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ओबीसी का उप-वर्गीकरण : कहना आसान, करना मुश्किल

क्या बिना राष्ट्रव्यापी परामर्श और संबंधित विभिन्न विषयों के विस्तृत अध्ययन के ओबीसी के उपवर्गीकरण के कार्य को अंजाम दिया जा सकता है? यह जिम्मेवारी जी. रोहिणी कमीशन को दी गयी है। लेकिन अब तक जो तथ्य सामने आये हैं, वे सवाल ही खड़े करते हैं। बता रहे हैं पी. एन. संकरण :

ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलने की मंडल कमीशन की अनुशंसा को लागू हुए वर्षों बीत गए। इसके बाद भी ओबीसी वर्ग में शामिल जिन जातियों को आरक्षण की दरकार सबसे अधिक थी, उन्हें इसका लाभ नहीं मिल सका। इस स्थिति ने केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय और पिछड़े वर्गों के लिए बने राष्ट्रीय आयोग (एनसीबीसी) को ओबीसी के उप वर्गीकरण के सवाल पर गंभीरतापूर्वक विचार करने पर विवश किया।

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लेखक के बारे में

पी. एन. संकरण

डॉ पी. एन. संकरण, विश्वकर्मा समुदाय, जिसके सदस्य पारंपरिक रूप से हस्तशिल्पी रहे हैं, की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए केरल सरकार द्वारा सन 2012 में नियुक्त आयोग के अध्यक्ष थे. वे एक विकास अर्थशास्त्री हैं और थिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं. उन्होंने सन 2018 में एमराल्ड पब्लिशिंग (यूके) द्वारा प्रकाशित पुस्तक “रीडिफाइनिंग कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (डेव्लप्मेंट्स इन कॉर्पोरेट गवर्नेंस एंड रेस्पोंसिबिलिटी, खंड 13)” में “ट्रेडिशनल आरटीसंस एज स्टेकहोल्डर्स इन सीएसआर : ए रिहैबिलिटेशन पर्सपेक्टिव इन द इंडियन कॉन्टेक्स्ट” शीर्षक अध्याय का लेखन किया किया है

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