h n

सबरीमाला पर आदिवासियों ने ठोका दावा

मलाई अरायनों के अछूत होने की धारणा के चलते उन्हें सबरीमाला मंदिर पर मालिकाना हक और वहां पूजन आदि करने के अधिकार से वंचित किए जाने पर उच्चतम न्यायालय को विचार करना चाहिए. उच्चतम न्यायालय, 22 जनवरी 2019 को इस मुद्दे पर दायर पचास से अधिक पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. पीएन संकरण का आलेख

इंडिया यंग लायर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य प्रकरण में 28 सितंबर 2018 को अपना निर्णय सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रजस्वला आयु वर्ग (10-50 वर्ष) की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध, एक प्रकार की अछूत प्रथा है. न्यायालय ने कहा कि, ‘‘धार्मिक पूजा में महिलाओं के भाग लेने पर निषेध – चाहे वह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित क्यों न हो – स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के संवैधानिक मूल्यों के अधीन है. इस तरह का बहिष्करण, संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है.” महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध पर छिड़े विवाद का एक अनापेक्षित नतीजा है मलाई अरायन नामक एक आदिवासी समुदाय के मंदिर पर मालिकाना हक की पुनर्स्थापना की मांग.

मलाइ अरायनों का दावा है कि परंपरागत रूप से मंदिर में वे ही अनुष्ठान करवाते थे. सन् 1952 में एक ब्राह्मण परिवार ने उन्हें मंदिर से खदेड़कर उस पर अपना कब्जा जमा लिया. तब से, मंदिर के मुख्य पुजारी ‘तंत्री‘ का पद एक ही ब्राह्मण परिवार में पिता से पुत्र को स्थानांतरित होता आ रहा है. मलाई अरायन कार्यकर्ताओं के अनुसार, धीरे-धीरे मंदिर के इतिहास और उसके अनुष्ठानों का ब्राह्मणीकरण कर दिया गया और इस आदिवासी समुदाय को मंदिर से पूरी तरह निष्कासित कर दिया गया. सबरीमाला मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं और टिप्पणियां सामने आई हैं परंतु इनमें से किसी ने भी मंदिर पर मलाई अरायन समुदाय के दावे को गंभीरता से नहीं लिया. अतः यह ज़रूरी है कि मलाई अरायनों के अछूत होने की धारणा के चलते उन्हें सबरीमाला मंदिर पर मालिकाना हक और वहां पूजन आदि करने के अधिकार से वंचित किए जाने पर उच्चतम न्यायालय विचार करे. उच्चतम न्यायालय 22 जनवरी 2019 को इस मुद्दे पर दायर पचास से अधिक पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करेगा.

सबरीमाला मंदिर में श्रद्धलुओं की भारी भीड़

मलाई अरायनों ने सबरीमाला पर पहले भी अपना दावा जताया है. सन् 2011 में उन्होंने प्रदर्शन आयोजित कर यह मांग की थी कि मक्कर विलाकू को प्रज्वलित करने का अधिकार उन्हें दुबारा दिया जाए. मकर विलाकू, पोनमबलमेड़ू पहाड़ी पर लगाई जाने वाली कर्मकांडीय आग है, जिसे अब से कुछ साल पहले तक मंदिर के वर्तमान कर्ताधर्ता दैवीय प्रकाश बताते थे.

