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कंगला मांझी की पुण्यतिथि पर गोंड आदिवासी लेंगे एक होने का संकल्प

‘एक तीर-एक कमान, सब आदिवासी एक समान’ के उद्देश्य से 5 दिसंबर को मांझी सरकार की पुण्यतिथि पर कई राज्यों के गोंडवाना आदिवासी छत्तीसगढ़ के बलोद जिले के बघमार रिजर्व विकास क्षेत्र (दुर्ग) में जुटेंगे और अपने अधिकार फिर से वापस लेने का संकल्प लेंगे। फारवर्ड प्रेस की खबर :

गोंड आदिवासी आगामी 5 दिसंबर 2018 को कंगला मांझी (हीरा सिंह देव) की पुण्यतिथि पर जल, जंगल, जमीन और अधिकार के लिए संघर्ष की नई रूपरेखा का ऐलान करेंगे। कंगला मांझी आदिवासी कल्याण समिति, दुर्ग-छत्तीसगढ़ के बैनर तले इस कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों में बंटे आदिवासियों के प्रतिनिधि शामिल होंगे और एक होने की शपथ लेंगे।

आदिवासी कल्याण समिति के सचिव राम चरण सिंह उलचे ने कार्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि “धर्म का जाल बिछाकर भोले-भाले आदिवासी लोगों को जिस तरह मानसिक तौर पर साजिशन गुलाम बनाया गया, उसी का हम सब गोंडवाना आदिवासी विरोध कर रहे हैं। हिंदू धर्म की आड़ में गोंडी भाषा, गोंडी धर्म, रीति-रिवाज सब कुछ तहस-नहस कर दिया गया। हम प्रकृतिवादी हैं, लड़ाई-झगड़े से दूर रहते हैं; लेकिन जिस तरह का मानसिक गेम खेला गया, उसको हम सब समझ नहीं पाए और जो-जो हमारे अधिकार थे, वो सब हमसे छीन लिए गए और उन्हें हासिल करने के लिए अब हमें आवाज उठानी पड़ रही है।”

कंगला मांझी (हीरा सिंह देव) की तस्वीर

उन्होंने कहा, “अविभाजित भारत से पहले पूरा देश गोंडवाना भारत (गोंडवाना लैंड, गोंडवाना गणराज्य) के रूप में जाना जाता था और वहीं के वे लोग मूल निवासी हैं। अपने इलाके के राजा थे, जल-जंगल-जमीन सब पर अधिकार था, लेकिन आजादी के बाद संविधान में उन्हें जनजाति कैटेगरी में डाल दिया गया और राजा से आम जनता के रूप में गिना जाने लगा।”

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कल्याण समिति के प्रतिनिधि नरेंद्र ध्रुव के मुताबिक, “सच कहें तो आर्य लोगों ने आकर बल, दल व धार्मिक रीति-रिवाज से जल-जंगल-जमीन सब कुछ हम सबों से दूर कर दिए और आज हम खानाबदोश-जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर हैं। कुल मिलाकर कहें तो भोले-भाले होते हैं आदिवासी, तुरंत विश्वास कर लेते हैं। गोंडवाना आदिवासियों के साथ धोखा हुआ है। गोंड भारत एकीकृत भारत था, जो कई टुकड़ों में बंटकर भारत बनकर रह गया और धर्म का जाल बिछाकर गोंड आदिवासियों का अधिकार ले लिया गया। धरती के ताज थे,लेकिन चालाकी से धरतीविहीन कर दिया गया।”

कई राज्यों में हैं गोंड आदिवासी

नरेंद्र ध्रुव ने बताया, “जिस तरह भीड़ को टुकड़ों में बांट दिया जाता है, ठीक उसी तरह गोंडवाना आदिवासियों के एक बड़े समूह को राज्यों में बांटकर विभाजित कर दिया गया। कुछ साल पहले ही मध्य प्रदेश को छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में, बिहार को झारखंड और बिहार में बांटा गया। ठीक ऐसा ही बंटवारा इससे पहले भी हुआ और नतीजतन गोंड आदिवासी भी बंट गए और कोई छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में रह रहा है, तो कोई बिहार या झारखंड में तो कोई कर्नाटक और तेलंगाना में। हम सब अब एक होने की कोशिश में लगे हैं, ताकि अपने अधिकार फिर से वापस पा सकें।”

नहीं मानते हिंदू धर्म, शंकर को मानते अपना पुरखा

नरेंद्र ध्रुव ने बताया, “गोंड आदिवासी प्रकृति के पुजारी होते हैं और ये लोग हिंदू धर्म को नहीं मानते हैं। लेकिन शंकर-पार्वती की पूजा करते हैं,क्योंकि वे इनके इष्ट देव हैं। दीपावली पर ईश्वर-गौरा की वे लोग पूजा करते हैं और इसके पीछे का कारण वे लोग ये बताते हैं कि चूंकि शंकर खुद अनार्य (आदिवासी) थे, इसलिए उन्हें नायक के रूप में मानकर उनकी अराधना करते हैं। शंकर को ये लोग भील के वंशज मानते हैं। उनका कहना है कि हिंदू धर्म से उन्हें जोड़ना गलत है।”

भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ कंगला मांझी]

कौन थे कंगला मांझी?

कंगला मांझी के पुत्र के.डी. कांगे ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में बताया, “उनके पिता का वास्तविक नाम हीरा सिंह देव था और संविधान बनने से पहले जब 156 राष्ट्रों का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था, तब भारत की तरफ से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वहां गए थे; जबकि गोंडवाना राज्य की तरफ से हीरा सिंह देव गए थे। तब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैसला लिया गया था कि गोंडवाना के अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाए, लेकिन कालांतर में गोंडवाना आदिवासियों को राज्यों के बंटवारे की आड़ लेकर एक-दूसरे से दूर कर दिया गया। इस पीड़ा से हीरा सिंह देव काफी आहत हुए और उन्होंने ऐशोआराम वाली जिंदगी छोड़ गरीब आदिवासियों के बीच रहकर अधिकार की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। तभी से उनका नाम श्री मांझी हो गया। मांझी का हिंदी में अर्थ मुखिया है, जबकि कंगला का अाशय गरीब से है। यानी उनके सम्मान में और उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए ही श्री कंगला मांझी आदिवासी कल्याण समिति का गठन किया गया।”

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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