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गोंडवाना रत्न सुन्हेरसिंह ताराम : गोंडी भाषा और साहित्य का दीपक जलाने वाले कर्मनिष्ठ समाज-सेवक

गोंडवाना दर्शन मासिक पत्रिका के संस्थापक संपादक रहे सुन्हेरसिंह ताराम का निधन बीते 7 नवंबर 2018 को हो गया। गोंडी सहित आठ आदिवासी भाषाओं, साहित्य और संस्कृति को बचाए रखने के लिए वे हमेशा प्रयासरत रहे। उन्हें श्रद्धांजलि दे रही हैं उनकी जीवन-साथी उषाकिरण अत्राम :

बीते 7 नवंबर 2018 को सुन्हेरसिंह ताराम जी का अल्प बीमारी से अचानक निधन हो गया। गोंडवाना की अति प्राचीन भाषा, साहित्य, संस्कृति और इतिहास पर खोज करने वाले ताराम जी असामान्य विद्वान थे। ग्रंथों से और कागज-कलम से उनकी इतनी दोस्ती थी कि एक दिन भी उनके बगैर वे नहीं रह पाते थे। इतना गहरा रिश्ता था उनका किताबों के साथ। वे ग्रंथ प्रेमी व साहित्य प्रेमी थे। गंभीरता उनका स्वभाव था। बीते 40 साल से उनकी साहित्य यात्रा और 32 साल से निरंतर प्रकाशित ‘गाेंडवाना दर्शन’ मासिक पत्रिका इसके साक्षी रहे हैं।

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लेखक के बारे में

उषाकिरण आत्राम

उषाकिरण आत्राम की गिनती प्रमुख आदिवासी लेखिका व सांस्कृतिक मुद्दों की कार्यकर्ता के रूप में होती है। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियां में मोरकी (काव्य संग्रह : 1993 में गोंडी भाषा और बाद में हिंदी और मराठी में अनुवादित), 'कथा संघर्ष' (1998) और 'गोंडवाना की वीरांगनायें' (2008) हैं

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