h n

‘नसीरूद्दीन शाह की बात हिंदुत्ववादियों को नागवार गुज़री है’

जनवादी लेखक संघ ने कहा है कि हिंदुत्वादी संगठनों के कारनामे हर रोज़ असहिष्णुशीलता का सबूत दे रहे हैं। लेखकों-कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ये हमले दिनोंदिन बढ़ रहे हैं

शाह के साथ खड़ा हुआ जनवादी लेखक संघ

नयी दिल्ली : जनवादी लेखक संघ ने अजमेर में साहित्योत्सव के उद्घाटन के अवसर पर भाजपा-आरएसएस के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए हंगामे की कड़े शब्दों में निंदा की है।


संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह व कार्यकारी अध्यक्ष चंचल चौहान ने दिल्ली में जारी एक प्रेस बयान में कहा कि “ 21 दिसंबर 2018 को राजस्थान के अजमेर में नसीरुद्दीन शाह के मंच पर आने से पूर्व ही करीब चालीस-पचास हिंदुत्ववादी उपद्रवियों ने पंडाल में आकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। उन्होंने होर्डिंग फाड़ दिये और नसीरुद्दीन शाह के ख़िलाफ़ नारे लगाने लगे। उस समय वहां पर केवल दो पुलिस वाले थे। इस असुरक्षित माहौल में नसीरुद्दीन शाह को मंच पर नहीं लाया गया और वे बिना अपने विचार अभिव्यक्त किये ही वापस चले गये।”

नसीरुद्दीन शाह

लेखक संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि “ नसीरुद्दीन शाह ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में देश के इसी माहौल पर अपने मन की बात कही थी जो हिंदुत्ववादियों को नागवार गुज़री जबकि उन्होंने न तो किसी व्यक्ति का और न ही किसी संगठन का नाम लिया था। इन संगठनों के कारनामे हर रोज़ असहिष्णुशीलता का सबूत दे रहे हैं। लेखकों-कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ये हमले दिनोंदिन बढ़ रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि  “नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार को पूरी सुरक्षा प्रदान करने और उन्हें अपने विचार रखने का अवसर प्रदान करवाना राजस्थान की मौजूदा कांग्रेस सरकार की जिम्मेदारी बनती थी, जो नयी सरकार के प्रशासन ने नहीं निभायी।”

जनवादी लेखक संघ ने राजस्थान सरकार से मांग की है कि “उपद्रवियों को गिरफ्तार करके कानूनी कार्यवाही की जाए, तथा जिस तरह पुलिस प्रशासन की इस पूरे प्रकरण के दौरान उपेक्षापूर्ण भूमिका रही है उसकी जांच की जाय”

    (कॉपी संपादन -एफपी डेस्क/अर्चना)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...