधन को खारिज करने के लिए संशोधन विधेयक संसद में लाना पड़ा।
इस आंदोलन का एक असर यह हुआ कि देश भर में निर्दोष दलितों के खिलाफ कार्रवाइयां की गईं। इतना ही नहीं, ऊंची जातियों के लोगों द्वारा हिंसा का एक दौर भी शुरू हो गया। मेरठ में 2 अप्रैल 2018 से लेकर अब तक चार लोगों की हत्या हो चुकी है। इन मामलों में पुलिसिया कार्रवाई नहीं की गई है।
मेरठ में हुई इन वारदातों में पुलिस द्वारा कानून सम्मत कार्रवाइयां नहीं किए जाने पर स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता रवि कांत ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामशंकर कठेरिया को पत्र लिखा और उनसे कार्रवाई करने का अनुरोध किया है।
आंदोलन के दौरान ही मौत के घाट उतार दिया गया अंकुज जाटव
जब पूरे देश में एससी, एसटी कानून में संशोधन के खिलाफ भारत बंद किया जा रहा था, उसी समय मेरठ कचहरी के पूर्वी गेट पर अंकुज जाटव की हत्या गोली मारकर कर दी गई। सनद रहे कि यह घटना कचहरी के सामने हुई जहां पुलिस प्रशासन भी पूरी तरह मुस्तैद थी। अब इस घटना को सात महीने बीतने के बावजूद पुलिस ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है। अंकुज के हत्यारे छुट्टा घुम रहे हैं।
दूसरी हत्या ठीक दो दिनों बाद हुई। मेरठ के फाजलपुर निवासी गोपी पारिया की हत्या कर दी गई। इस मामले में पांच लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया। मृतक के परिजनों का आरोप है कि कंकरखेड़ा थाने की पुलिस ने इस मामले में आरोपियों को बचाने की नीयत से अपने हिसाब से प्राथमिकी दर्ज किया। पुलिस इस मामले को लेकर इस कदर निष्क्रिय है कि आज तक एक भी आरोपी को गिरफ्तार तक नहीं किया गया है।
कटघरे में मेरठ पुलिस
जबकि, 9 अगस्त 2018 को सवर्णों ने उल्लेदपुर गांव के निवासी रोहत जाटव की पीट-पीटकर हत्या कर दी। इस मामले में भी पुलिस की कार्रवाई पुलिस को ही कटघरे में खड़ा करती है। मृतक के पिता ने इस संबंध में एक मुकदमा गंगानगर थाना में दर्ज कराया। इसमें उन्होंने नौ लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया। परंतु पुलिस ने अभी तक केवल चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। शेष पांच अभी भी फरार हैं।
बहरहाल, उपरोक्त घटनाएं तो महज बानगी हैं कि सवर्ण किस तरह से दलितों पर जुल्म कर रहे हैं। वह भी तब जबकि एससी, एसटी एक्ट सहित कई कानून हैं। परंतु इन कानूनों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। मसलन एससी-एसटी एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि मुकदमा दर्ज होने के बाद साठ दिनों के भीतर सीधे आरोप पत्र गठित किए जाएं। परंतु ऐसा नहीं किया जा रहा है।
(कॉपी संपादन : प्रेम)
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