मकर ज्योति के दर्शन

इतिहास और हितधारक

केरल का सबरीमाला मंदिर, वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या और उनके द्वारा चढ़ाए जानेवाले चढ़ावे की कीमत – इन दोनों दृष्टियों से देश के बड़े धार्मिक स्थलों में से एक है. वह उन चन्द हिन्दू मंदिरों में शामिल है जहां सभी धर्मों के अनुयायियों का स्वागत किया जाता है. मंदिर के प्रांगण में वावरनाडू नामक एक स्थल है, जो वावर को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि वावर, अयय्पा के मुस्लिम मित्र थे. इस आस्था के चलते कि भगवान अय्यपा और केरल के अलापूजा के नजदीक स्थित अर्थुंकल के सेन्ट एन्ड्रयूज कैथोलिक चर्च के विकार फादर जैकोमो फैनीको, एक-दूसरे के मित्र थे, चर्च, सबरीमाला आने वाले तीर्थयात्रियों का आज भी स्वागत करता है. फादर जैकोमो 16वीं सदी में चर्च के विकार थे. मंदिर की यात्रा के दौरान जब श्रद्धालु, पीटाथुलल अनुष्ठान करते हैं, तब वावर मस्जिद उनकी मेजबानी करती है. ‘द हिन्दू’ द्वारा 2016 में प्रकाशित पुस्तक ‘सबरीमाला श्री धर्म संस्था टेम्पिल : एसेंट टू अवेकनिंग’ की भूमिका में मुकुंद पद्मनाभन ने इस अनुष्ठान की चर्चा करते हैं. संतोष के. थम्पी, जिनका एक लेख इस पुस्तक में शामिल है, लिखते हैं कि सबरीमाला के अतीत को मिथकों, किवंदतियों और इतिहास के मिश्रण की धुंध में से सत्य की तलाश करना  होगा, जो कि स्पष्टतः अत्यंत कठिन काम है. एक मिथक यह है कि अय्यन/ अय्यनारअय्यपन/संस्था या हरिहर पुत्रन, शिव और महाविष्णु के स्त्री अवतार मोहिनी के पुत्र थे. ऐसा बताया जाता है कि अय्यपन एक स्थानीय योद्धा नायक थे. इस मंदिर की किसी ऐतिहासिक दस्तावेज में सबसे पहले चर्चा 1893 में प्रकाशित ‘ज्योग्राफिकल एंड स्टेटिस्टीकल मेमोयर ऑफ़ द सर्वे ऑफ़ ट्रावणकोर एंड कोचीन स्टेटस’ में मिलती है. इसके लेखक वार्ड और कोर्नर थे.

सबरीमाला मंदिर के प्रांगण में स्थित वावर का स्थान

एक किवंदती के अनुसार, जब मदुरई के राजा शिकार करने जंगल में जा रहे थे, तब उनकी मुलाकात अय्यपा, जो कि एक योद्धा थे, से हुई. अय्यपा के साहस और युद्धकौशल से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें अपने सेना में भर्ती कर लिया. आगे चलकर जब उन्हे सेना का प्रमुख नियुक्त किया गया तब इस पद को पाने के इच्छुक अन्य लोग उनसे जलने लगे. उन्होंने एक चाल चली. रानी को इस बात के लिए राजी किया गया कि वे बीमार होने का नाटक करें और एक वैद्य को कहा गया कि वे यह कहें कि रानी का रोग केवल चीते का दूध पीने से ठीक हो  सकता है. षड़यंत्रकारियों का ख्याल था कि अय्यपा को चीते का दूध लाने के लिए जंगल में भेजा जाएगा और वो वहां से जीवित वापिस नहीं आ सकेंगे परंतु अय्यपा जंगल से एक चीते पर सवार होकर लौटे और उनके साथ कई अन्य चीते भी थे. राजा को तुरंत यह समझ में आ गया कि ऐसा करना किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं है और उन्होंने अय्यपा से कहा कि वे अपनी असली पहचान जाहिर करें. अय्यपा का उत्तर था ‘‘ईश्वर मेरे पिता हैं और यह दुनिया मेरा घर है‘‘. इसके बाद अय्यपा ने मदुरई राज्य को छोड़ दिया और केरल चले गए. राजा भी उनके पीछे-पीछे केरल में पंडलम नामक स्थान पर रहने लगे जो सबरीमाला के रास्ते पर है.

