h n

महागठबंधन में शामिल हुए उपेंद्र कुशवाहा, 2 फरवरी को आक्रोश रैली का आह्वान

उपेंद्र कुशवाहा ने राजद नेता तेजस्वी यादव, शरद यादव और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के साथ नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय जाकर महागठबंधन में शामिल होने का ऐलान कर दिया। उन्होंने आगामी 2 फरवरी को पटना में आक्रोश रैली का आह्वान किया है

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के सहयोगी रहे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा आखिरकार विपक्ष के महागठबंधन में शामिल हो गए। बीते 20 दिसंबर 2018 को नई दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड उपेंद्र कुशवाहा, राजद नेता तेजस्वी यादव, शरद यादव व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी दिल्ली पहुंचे और वहीं इसकी औपचारिक घोषणा की गई। इस मौके पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल मौजूद रहे।

हालांकि उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति बिहार तक सीमित है, लेकिन इसका असर 2019 में होने वाले लोकसभा पर पड़ सकता है। ऐसे भी हाल ही में तीन राज्यों में शानदार प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए अच्छा मौका हो सकता है।

दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में महागठबंधन में शामिल होने के दौरान उपेंद्र कुशवाहा

इस मौके पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि कुशवाहा के शामिल होने से महागठबंधन मजबूत होगा और हम सबों के लिए यह अच्छी खबर है। उन्होंने कहा कि भाजपा की क्षेत्रीय दलों को कुचलने का प्रयास सफल नहीं होने देंगे। इस मौके पर तेजस्वी ने इशारे इशारे में कहा कि बिहार का एक और क्षेत्रीय दल मोदी सरकार में रहकर छटपटा रहा है। पार्टी का नाम पूछने पर उन्होंने कहा कि आप सभी जानते हैं। मैं लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की ही बात कर रहा हूं।

 महागठबंधन में शामिल होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि एनडीए छोड़ने का कारण यह था कि वहां मेरा अपमान हो रहा था। उन्होंने राहुल गांधी व लालू यादव का आभार जताया और कहा कि इन दोनों नेताओं ने उदारता दिखाई। उन्होंने एनडीए पर निशाना साधते हुए कहा कि पीएम मोदी व नीतीश कुमार ने कहा था कि अब बिहार के लोगों के लिए दवाई व कमाई के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन क्या ऐसा हुआ? कुशवाहा ने कहा कि वर्तमान सरकार हर मोर्चे पर फेल है। न तो शिक्षा का स्तर सुधरा न रोजगार के रास्ते खुले।

इस मौके पर कुशवाहा ने नीतीश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार को सिर्फ वादे दिए, उन्हें पूरा नहीं किया। उन्होंने कहा कि हमें और हमारी पार्टी को कमजोर करने की कई कोशिशें की गईं ताकि हम सोशल जस्टिस की बात न कर सकें। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर कहा कि गांधी की कथनी व करनी में कोई अंतर नहीं है। इस मौके पर कुशवाहा ने एलान किया कि दो फरवरी को सरकार के खिलाफ पटना में आक्रोश रैली निकालेंगे।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोका

 

लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

संबंधित आलेख

वोट देने के पहले देखें कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों में फर्क
भाजपा का घोषणापत्र कभी 2047 की तो कभी 2070 की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन पिछले दस साल के कार्यों के...
शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...
केंद्रीय शिक्षा मंत्री को एक दलित कुलपति स्वीकार नहीं
प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में...
आदिवासियों की अर्थव्यवस्था की भी खोज-खबर ले सरकार
एक तरफ तो सरकार उच्च आर्थिक वृद्धि दर का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ यह सवाल है कि क्या वह क्षेत्रीय आर्थिक...