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कहां से आती है द्विजों के दिमाग में बहुजनों के लिए इतनी नफरत?

‘जाति का विनाश’ में डॉ. आंबेडकर ने यह स्पष्ट उल्लेख किया कि किस तरह हिंदू धार्मिक ग्रंथ न केवल कपोल-कल्पित मिथकों से भरे पड़े हैं, बल्कि यह भी कि जाति व्यवस्था के निर्माण व वर्चस्व बनाये रखने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। कंवल भारती का विश्लेषण :

मैंने बीते 31 अक्तूबर 2017 को फेसबुक पर ‘एक महान किताब ‘शस्त्रहीन हिन्दू हिन्दू नहीं’[1] की जानकारी दी थी। जिसके लेखक डा. वेदराम वेदार्थी, साहित्यरत्न, सिद्धांतशास्त्री, विद्यावाचस्पति, एम.ए., पीएचडी हैं। 1990 में अलीगढ़ से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य ‘सहयोग’ है, जिससे पता चलता है कि उसका नि:शुल्क वितरण किया गया था। इस पुस्तक में ‘निवेदन’ के अंत में लेखक ने लिखा है–‘कारसेवक-दिवस’, 30 अक्टूबर 1990। इससे पता चलता है कि लेखक आरएसएस के मन्दिर आन्दोलन से जुड़ा है। इस किताब में पृष्ठ 35  पर यह ‘महान वचन’ लिखा हुआ है–

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लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

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