केरल के कन्नूर के एक मंदिर में अयप्पा की मूर्ति

सबरीमाला का एक और आयाम है बुद्ध धर्म से उसका संबंध. इतिहासविदों का मानना है कि बौद्ध धर्म, तीसरी सदी ईसापूर्व में केरल पहुँच गया था. सस्था (अय्यपा) पंथ और बौद्ध धर्म – दोनों में श्रद्धालुओं के एक स्थान पर इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से प्रार्थना करने की परंपरा है. यहां यह बताना समीचीन होगा कि सबरीमाला में स्थापित भगवान के नाम के आगे धर्म शब्द लगाया जाता है. इस शब्द का बौद्ध धर्म में भी प्रयोग होता है. ‘द हिस्ट्री ऑफ़ केरेला’ के लेखक ए श्रीधर मेनन, सबरीमाला और बौद्ध धर्म की पूजापद्धति व कर्मकांडों में समानताएं गिनवाते हुए कहते हैं कि दोनों में अहिंसा, शाकाहार, सेक्स से दूरी, जातिगत भेदभाव के निषेध, शरणम् अय्यपा के आव्हान और समूहों में मंदिर की यात्रा करने पर जोर दिया जाता है. शरणम् अय्यपा, बौद्ध शरणात्रय की याद दिलाते हैं. परंतु सबरीमाला के बौद्ध धर्म से संबंध के बारे में कोई पुरातत्वीय प्रमाण अब तक नहीं मिल सका है.

सबरीमाला के हितधारक, उनकी भूमिकाएं और दावे

पंडलम शाही परिवार : पंडलम से सबरीमाला तक एक रंग-बिरंगा जुलूस निकाला जाता है, जिसमें पंडलम शाही परिवार का एक सदस्य शामिल होता है. इस जुलूस में थिरूवाभरणम् (अय्यपा को पंडलम शाही परिवार द्वारा भेंट किए गए अनुष्ठानिक आभूषण) ले जाए जाते हैं.

थाजामन तंत्री (मुख्य पुजारी) का परिवार: सबरीमाला में तांत्रिक विधियां करने का पैतृक अधिकार चंगानूर के थाजामन मादोम परिवार का है. तंत्री, मंदिर में किए जाने वाले अनुष्ठानों का निर्धारण करने वाला सर्वोच्च पदाधिकारी होता है.

ट्रावणकोर देवासन बोर्ड (टीडीबी), केरल सरकार: टीडीबी एक स्वायत्तशासी संस्था है, जिसका गठन ट्रावणकोर रायल देवासम् कमीशन को भंग करने के बाद, सन् 1950 में ट्रावणकोर-कोचीन हिन्दू रिलिजयस इंस्टीट्युशनस एक्ट के अंतर्गत किया गया था. यह बोर्ड सबरीमाला (व उसके अधीन अन्य मंदिरों) का प्रबंधन करता है, जिसमें अधोसंरचना का विकास, दान आदि एकत्र करना और दुकानों, अतिथि गृहों, विज्ञापन आदि से होने वाली आमदनी का प्रबंधन शामिल है. मंडल पूजा, जिस दिन अय्यप्पा को थ्हांक अंकी से सजाया जाता है, के साथ सबरीमाला की 41 दिन की तीर्थयात्रा का समापन होता है.  थ्हांक अंकी, ट्रावणकोर के अंतिम महाराजा चिथिरा तिरुमल बलराम द्वारा 1973 में सबरीमाला मंदिर में चढ़ाई गयी बेशकीमती वेशभूषा है, जिसे टीडीबी, पार्थसारथी मंदिर, अरनमुला (केरल) में स्थित स्ट्रोंग रूम में सुरक्षित रखती है.

श्रद्धालुओं/आस्था रखने वालों के संगठन: यद्यपि श्रद्धालुओं के संगठनों की भूमिका केवल परामर्शदात्री है, तथापि पिछले कुछ वर्षों से उनकी भूमिका बढ़ी है, विशेषकर यात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने के मामले में. अखिल भारतीय अय्यपा सेवा संगठन व ग्लोबल अय्यप्पा यूनिटी फॉर रेवेरेंस एंड डिवोशन सहित कई अन्य संस्थाएं तीर्थयात्रियों को सेवा बतौर आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध करवाती आ रही हैं.

वन व पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार : अय्यपा का स्थान चारों ओर से घने जंगलों और पेरियार टाइगर रिज़र्व से घिरा हुआ है. आधार शिविरों और मंदिर जाने के रास्ते में पड़ने वाले अन्य शिविरों में किसी भी प्रकार के आधारभूत विकास कार्य करने के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति आवश्यक रूप से लेनी होती है क्योंकि इनका वनों एवं वन्यजीवों पर प्रभाव पड़ सकता है.

