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शर्मनाक : योगी आदित्यनाथ ने दी दलित-बहुजनों को गाली

राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित और आदिवासी कहा। ऐसा कहकर उन्होंने दलितों और आदिवासियों को हिंदूवादी मान्यताओं के साथ जोड़ने की कोशिश की, ताकि इन वर्गाें का वोट भाजपा को मिल सके। लेकिन, योगी का बयान केवल चुनाव तक सीमित नहीं है। बता रहे हैं सुशील मानव :

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते 27 अक्टूबर 2018 को राजस्थान में अलवर जिले के मालाखेड़ा में एक चुनावी सभा के दौरान दलितों और आदिवासियों को हनुमान कहकर प्रकारांतर से गालियां दीं। उन्होंने हनुमान को दलित, वनवासी, गिरिवासी और वंचित समाज का बताया। योगी सिर्फ इतने पर ही नहीं रुके और आगे कहा- “चुनाव में राम भक्त बीजेपी को वोट दें, रावण भक्त कांग्रेस को वोट दें।”  

योगी आदित्यनाथ जिस क्षत्रिय समुदाय से आते हैं, वह समुदाय स्वयं को राम का वंशज बताता है। रामायण में हनुमान की भूमिका राम और उनके परिजनों के दास की है। सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो योगी आदित्यनाथ ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि जिस तरह से हनुमान राम की सेवा में पूंछ हिलाते रहते थे, संपूर्ण बहुजन समाज जिसमें दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग के लोग शामिल हैं, सवर्णों की सेवा में पूंछ हिलाएं।  

दलित-बहुजनों का अपमान भाजपा के नेताओं ने पहली बार नहीं किया है। इससे पहले इसी वर्ष मार्च महीने में फूलपुर लोकसभा उप चुनाव के दौरान एक सभा को संबोधित करते उत्तर प्रदेश के मंत्री नंदगोपाल नंदी ने योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राम, उन्हें (योगी आदित्यनाथ को) हनुमान, मुलायम सिंह को रावण, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मारीच, अखिलेश यादव को मेघनाद व बसपा प्रमुख मायावती को शूर्पणखा कहा था।

राजस्थान के अलवर जिले में एक चुनावी सभा को संबोधित करते योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ द्वारा दलितों, आदिवासियों और ओबीसी वर्ग के लोगों को हनुमान की संज्ञा देना उनके स्वाभिमान पर प्रहार करने जैसा है। रामायण का हनुमान उस राम का दास है, जो शूद्रों के प्रति अमानवीय व्यवहार करता है। यहां शंबूक की कहानी काबिल-ए-गौर है। शंबूक ज्ञान अर्जित करना चाहते थे। कथित मर्यादा पुरुषोत्तम राम को शंबूक द्वारा ज्ञान अर्जन का प्रयास इतना बुरा लगा और उसे इतना गुस्सा आया कि उसने उनकी हत्या करने के लिए न तो अपने किसी भाई कोे भेजा और न ही अपने दास हनुमान को, वह स्वयं ही निकल पड़ा और तलवार के एक वार से ही शंबूक का सिर धड़ से अलग कर दिया।

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चुनाव के मौके पर योगी को याद आए राम और हनुमान

दरअसल, योगी का वक्तव्य हिंदुत्व कार्ड के साथ-साथ जातिगत वोट बैंक को साधने की कोशिश ही है। बता दें कि राजस्थान में कुल मतदाताओं का 17.8 फीसदी हिस्सा दलित समुदाय का है और पिछले एक दशक से परंपरागत दलित कांग्रेस को छोड़कर, बीजेपी को वोट करते आ रहे थे। लेकिन, इस बार वसुंधरा राजे सरकार को लेकर इस तबके में खासी नाराजगी है। योगी द्वारा दलितों को साधने के लिए बजरंग बली को दलित बताकर नया ब्राह्मणवादी दांव खेला गया है।  

