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सबरीमाला पर आदिवासियों ने ठोका दावा

मलाई अरायनों के अछूत होने की धारणा के चलते उन्हें सबरीमाला मंदिर पर मालिकाना हक और वहां पूजन आदि करने के अधिकार से वंचित किए जाने पर उच्चतम न्यायालय को विचार करना चाहिए. उच्चतम न्यायालय, 22 जनवरी 2019 को इस मुद्दे पर दायर पचास से अधिक पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. पीएन संकरण का आलेख

इंडिया यंग लायर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य प्रकरण में 28 सितंबर 2018 को अपना निर्णय सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि रजस्वला आयु वर्ग (10-50 वर्ष) की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध, एक प्रकार की अछूत प्रथा है. न्यायालय ने कहा कि, ‘‘धार्मिक पूजा में महिलाओं के भाग लेने पर निषेध – चाहे वह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित क्यों न हो – स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के संवैधानिक मूल्यों के अधीन है. इस तरह का बहिष्करण, संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है.” महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध पर छिड़े विवाद का एक अनापेक्षित नतीजा है मलाई अरायन नामक एक आदिवासी समुदाय के मंदिर पर मालिकाना हक की पुनर्स्थापना की मांग.

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लेखक के बारे में

पी. एन. संकरण

डॉ पी. एन. संकरण, विश्वकर्मा समुदाय, जिसके सदस्य पारंपरिक रूप से हस्तशिल्पी रहे हैं, की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए केरल सरकार द्वारा सन 2012 में नियुक्त आयोग के अध्यक्ष थे. वे एक विकास अर्थशास्त्री हैं और थिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं. उन्होंने सन 2018 में एमराल्ड पब्लिशिंग (यूके) द्वारा प्रकाशित पुस्तक “रीडिफाइनिंग कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (डेव्लप्मेंट्स इन कॉर्पोरेट गवर्नेंस एंड रेस्पोंसिबिलिटी, खंड 13)” में “ट्रेडिशनल आरटीसंस एज स्टेकहोल्डर्स इन सीएसआर : ए रिहैबिलिटेशन पर्सपेक्टिव इन द इंडियन कॉन्टेक्स्ट” शीर्षक अध्याय का लेखन किया किया है

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