मलाई अरायन (क्षेत्र की एक जनजाति): ऐसा कहा जाता है कि इस जनजाति के सदस्यों ने लगभग 300 साल पूर्व. मूर्ति की स्थापना की और पुराने मंदिर का निर्माण कर, पोंनाम्बलाम्बेदु (सबरीमाला मंदिर के पास) में अपना देवता अय्यप्पा की आराधना शुरू की. अपने कर्मकांडों के भाग के रूप में वे पवित्र ज्योति प्रज्जवलित करने लगे. इसे ही मकर ज्योति की शुरुआत माना जाता है, जिससे सबरीमाला की दो माह तक चलने वाली तीर्थयात्रा का समापन होता है. अन्य संस्कार और सबरीमाला के रास्ते में पड़ने वाले अन्य स्थान, जो इस मंदिर पर इस जनजाति के दावे को मज़बूत करते हैं, में शामिल हैं : पेत्ताठुल्लाई, थेनाभिअभिषेकम, आज्हीपूजा, वेलिचाप्पदुठुल्लाई, शराम्कुथ्य, अप्पचिमेदु, वावारुस्वामी मंदिर और समूह में यात्रा करने की परंपरा.

मलाई अरायन और सबरीमाला पर उनका दावा

‘मलाई अरायन’ का अर्थ है “पहाड़ों का राजा”. ‘अरायन’ शब्द की उत्पत्ति अराचन (राजा) शब्द से है. वे मुख्यतः केरल के कोट्टयम, इदुक्की और पथानाम्थित्ता जिलों  में रहते हैं और अनुसूचित जनजातियों में सम्मलित हैं. पथानाम्थित्ता जिला (जहाँ सबरीमाला स्थित है), में निवासरत प्रमुख अनुसूचित जनजातियों में शामिल हैं उल्लादन या उल्लातन (27.26 प्रतिशत), मलाई वेदन या मलावेदन (23.56 प्रतिशत), मलाई अरायन या माला अरायन (11.57 प्रतिशत), मलाई पन्दाराम (6.09 प्रतिशत) और उरली (0.7 प्रतिशत) (स्त्रोत: केरला डिस्ट्रिक्ट फैक्ट बुक, पथानाम्थित्ता जिला, द्वितीय संस्करण, जनवरी 2018, डाटानेट इंडिया).

ट्रावणकोर के महाराजा द्वारा सन 1789 में अपने राज्य के संपूर्ण वनक्षेत्र को अपने अधिकार में लेने की उद्घोषणा के साथ ही, जंगल के राजा रातोंरात पून्जर और पन्दलम के राजाओं – जो कि ट्रावणकोर के अधीन थे – के पट्टेधारी बन गए. सन 1810 में सबरीमाला का प्रबंधन, ट्रावणकोर रॉयल देवास्वम कमीशन के हाथों में आ गया, जिसका गठन मुख्यतः वहां से होने वाली आमदनी को एकत्रित करना था. इसके लगभग एक सदी बाद तक, आदिवासी गरीबी, दासता और अपमान का जीवन जीते रहे. उनका उपयोग राजा के लिए वन उत्पाद इकठ्ठा करने और सबरीमाला की यात्रा के लिए जंगलों को साफ़ करने के लिए किया जाता रहा. यह सन 1950 तक जारी रहा, जब अवैध शिकारियों ने मंदिर में आग लगा डी. इसके बाद टीडीबी से नए मंदिर का निर्माण किया.

केरल के चेंगन्नुर स्थित थात्ताविला विश्वकर्मा परिवार के नीलकांता पणिकर और उनके छोटे भाई अय्यपा पणिकर द्वारा बनाई गयी पंचालोहा मूर्ति ने पत्थर की मूल आकृति का स्थान ले लिया. मंदिर काम्प्लेक्स में अब गर्भगृह, दो मंडपम, बेलिक्काल्पुरा, जिसमें ज्योति जलती है, ध्वजम और गणपति, नागराजा, मलिकप्पुराथाम्मा, वावर और कादुथा के स्थान और पथिनेत्ताम्पादी (18 सीढियाँ) शामिल हैं.

