h n

संविधान दिवस के मौके पर पटना में जुटे दलित-बहुजन

सिंधु सभ्यता के पतन के बाद से ही ब्राह्मणवादी विषमता का दौर प्रारम्भ हुआ। इस विषमता के खिलाफ बुद्ध से लेकर कबीर, जोतीराव फुले, सावित्री बाई फुले, डॉ. अांबेडकर, पेरियार आदि हमारे नायकों ने संघर्ष किया। जिस दिन 26 नवंबर 1949 को भारत ने संविधान को अंगीकार किया, वह दिन ब्राह्मणवादी शक्तियों के पराजय का दिन था। फारवर्ड प्रेस की खबर :

बीते 26 नवंबर 2018 को संविधान दिवस के मौके पर बिहार की राजधानी पटना में विभिन्न संगठनों के साझा मंच ‘सामाजिक न्याय आंदोलन, बिहार’ के बैनर तले राज्यस्तरीय सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन का संचालन न्याय मंच, बिहार के रिंकू यादव ने और अध्यक्षता आरक्षण बचाओ-संविधान बचाओ के अध्यक्ष विष्णुदेव मोची ने की।

सम्मेलन की प्रस्तावना रखते हुए रिंकू यादव ने कहा कि आज देश में राज और समाज पर मनुवादी ताकतों का शिकंजा मजबूत हुआ है। फासीवादी ताकतें मजबूत हुई हैं। सामाजिक न्याय का एजेंडा आज भी अधूरा है। नब्बे के दशक में जब पिछड़ों के आरक्षण की शुरुआत हुई, तो उसी वक्त ब्राह्मणवादी-प्रतिक्रियावादी शक्तियां कमंडल आंदोलन लेकर सामने आईं। एक तरफ राम मंदिर बनाने का आंदोलन शुरू हुआ, तो दूसरी तरफ आर्थिक उदारीकरण व निजीकरण की भी शुरुआत हुई। इस दशक में बहुजन चेतना व नेतृत्व अपनी ऊंचाई पर पहुंचते हैं। फिर बिखराव व पतन का दौर शुरू जाता है। इसी दौर में बीजेपी-आरएसएस भी नए दौर की शुरुआत करता है और अपने चरम पर पहुंचता है।

उन्होंने कहा कि आज इस कठिन समय में सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर नए सिरे से संघर्ष की बुनियाद पर बहुजनों की सामाजिक-राजनीतिक दावेदारी खड़ी करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय आंदोलन को जाति उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ाना होगा। यह बहुजनों के हक-अधिकार व आत्मसम्मान की लड़ाई है।

कार्यक्रम को संबोधित करते वक्ता

सम्मेलन को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि सामाजिक न्याय को महज आरक्षण तक सीमित कर दिया गया है। किन्तु, आज भी आरक्षण को मुकम्मल ढंग से लागू नहीं किया जा सका है। आरक्षण को 50 प्रतिशत के दायरे में सीमित कर दिया गया है। इसके लिए मुख्यधारा की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां दोषी हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय का अर्थ समता, स्वतंत्रता, न्याय व भाईचारे के मूल्यों के आधार पर देश-समाज को गढ़ना है। आज भी देश में जाति, वर्ण, लिंग, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर भेदभाव कायम है। देश में जाति के आधार पर आज भी उत्पीड़न का सिलसिला बदस्तूर जारी है। देश में बेरोजगारी, भ्र्ष्टाचार व भयानक आर्थिक विषमता कायम है। उन्होंने कहा कि देश के 73 फीसदी संसाधनों पर एक फीसदी आबादी का कब्जा बना हुआ है। भूमि सुधार का एजेंडा अनुत्तरित है, जबकि आजादी के सात दशक बाद भी ज्यादातर दलित भूमिहीन बने हुए हैं। इसके लिए आज जरूरी है कि सामाजिक न्याय व सेकुलरिज्म के समग्र एजेंडे पर नए सिरे से मुकम्मल संघर्ष करते हुए राजनीति खड़ी करने के लिए पुरजोर प्रयास करना होगा।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

वहीं ‘पसमांदा मुस्लिम महाज’ के बिहार प्रदेश अध्यक्ष मुख्तार अंसारी ने कहा कि धर्म की आड़ लेकर हमेशा गरीबों, दलितों, वंचितों के सवालों को दबाया जाता है। लोकतंत्र किसी धर्म शास्त्र से नहीं चलता है; बल्कि वह संविधान से चलता है। अगर कोई संविधान के स्थान पर धर्मशास्त्रों को थोपना चाहता है, तो वह सबसे बड़ा देशद्रोही है। जब पसमांदा मुस्लिम अपने हकाें और भागीदारी की बात करते हैं, तो अपर कास्ट मुस्लिम इन सवालों के खिलाफ खड़ा हो जाता है। उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा कि मुस्लिमों में भी दलित तबका है। सामाजिक न्याय का तकाजा है कि उन्हें भी अनुसूचित जाति की कैटेगरी में शामिल किया जाना चाहिए।

