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बिहार : दलित महिला को नग्न कर घुमाना पड़ा महंगा, पांच को सात और पंद्रह को दो-दो साल की जेल

बिहार में बीते 20 अगस्त 2018 को मानवता उस समय शर्मसार हो गई थी, जब उन्मादी भीड़ ने एक दलित महिला को शहर में घंटों नग्न घुमाया। यह सब पुलिस की आंखों के सामने हुआ। हालांकि, अदालत ने इस मामले में 20 लोगों को सजा सुनाई है। परंतु पुलिस की कार्यशैली पर उठे सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले। फारवर्ड प्रेस की खबर :

बीते 30 नवंबर 2018 को भोजपुर की निचली अदालत ने एक दलित महिला को नग्न करके घुमाने के आरोप में पांच आरोपियों को सात-सात साल की सज़ा मुकर्रर की है। साथ ही पंद्रह अभियुक्तों को दो-दो साल की सज़ा सुनाई गई है। यह फैसला अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश रमेश चंद्र द्विवेदी ने सुनाया।

गौरतलब है कि एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन कानून बीते 10 अगस्त 2018 काे लोकसभा और राज्यसभा में पारित होने के बाद बिहार में घटित यह घटना उन मामलों में शुमार हो गई, जिसे संशोधित एक्ट के तहत दर्ज किया गया। चूंकि, इस घटना ने विपक्षी दलों के द्वारा बिहार में जंगलराज होने के आरोपों की तस्दीक कर दी थी और राज्य सरकार चौतरफा आलाेचनाओं का शिकार हो रही थी। अब इस मामले में फैसले के बाद सूबे के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ट्विटर के जरिए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि यह फैसला बिहार में कानून का राज होने का प्रमाण है। साथ ही उन्होंने इसके जरिए अपने विरोधियों पर निशाना साधते हुए कहा है कि जो राज्य में जंगलराज होने की बात करते हैं, उन्हें कानून के लंबे हाथ नहीं दिखते हैं।

दोषियों को जेल ले जाती पुलिस

छात्र की लाश मिलने के बाद भड़का था उन्माद

घटना बीते 20 अगस्त 2018 की है। उन्मादी लोगाें में सभी जाति-वर्ग के लोग शामिल थे, जाे उस वक्त भड़क गए, जब भोजपुर के शाहपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत बहोरनपुर गांव निवासी इंटर के छात्र विमलेश कुमार साह की लाश बिहिंया बाजार रेलवे स्टेशन के बगल में पटरी के पास दोपहर में मिली। एक छोटे से शहर बिहिंया में इस खबर को फैलते देर नहीं लगी। देखते ही देखते रेल पटरी के पास भीड़ लग गई। उसी समय यह अफवाह फैली कि मृतक छात्र के शव से जननांग गायब है। फिर इसके बाद लाश मिलने का नजारा देख रहे लोग अचानक ही उग्र हो गए। उनके आक्रोश की शिकार नट (अनुसूचित जाति) महिला बनी, जो बिहिंया रेलवे स्टेशन से उत्तर में सटी एक बस्ती में रहती थी। इस माेहल्ले के लोगों का मुख्य पेशा नाच-गाना करना है। विमलेश कुमार शाह की लाश में जननांग गायब होने के बाद अफवाह यह फैली कि ऐसा इसी बस्ती की एक महिला ने किया है। फिर इसके बाद उन्मादी भीड़ ने बस्ती पर हमला बोल दिया।

 चूंकि, अफवाह पहले ही फैल चुकी थी, इसलिए बस्ती के सभी पुरुष अपने घरों को छोड़कर भाग गए और पीड़िता उन्मादी भीड़ के हत्थे चढ़ गई। उसे नग्न करके पूरे बिहिंया बाजार में घुमाया गया। इतना ही नहीं, एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर जारी कर दिया गया। हालांकि, बाद में अदालती कार्रवाई के दौरान इसी वीडियो को पुलिस ने सबूत के रूप में पेश किया और कुल 20 लोगों को इसके लिए कसूरवार माना गया। इनमें से पांच दाेषियाें को सात-सात साल की सज़ा व 10-10 हजार रुपए का जुर्माना और 15 दाेषियाें को दो-दो साल की सजा व दो-दो हजार रुपए के जुर्माने की सज़ा सुनाई गई।

20 अगस्त 2018 को भोजपुर के बिहिंया थाना इलाके में दलित महिला को नग्न घुमाते अपराधी

पुलिस को क्लीन चिट

बहरहाल, भोजपुर की निचली अदालत ने इस मामले में आरोपियों को सज़ा सुना दी, लेकिन स्थानीय पुलिस पर न तो सरकार ने कोई संज्ञाान लिया और न ही अदालत ने। जबकि इस वारदात में स्थानीय पुलिस की भूमिका स्पष्ट रूप से सामने आई थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, दलित महिला को नग्न घुमाने की घटना घटित ही नहीं होती, अगर पुलिस ने अपने कर्तव्य का पालन किया होता। दरअसल, विमलेश कुमार साह की लाश, जिसके मिलने के बाद भीड़ भड़की, वह 20 अगस्त 2018 को सुबह से ही रेलवे पटरी के पास पड़ी थी।

बिहिंया थाना, भोजपुर

इस लाश को रेलवे पुलिस के जवानों ने देखा था, लेकिन जवाबदेही से बचने के लिए उसने बिहिंया थाने को खबर दे दी। वहीं बिहिंया के थाना प्रभारी ने इस मामले को यह कहकर अनसुना कर दिया कि जिस जगह लाश मिली है, वह रेलवे पुलिस का क्षेत्र है। सीमा विवाद के कारण छात्र के शव को हटाया नहीं गया और इससे पहले कि उसे हटाया जाता, उन्मादी भीड़ ने दलित महिला के आत्म सम्मान की धज्जियां उड़ा दीं। हालांकि, बाद में कार्रवाई के नाम पर आठ पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर किया गया था और पीड़िता को मुआवजे के रूप में दो लाख रुपए का चेक प्रदान किया गया था।

(कॉपी संपादन : प्रेम)


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