मलाई अरायनों द्वारा सबरीमाला के रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों और पहाड़ियों पर स्थित अन्य पवित्र स्थलों और उनके मालिकाना हक़ वाले अन्य मंदिरों में, पूजा के अतिरिक्त, निम्न कर्मकाण्ड किये जाते थे: पेत्ताठुल्लाई (एरुमेली क्षेत्र में नृत्य के साथ निकाला जाने वाला जुलूस), शराम्कुथ्य (बड़ के पेड़ में तीर लगाना), अप्पचिमेदु (रास्ते में पड़ने वाले नीचे स्थानों में कंकड़ गिराना), वावरूस्वामी मंदिर, थेनाभिषेकम (मूर्ति पर शहद टपकाना), मकर विलाक्कू (पोंनाम्बलेमेदु पहाड़ी पर अय्यप्पा की प्रतीक ज्योति जलाना), आज्हिपूजा (अग्नि की आराधना) और वेलिछाप्पदुठुल्लाल (ओरेकल का कर्मकांडी नृत्य). ऐसा कहा जाता है कि 19वीं सदी तक, करिमाला, निकक्कल, पोंनाम्बलामेदु, थालाप्पारा एयर अनैमाला सहित 18 मंदिर उनके आधिपत्य और प्रबंधन में थे. इसके अतिरिक्त, निम्न तथ्यों से भी यह संकेत मिलता है कि सबरीमाला और मलाई अरायनों में कुछ सम्बन्ध था: मंदिर में सभी (चाहे वे किसी भी धर्म के हों) को प्रवेश की अनुमति और एक-से काले रंग के कपडे पहनने की अनिवार्यता. जिन कर्मकांडों को  मलाई अरायनों से लिया गया है, उनमें शामिल हैं मकर ज्योति (पोंनाम्बलामेदु पहाड़ी की चोटी पर लगाई गयी आग को देखना), थेनाभिषेकम, आज्हिपूजा, सबरीमाला के रास्ते में नारियल और सूखे चावल के गोले फेंकना और इनसे जुड़े हुए मिथक और तीर्थयात्रियों के लिए निर्धारित आचरण, जिनने संस्थागत स्वरुप ले लिया है जैसे समूह में यात्रा करना, सामूहिक रूप से जोर से बोलते हुए प्रार्थना करना (ऐसा माना जाता है कि इससे जंगली जानवर दूर रहते हैं) और साथी तीर्थयात्रियों को अय्यपा/पेरियास्वमी/ मलिकप्पुरम इत्यादि नामों से संबोधित करना.

जो आदिवासी संगठन, सबरीमाला पर अपना दावा स्थापित करने के लिए संघर्षरत हैं, उनमें शामिल हैं भू अधिकार संरक्षण समिति (बीएएसएस), ऐक्य माला अराया महा सभा (एएमएएमएस), जिसके प्रतिनिधि पी.के, सजीव हैं, ऐक्य थिरुविथाम्कूर माला अराया महासभा (एटीएमएएमएस), जिसका गठन 1950 में किया गया था और जिसका वतर्मान में नेतृत्व के. के. गंगाधरन कर रहे है और केरल स्टेट पट्टिका जन समाजम (केपीजेएस), जिसके प्रतिनिधि सुनील कुमार हैं. सजीव कहते हैं कि मंदिर के पहले पुजारी करिमाला अरायन थे (जिनका नाम, गर्भगृह में जाने के लिए बनी 18 पवित्र सीढियों में से पहली पर अंकित है) और अय्यप्पा, मलाई अरायन दंपत्ति कंदन और करुथाम्मा के पुत्र थे. इन संगठनों का मुख्या लक्ष्य है मंदिर को महल और थंत्री परिवार के चंगुल से मुक्त करवाकर वहां सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दिलवाना. केरल के मंदिरों पर अनुसन्धान कर रहे लक्ष्मी राजीव भी मलाई अरायनों के इस तर्क का समर्थन करते हैं कि ब्राह्मणवादियों ने इस मंदिर पर जबरन कब्ज़ा जमा रखा है.