जयपुर के ब्राह्मण संगठन ने आदित्यनाथ को भेजा नोटिस

एक खबर यह भी है कि योगी आदित्यनाथ के इस बयान पर राजस्थान ब्राह्मण सभा की भी त्याेरियां चढ़ गई हैं। जयपुर के एक संगठन सर्व ब्राह्मण समाज ने हनुमान जी को जाति में बांटने का आरोप लगाते हुए योगी को नोटिस भेजकर माफी मांगने को कहा है। ब्राह्मण समुदाय की इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि वे नहीं चाहते कि हनुमान के दासत्व को आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में मुखर अभिव्यक्ति मिले। ब्राह्मणवादी मिथकों की जातीय संरचना के खुल जाने से द्विज समुदाय को मौजूदा स्थितियों में नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही कारण है कि कुछ दलित-बहुजन कार्यकर्ताओं के समूह ने योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखकर कहा है कि – “हनुमान के दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदाय से संबद्ध होने के आपके बयान का हम कड़ा विरोध करते हैं, लेकिन साथ ही आपको धन्यवाद भी देते हैं कि आपने रामायण के जातिवादी मिथकों का सच्चा खुलासा करके हमें इस पर पुनर्विचार के लिए मजबूर किया है। आपको सर्व ब्राह्मण समाज के नोटिस का उत्तर देना चाहिए और कहना चाहिए कि आपने जो कहा है, वह राम-कथा के हवाले से कहा है और सच कहा है। आपको दलित-बहुजन समुदाय से भी माफी मांगनी चाहिए तथा यह स्पष्ट करना चाहिए कि आपके वक्तव्य का आज के दलित-बहुजन समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है।”

हनुमान के मिथक का आदिवासी विमर्श

वास्तविकता यह है कि आदिवासी कबीले से संबंध रखने वाले हनुमान को राम की सत्ता स्वीकार करने के चलते आर्य संस्कृति ने स्वीकार तो कर लिया, पर बहुत ही हिंसक तरीके से विरूपित करके। आदिवासी हनुमान का रंग-रूप आर्य-नस्ल से इतना अधिक भिन्न था कि आर्यों ने अपने हिंसक नस्लीय बोध के कारण आदिवासी समुदाय के हनुमान को बंदर कहा। सुग्रीव व जामवंत जैसे दूसरे आदिवासी समुदायों के लिए भी आर्यों ने रीछ, भालू जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया; जो कालान्तर में ब्राह्मणों द्वारा लिखित रूप से भी दर्ज कर दिया गया। सत्ता के प्रति सेवा व समर्पण का सबसे हिंसक रूपक हैं- हनुमान। जिन्हें सेवा व स्वामीभक्ति के बदले सत्ता की ओर से पूंछ (दुम) लगा दी जाती है। हनुमान में हनुमान का अपना कुछ नहीं है। हनुमान में जिस बल की बात की जाती है, वो भी ‘राम-नाम’ (सत्ता) का बल है। ब्राह्मणों ने कथाओं के माध्यम से दर्शाया कि अपने पत्नी-बच्चों एवं कपि क्षेत्र (जहां के राजा हनुमान के पिता केसरी थे) के प्रति उत्तरदायित्व से विमुख हनुमान राम का दासत्व प्राप्त करके धन्य हो गए। बहुत ही खतरनाक साजिश के तहत हनुमान के इस दासत्व-बोध को कालांतर में इतना अधिक ग्लोरीफाई किया गया कि दलित, आदिवासी समुदाय के लोग शोषण के विरुद्ध प्रतिरोध के बजाय दासत्व को सहर्ष स्वीकार करके सत्ता की सेवा में न्योछावर हो जाने में ही अपने कुल की मुक्ति ढूंढने लगे।

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अपने ग्रंथों में हनुमान को बलवान, बुद्धिमान दर्शाने का एक बहुत ही मजबूत कारण यह भी था। इससे दलित, आदिवासी समुदायों में ये मनोवैज्ञानिक संदेश जाता कि जब हनुमान जैसा अतुलित बलशाली और बुद्धिमान व्यक्ति सत्ता की सेवा में अपने पिछवाड़े दुम लगाने तक को समर्पित है, तो तुम सामान्य लोगों की क्या औकात? पर यहां हनुमान को राम के बराबर बल और बुद्धि वाला दर्शाने के अपने खतरे भी थे, तो बुद्धिमान ब्राह्मणों ने हनुमान के जन्म को अवतार से जोड़कर हनुमान का आर्यकरण किया।

आरएसएस के हनुमान : कुर्सी पर विराजमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (राजपूत) और उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा (ब्राह्मण) के बीच छोटे से स्टूल पर बिठाए गए दूसरे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (ओबीसी)!

गौरतलब है कि इन चुनावों में एक खास रणनीति के तहत ही योगी की जनसभाएं राजस्थान की उन-उन सीटों पर रखी गईं, जहां-जहां कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मकसद से ही पूरे चुनाव प्रचार के दौरान योगी ने अली व बजरंग बली से लेकर बिरयानी और हिंदू-मुसलमानाें को अपने भाषण का न सिर्फ हिस्सा बनाया, बल्कि चुनाव सभाओं में खुलकर कहा – “कांग्रेस को अली मुबारक हों, हमें बजरंग बली चाहिए।”

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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