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घुमंतू व विमुक्त समुदायों ने तेज की ‘एक जाति, एक रिजर्वेशन’ की मांग

हैदराबाद में बीते 24-25 दिसंबर 2018 को विमुक्त व घुमंतू जनजातियों के मुद्दों को लेकर दो दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। देश भर से इस समुदाय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और आपस में एकजुट होकर ‘एक जाति, एक रिजर्वेशन’ की मांग पुरजोर तरीके से रखने का फैसला किया। फारवर्ड प्रेस की खबर :

विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के लोगों ने अपनी पहचान और अपने अधिकारों को लेकर गोलबंद होना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में हैदराबाद में दो दिवसीय परिचर्चा बीते 24-25 दिसंबर 2018 को संपन्न हुई। देश भर से आए इन समुदायों के प्रतिनिधियों ने परिचर्चा के दौरान एक सुर में इस बात पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की कि हम सब वे जनजातियां हैं, जिन्हें सरकार ने विमुक्त करार दिया है। देश भर में इन समुदायों के लोग हैं, जो अपनी पहचान के संकट से जूझ रहे हैं।

दो दिवसीय परिचर्चा के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि जिन जनजातियों का संविधान में नाम तक नहीं है, उन्हें संविधान में जगह देने के लिए सरकार के समक्ष पुरजोर तरीके से मांग रखी जाए। इसके तहत संविधान में धुमंतू जनजाति, अर्द्ध-घुमंतू और विमुक्त जनजाति, ये तीन शब्द तत्काल जोड़े जाएं। इसके साथ ही इन जनजातियों की जनगणना कराई जाए, ताकि पता चल सके कि पूरे भारत में कहां-कहां और कितने-कितने इन जनजातियों के लोग हैं। अभी तक इस तरह की कोई जनगणना नहीं हुई है। बालकृष्ण रेणके कमीशन[1] का हवाला देकर बताया गया कि लगभग 20 राज्यों में डीएनटी की आबादी है। हालांकि, एक अन्य इदाते कमीशन का हवाला देकर बताया गया कि पूर्वोत्तर के राज्यों में भी घुमंतू जनजातियों के लोग हैं।[2 ]

परिचर्चा को संबोधित करते डीएनटी समुदाय के एक प्रतिनिधि

बैठक में इसके अलावा इस बात पर भी आपत्ति व्यक्त की गई कि खानाबदोश विमुक्त, घुमंतू जनजातियों के लोगों के लिए कोई योजनाएं क्यों नहीं हैं? जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए अलग-अलग योजनाएं हैं। वक्ताओं के मुताबिक, हालत यह है कि घुमंतू लाेग कहीं डीएनटी, तो कहीं एनटी, तो कहीं एसएनटी कहे जाते हैं। इतना ही नहीं कहीं ये जनजातियां ओबीसी, तो कहीं एससी, तो कहीं अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल हैं। मुस्लिम समुदाय में भी डीएनटी हैं। इसमें घुमंतू वे लोग हैं, जो कलंदर हैं, सपेरा हैं। ये सभी आदिवासी लोग थे, लेकिन किसी कारण से इन सबने मुस्लिम धर्म अपना लिया। आज इनकी स्थिति यह है कि अभी तक मुस्लिम समाज ने इन्हें स्वीकार नहीं किया है और इन्हें घर के दरवाजे तक नहीं जाने दिया जाता है।


यह भी पढ़ें : संविधान में हो हमारी पहचान, मिले हम धुमंतूओं को अधिकार : एम. सुब्बा राव

नेशनल कैंपेन फॉर डीएनटी राइट्स से जुड़े डांडी वेंकट ने बताया, “वे लोग राष्ट्रीय स्तर पर इन जातियों को जोड़ने के लिए संगठन खड़ा करने जा रहे हैं। महाराष्ट्र के भारत विटकार व वो खुद इस काम में जुट गए हैं, ताकि ‘एक जाति एक रिजर्वेशन’ की मांग वो पुरजोर तरीके से कर सकें। उन्होंने बताया कि इन घुमंतू जनजातियों की स्थिति का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इन्हें ओबीसी की श्रेणी में रखा हुआ है, तो वहीं आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, छत्तीसगढ़ व दिल्ली में एससी श्रेणी में आते हैं। इसलिए हम लोग ‘एक जाति एक रिजर्वेशन’ की मांग कर रहे हैं, ताकि सभी जातियों को आगे बढ़ने का मौका मिल सके।”

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

नेशनल एलायंस ऑफ डिनोटिफाइड नोमेडिक एंड ट्राइब्स आर्गेनाइजेशन के संयोजक सुब्बा राव ने कहा, “घुमंतू विमुक्त जनजातियों की अनदेखी अब बिलकुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब केवल बातों व आश्वासनों से काम नहीं चलने वाला है। हम घुमंतुओं और विमुक्तों को भी रीप्रजेंटेशन चाहिए। दलितों, अनुसूचित जातियाें -जनजातियाें, अन्य पिछड़े वर्ग का रीप्रजेंटेशन जब अलग-अलग है, तो घुमंतुओं का क्यों नहीं? हम हिन्दू नहीं हैं, हम डीनोटिफायड ट्राइब्स हैं। हमें न तो एससी के हिस्से का लाभ चाहिए, न एसटी समुदाय का और न ही ओबीसी वर्ग का। हमें अलग से रिजर्वेशन चाहिए; एक जाति-एक रिजर्वेशन के तहत। हम सब अपनी बिरादरी विमुक्त, घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियों के लिए प्रतिबद्ध हैं और राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम शुरू की जा रही है, ताकि दूर-दराज बैठे इस समुदाय के लोगों को भी एक छतरी के नीचे लाया जा सके।”

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)

[1] http://socialjustice.nic.in/writereaddata/UploadFile/NCDNT2008-v1635730742463990703.pdf

[2 ] http://socialjustice.nic.in/writereaddata/UploadFile/Voices%20of%20The%20DNT_NT%20for%20Mail.pdf


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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