इस तर्कों के बाद भी, मूलनिवासी मलाई अरायनों के मानवाधिकारों के आधार पर उनके इन दावों के निराकरण करने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है.  देशज लोगों के अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के खंड 28 (1) के अनुसार, “देशज लोगों का यह अधिकार है कि जो भूमि, क्षेत्र या संसाधन पारंपरिक रूप से उनके थे या जिन पर उनका आधिपत्य था या जिनका वे उपयोग करते थे, उन पर, बिना उनकी पूर्व, स्वतंत्र व संपूर्ण जानकारी हासिल करने के बाद दी गयी सहमती के बिना, कब्ज़ा कर लिया गया है या उनका उपयोग किया जा रहा है या उन्हें नुकसान पहुँचाया जा रहा है, उन पर पुनः अधिकार प्राप्त करें और अगर यह संभव न हो, तो उन्हें इसके बदले न्यायपूर्ण व उचित मुआवजा दिया जाये”. खंड 28 (2) कहता है, “जब तक कि सम्बंधित व्यक्तियों द्वारा स्वतंत्रतापूर्वक अन्यथा निर्णय न लिया हो, तब तक मुआवजा उतनी ही गुणवत्ता, आकार व विधिक स्थिति वाली भूमि, क्षेत्र या संसाधन या अर्थिक क्षतिपूर्ति या अन्य उपयुक्त उपाय के रूप में होगा.”

यद्यपि मलाई अरायनों के सबरीमाला से संबंध अब तक पूर्णतः स्थापित नहीं हुए हैं तथापि उपलब्ध तथ्य, इन संबंधों की पुरातात्विक विवेचना किये जाने के पर्याप्त हैं. इस बीच, उन्हें मंदिर के हितधारक के रूप में मान्यता दिए जाने और वहां चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे में एक हिस्सा दिया जाना चाहिए. यह  देशज लोगों के अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र, 2007 के अनुरूप होगा.


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

पी. एन. संकरण

डॉ पी. एन. संकरण, विश्वकर्मा समुदाय, जिसके सदस्य पारंपरिक रूप से हस्तशिल्पी रहे हैं, की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए केरल सरकार द्वारा सन 2012 में नियुक्त आयोग के अध्यक्ष थे. वे एक विकास अर्थशास्त्री हैं और थिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं. उन्होंने सन 2018 में एमराल्ड पब्लिशिंग (यूके) द्वारा प्रकाशित पुस्तक “रीडिफाइनिंग कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (डेव्लप्मेंट्स इन कॉर्पोरेट गवर्नेंस एंड रेस्पोंसिबिलिटी, खंड 13)” में “ट्रेडिशनल आरटीसंस एज स्टेकहोल्डर्स इन सीएसआर : ए रिहैबिलिटेशन पर्सपेक्टिव इन द इंडियन कॉन्टेक्स्ट” शीर्षक अध्याय का लेखन किया किया है

संबंधित आलेख

विज्ञान की किताब बांचने और वैज्ञानिक चेतना में फर्क
समाज का बड़ा हिस्सा विज्ञान का इस्तेमाल कर सुविधाएं महसूस करता है, लेकिन वह वैज्ञानिक चेतना से मुक्त रहना चाहता है। वैज्ञानिक चेतना का...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
जब गोरखपुर में हमने स्थापित किया प्रेमचंद साहित्य संस्थान
छात्र जीवन में जब मैं गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्ययनरत था तथा एक प्रगतिशील छात्र संगठन से जुड़ा था, तब मैंने तथा मेरे अनेक साथियों...
चुनावी राजनीति में पैसे से अधिक विचारधारा आवश्यक
चुनाव जीतने के लिए विचारों का महत्व अधिक है। विचारों से आंदोलन होता है और आंदोलन से राजनीतिक दशा और दिशा बदलती है। इसलिए...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की 18 पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने की अधिसूचना
उच्च न्यायालय के ताज़ा फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में नया राजनीतिक घमासान शुरु होने का आशंका जताई जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार...