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बैकफुट पर यूजीसी, स्टैंडिंग कमेटी के बदले ‘केयर’ काे पत्र-पत्रिकाओं की सूची बनाने की जिम्मेदारी

यूजीसी ने कथित तौर पर ‘मान्यता प्राप्त’ पत्र-पत्रिकाओं की सूची बनाने की प्रक्रिया में बदलाव का निर्णय लिया है। अब यह काम स्टैंडिंग कमेटी के बजाय एक दूसरी समिति करेगी। यूजीसी ने इसे केयर की संज्ञा दी है। फारवर्ड प्रेस की खबर :

बीते 28 नवंबर 2018 को रात के 9:20 बजे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक जानकारी दी। उन्होंने लिखा, “यह सूचना देते हुए खुशी हो रही है कि भारत में गुणवत्ता वाले पत्र-पत्रिकाओं की विश्वसनीय संदर्भ सूची बनाने के लिए यूजीसी द्वारा ‘केयर’ (कन्शोर्सियम फॉर एकेडमिक एंड रिसर्च इथिक्स) नामक एक समिति बनाई जाएगी, जो अकादमिक और शोध के क्षेत्र में उच्च मानकों और नैतिकता का ध्यान रखेगी।’’ इस ट्विटर संदेश के साथ जावड़ेकर ने उस नोटिस को भी साझा किया है, जो 28 नवंबर 2018 को ही यूजीसी द्वारा जारी किया गया है।

जारी नोटिस के अनुसार, केयर के अध्यक्ष यूजीसी के उपाध्यक्ष होंगे तथा इसके सदस्यों में समाज विज्ञान, मानविकी, कला, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि और अभियंत्रण से जुड़े सरकारी व मान्यता प्राप्त संस्थानों से संबद्ध सदस्य होंगे। इसके अलावा भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसंघ को भी केयर में प्रतिनिधित्व मिलेगा। इसके अलावा आईएनएफएलआईबीएनईटी (इन्फॉरमेशन एंड लाइब्रेरी नेटवर्क सेंटर)  भी इस समूह का सदस्य होगा।

जिस सूचना को जारी करते समय जावड़ेकर खुशी का इजहार कर रहे हैं, वह 2 मई 2018 को यूजीसी द्वारा जारी एक अधिसूचना से संबंधित है। इस अधिसूचना के मुताबिक, 4305 पत्र-पत्रिकाओं को यूजीसी की मान्यता सूची से बाहर कर दिया गया। जिन पत्र-पत्रिकाओं को सूची बदर किया गया, उनमें फारवर्ड प्रेस, इकाेनाॅमिक एंड पॉलिटिकल वीकली का ऑनलाइन संस्करण, समयांतर, हंस, वागर्थ, जन मीडिया, गांधी-मार्ग आदि शामिल हैं।

यूजीसी, नई दिल्ली

यूजीसी के इस कदम का भारतीय अकादमिक जगत ने पुरजोर विरोध किया था तथा यूजीसी द्वारा पत्र-पत्रिकाओं को कथित तौर पर मान्यता देने के संबंध में बनाए गए मानकों पर सवाल खड़े किए थे। यह सवाल भी उठा कि यूजीसी की स्टैंडिंग कमेटी में वे कौन लोग हैं, जिनकी सलाह पर यूजीसी ने ऐसी सूची बनाई गई, जिसमें से ज्ञान-निर्माण की प्रक्रिया में विपुल योगदान करने वाली पत्रिकाएं ब्लैक लिस्टेड हैं?

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हालांकि, अब यूजीसी बैकफुट पर आ गई है। उसने 28 नवंबर 2018 को एक पब्लिक नोटिस जारी कर पत्रिकाओं को मान्यता देने की प्रक्रिया में बदलाव करने की घोषणा की है। हालांकि इस बदलाव में भी अनेक पेंच है तथा इस प्रकार की कथित मान्यता देने, ब्लैक लिस्ट करने की प्रकिया को किसी प्रकार से तर्कसंगत और बुद्धिमतापूर्ण नहीं कहा जा सकता। यूजीसी ने अपनी नई प्रक्रिया में भी न तो पत्रिकाओं से प्रतिनिधियों को शामिल किया है, न ही स्वतंत्र बुद्धिजीवियों को कोई जगह दी है। इसकी बजाय वह सिर्फ प्राध्यापकों व विभिन्न प्रकार के सरकारी शोधार्थियों को इस प्रक्रिया में शामिल करेगी। भारतीय अकादमिया में शोध की जो गुणवत्ताहीन स्थिति है, उसके जिम्मेवार यही लोग रहे हैं। ऐसे में, इनके द्वारा बनाई गई सूची से शोध की गुणवत्ता बढेगी या लालफीताशाही और भाई-भतीजावाद बढेगा, यह स्पष्ट समझा जा सकता है।

बहरहाल, हम यहां यूजीसी के द्वारा 28 नवंबर 2018 को जारी एक पब्लिक नोटिस का अनुवाद अविकल रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं :

यूजीसी द्वारा जारी पब्लिक नोटिस

[यूजीसी  ने निम्नांकित पब्लिक नोटिस F.1-2/2016 (PS III Amendment), 28 नवंबर, 2018  को सचिव प्रोफेसर रजनीश जैन के हस्ताक्षर से जारी किया है ]

शिक्षकों द्वारा गुणात्मक शोध को प्रोत्साहन देना और नवीन ज्ञान का निर्माण करना, यूजीसी के गुणवत्ता संबंधी जिम्मेदारियों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध प्रबंधों की संख्या, विभिन्न अकादमिक उद्देश्यों, जैसे- संस्थान की रैंकिंग, अध्यापकों की नियुक्ति व उनकी पदोन्नति और शोध उपाधियां प्रदान करने के लिए वैश्विक स्तर पर मान्य मानक हैं। शोध प्रकाशनों का विश्वसनीय होना इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संबंधित व्यक्ति, संस्थान व राष्ट्र की छवि का निर्माण करते हैं । प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में गुणवत्तापूर्ण प्रबंधों के प्रकाशन से वैश्विक स्तर पर बेहतर रैंकिंग पाने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायता मिलती है। दूसरी ओर, संदिग्ध गुणवत्ता की अमानक पत्रिकाओं में शोध प्रबंधों के प्रकाशन का प्रभाव इसके ठीक विपरीत होता है। इससे दीर्घावधि में अकादमिक हानि होती है और छवि धूमिल होती है। पूरी दुनिया में अमानक/संदिग्ध गुणवत्ता वाली पत्रिकाएं चिंता का विषय बन गई हैं। ऐसा बताया जाता है कि भारत में कम गुणवत्ता वाली पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध आलेखों का प्रतिशत काफी अधिक है, जिससे देश की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यूजीसी द्वारा अनुमोदित पत्रिकाओं की सूची जारी करने का उद्देश्य यही था कि अकादमिक बिरादरी को व्यक्तियों और संस्थाओं का अकादमिक मूल्यांकन करने हेतु मापने-योग्य मानदंड उपलब्ध करवाए जा सकें।

इस पृष्ठभूमि में, यूजीसी-अनुमोदित पत्रिकाओं की सूची को परिष्कृत करने और उसे मजबूती प्रदान करने के लिए, आयोग ने 14 नवंबर, 2018 को आयोजित अपनी बैठक में इस पूरे मुद्दे पर पुनर्विचार किया।

यूजीसी द्वारा 28 नवंबर 2018 को जारी पब्लिक नोटिस F.1-2/2016 (PS III Amendment) के पहले पृष्ठ की तस्वीर। पूरी नोटिस यूजीसी के अधिकारिक वेबसाइट पर देखने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें


आयोग ने इस संबंध में निम्न प्रक्रिया अपनाने का निर्णय लिया है :

1. विज्ञान, अभियांत्रिकी, तकनीकी, कृषि व जैव-चिकित्सीय विषयों से संबंधित शोध पत्रिकाओं के लिए एससीओपीयूएस व वेब ऑफ साइंस (डब्ल्यूओएस) जैसे विश्व स्तर पर स्वीकार्य वैज्ञानिक डेटाबेस उपलब्ध हैं। अतः इन विषयों के लिए एससीओपीयूएस व डब्ल्यूओएस में अनुक्रमित सभी पत्रिकाएं अकादमिक उद्देश्यों के लिए स्वीकार्य होंगी।

2. अन्य विषयों, जैसे- सामाजिक विज्ञान, मानविकी, भाषाएं, कला, संस्कृति, भारतीय ज्ञान प्रणालियों आदि के लिए विश्वसनीय पत्रिकाओं की एक सूची तैयार करना और ध्यान रखना आवश्यक है। इस हेतु, कॉन्सोर्शियम ऑफ अकेडमिक रिसर्च एंड एथिक्स (सीएआरई या केयर) की स्थापना की जा सकती है।

3. केयर में सामाजिक विज्ञान, मानविकी, कला व ललित कला, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि व अभियांत्रिकी से संबंधित सभी सांविधिक परिषदें / शासकीय संस्थाएं व एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज  (सूची परिशिष्ट में देखें) को शामिल किया जा सकता है। आईएनएफएलआईबीएनईटी भी सहायक एजेंसी बतौर कॉन्सोर्शियम की सदस्य होगी। यूजीसी के उपाध्यक्ष केयर के अध्यक्ष होंगे। 

4. सभी विषयों से संबंधित पत्रिकाओं का विश्लेषण करने और उनके संबंध में सिफारिशें केयर के समक्ष प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी किसी ऐसी उपयुक्त संस्था को सौंपी जानी चाहिए, जिसे पत्रिकाओं की सामग्री का विश्लेषण करने की स्थापित क्षमता और प्रकाशन संबंधी नैतिक आचार का अच्छा ज्ञान हो। जिस संस्था को यह जिम्मेदारी दी जाएगी, वह एक विशेष एकांश का गठन करेगी, जो यूजीसी द्वारा नियुक्त एम्पावर्ड कमेटी के मार्ग-निर्देशन में काम करेगी।

5. केयर के सदस्य अपने से संबंधित विषयों की गुणवत्तापूर्ण पत्रिकाओं की सूची निर्धारित समयावधि में तैयार करेंगे। इन सूचियों का समालोचनात्मक विश्लेषण व उनकी गुणवत्ता का अध्ययन, संबंधित संस्था के विशेष एकांश द्वारा सुपरिभाषित मानदंडों के आधार पर किया जाएगा।

6.. विशेष एकांश द्वारा प्रस्तुत रपटों के आधार पर केयर द्वारा एक परिवर्तनीय ‘रिफ्रेन्स लिस्ट ऑफ क्वालिटी जर्नल्स’ तैयार की जाएगी, जिसका उपयोग सभी अकादमिक उद्देश्यों के लिए होगा।

7. भारत और विदेशों की जानी-मानी शासकीय परिषदों / राष्ट्रिय अकादमियों / विद्वतजनों की संस्थाओं आदि द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं को भी ‘केयर रिफ्रेन्स लिस्ट ऑफ क्वालिटी जर्नल्स’ में शामिल करने पर विचार किया जाएगा, बशर्ते वे आवश्यक गुणवत्ता मानदंड पूरे करती हों।

8. केयर, अकादमिक संस्थाओं के द्वारा केयर रिफ्रेन्स लिस्ट ऑफ क्वालिटी जर्नल्स में नई पत्रिकाओं को शामिल करने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करने हेतु प्रक्रिया का निर्धारण करेगी। इन सभी प्रस्तावों का विशेष एकांश द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत समालोचनात्मक विश्लेषण किया जाएगा और उपयुक्त पाए जाने पर, उन्हें  केयर रिफ्रेन्स लिस्ट ऑफ क्वालिटी जर्नल्स में शामिल करने के लिए अनुशंसा की जाएगी।

9. जब तक  केयर रिफ्रेन्स लिस्ट ऑफ क्वालिटी जर्नल्स तैयार नहीं हो जाती, तब तक वर्तमान यूजीसी-अनुमोदित पत्रिकाओं की सूची वैध रहेगी।

10.केयर रिफ्रेन्स लिस्ट ऑफ क्वालिटी जर्नल्स को नियमित रूप से अद्यतन किया जाएगा और उसे यूजीसी व कॉन्सोर्शियम के सदस्यों द्वारा उनकी वेबसाइटों पर प्रकाशित किया जाएगा।

11.निम्न गुणवत्ता व धनार्जन करने वाली पत्रिकाओं के संबंध में विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और अन्य हितधारकों में जागरूकता बढ़ाने के लिए समय-समय पर उपयुक्त दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे और शिक्षाविदों को यह सलाह दी जाएगी कि वे निम्न गुणवत्ता वाले व धनार्जन करने वाले प्रकाशनों और प्रकाशकों से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखें।

12.विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व अन्य अकादमिक संस्थाओं को इस आशय के दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे, जिनमें वैध व गुणवत्ता-आधारित मानदंडों और विभिन्न अकादमिक उद्देश्यों के लिए चयन/विशेषज्ञ समितियों की भूमिका पर जाेर दिया जाएगा। शोधार्थियों/संस्थाओं के शोध कार्यों का आंकलन, प्रकाशित सामग्री की गुणवत्ता पर निर्भर होना चाहिए, न कि प्रकाशनों की संख्या/इंपेक्ट फेक्टर या साइटेशंस पर।

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परिशिष्ट
कन्सोर्शियम ऑफ अकैडमिक रिसर्च एंड एथिक्स (केयर) के सदस्यों की सूची

  • नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग
  • इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च
  • इंडियन काउंसिल ऑफ फिलोसोफिकल रिसर्च
  • इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टाेरिकल रिसर्च
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी
  • सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर इंडियन लैंग्वेजेज
  • इन्दिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स
  • साहित्य अकादेमी
  • ललित कला अकादेमी
  • ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एज्युकेशन
  • काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड एजुकेशनल रिसर्च
  • इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च
  • इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च
  • सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन
  • नेशनल अकादेमी ऑफ इंजीनियरिंग
  • नेशनल अकादेमी ऑफ साइंसेज, इंडिया
  • इंडियन नेशनल साइंस अकादेमी
  • इंडियन अकादेमी ऑफ साइंसेज
  • नेशनल अकादेमी ऑफ मेडिकल साइंसेज
  • एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज
  • केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा स्थापित अन्य प्रासंगिक परिषदाें/संस्थाओं को भी आमंत्रित किया जा सकता है।
    संबंधित संस्था का विशेष एकांश और आईएनएफएलआईबीएनईटी पत्रिकाओं के विश्लेषण और केयर के विचारार्थ उनकी अनुसंशा करने के कार्य में सहायक एजेंसी की भूमिका अदा करेंगे।”

(अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, कॉपी संपादन : प्रेम)


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