वंचित समाज विकास मंच के नवीन प्रजापति ने कहा कि दलितों-वंचितों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व स्वास्थ्य का एजेंडा सामाजिक न्याय का अहम एजेंडा है। भूमंडलीकरण के मौजूदा दौर में उदारीकरण, निजीकरण व बाजारीकरण का संकट उपस्थित हुआ है और इसने दलितों-वंचितों के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। हासिये के समुदाय को नए सिरे से संगठित करते हुए उनके राजनीतिक भागीदारी के सवाल को संघर्ष का एजेंडा बनाना होगा। उन्होंने कहा कि आज सफाई मजदूरों का ठेका प्रथा के जरिये शोषण किया जा रहा है, इसे भी नए दौर के संघर्ष का सवाल बनाना होगा।

कार्यक्रम में उपस्थित दलित-बहुजन

सम्मेलन को संबोधित करते हुए सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय के आंदोलन को सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की मांग करनी होगी। इस कमेटी ने समान अवसर आयोग गठित करने की अनुशंसा की थी, किन्तु न तो केंद्र सरकार ने और न ही किसी राज्य की सरकार ने इसे लागू नहीं किया है। हमें सामाजिक न्याय की नई राजनीति की पूरी रूपरेखा तैयार करनी होगी। अन्यथा सामाजिक न्याय की पतित हो चुकी धारा में समाहित होने का खतरा बना रहेगा। सामाजिक न्याय की समतामूलक संस्कृति गढ़नी पड़ेगी। वहीं, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. विलक्षण रविदास ने कहा कि सिंधु सभ्यता के पतन के बाद से ही भारत में ब्राह्मणवादी विषमता का दौर प्रारम्भ हुआ। इस विषमता के खिलाफ महात्मा बुद्ध से लेकर संत कबीर, महात्मा जोतीराव फुले, सावित्री बाई फुले, बाबा साहब डॉ. आंबेडकर, पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर आदि हमारे नायकों ने संघर्ष किया। जिस दिन 26 नवंबर 1949 को आजाद भारत ने संविधान को अंगीकार किया, वह दिन ब्राह्मणवादी शक्तियों की पराजय का दिन था। उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल आदि ब्राह्मणवादी संगठन बहुजनों के अधिकाराें व संविधान को कुचलना चाहते हैं। भाजपा मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक को खत्म करने की बात करती है, किंतु दूसरी तरफ सबरीमाला मंदिर में हिंदू महिलाओं के प्रवेश का विरोध करती है। कांग्रेस भी उसी के सुर में सुर मिला रही है।

यह भी पढ़ें : आंबेडकर के लोकतांत्रिक समाजवाद से क्यों असहमत थी संविधान सभा?

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विष्णुदेव मोची ने कहा कि संगठन और आंदोलन को निचले स्तर तक ले जाने व मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। आज बिहार और देश को सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर नए राजनीतिक विकल्प की तरफ बढ़ने की जरूरत है।

कार्यक्रम के दौरान शोषित, वंचित समाज के प्रदेश अध्यक्ष रामप्रवेश राम, ‘आरक्षण बचाओ-संविधान बचाओ’ मोर्चा के संरक्षक इंजीनियर हरिकेश्वर राम, जेएनयू के छात्र नेता सह न्याय मंच के राष्ट्रीय संयोजक प्रशांत निहाल, भारतीय अति पिछड़ा महासंघ के अध्यक्ष राजेश चंद्रवंशी, सोशलिस्ट युवजन सभा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष गौतम कुमार ‘प्रीतम’, बहुजन मुक्ति मोर्चा के उमा शंकर साहनी, सेवा स्तंभ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.एल. भंडारी, पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, ‘जनसंसद’ के नेता रामानंद पासवान, न्याय मंच के अर्जुन शर्मा, पीएसओ के नेता अंजनी, आरक्षण बचाओ- संविधान बचाओ मोर्चा के प्रेमशंकर पासवान, शैलेश पासवान और जितेंद्र कुमार सहित अनेक गणमान्य लाेगाें ने अपने विचार रखे।

सम्मेलन का समापन 24 जनवरी, 2019 को जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर बिहार की राजधानी पटना में सामाजिक न्याय के समग्र एजेंडे पर राज्यस्तरीय विशाल ‘बहुजन महापंचायत’ किए जाने के ऐलान के साथ किया गया। सम्मेलन के अंत में धन्यवाद ज्ञापन वाल्मीकि प्रसाद ने किया।

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...