h n

सट्टेबाजी और अन्याय : ऑनलाइन प्रवेश परीक्षायें और जेएनयू

यह आलेख जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अनुभव पर प्रकाश डालते हुए सामाजिक विज्ञान और मानविकी के लिए बहु-वैकल्पिक प्रारूप की ऑनलाइन प्रवेश परीक्षाओं से पेश आ रही समस्याओं की रूपरेखा को सामने रखता है। शैक्षणिक और संचालन दोनों से जुड़ी आपत्तियां तो हैं ही, सुरक्षा, परिणामों में छेड़छाड़ की आशंका, और इसमें शामिल भारी वित्तीय लागत को लेकर भी चिंताएं कम नहीं हैं

बहु-वैकल्पिक प्रश्नों (एमसीक्यू) के रूप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के लिए कम्प्यूटरीकृत ऑनलाइन प्रवेश परीक्षाओं की घोषणा जिस रूप में सामने आयी है,उसमें पहली ही नज़र में सिर्फ़ एक और नौकरशाही हस्तक्षेप, बीमार मानसिकता, और उच्च शिक्षा नीति को लेकर जल्दबाज़ी दिखती है। जो कुछ हो रहा है,उसे लेकर हमें सतर्क रहने की ज़रूरत है, क्योंकि उच्च शिक्षा दो तरह के जबरदस्त और कहीं ज़्यादा व्यापक बदलाव से गुज़र रही है। पहला बदलाव तो सरकारी विश्वविद्यालय प्रणाली का विध्वंस है और इसकी जगह निजी विश्वविद्यालयों को लाए जाने की योजना है,जो विश्वविद्यालयों को मुनाफ़ा कमाने वाले संगठनों के रूप में चलाने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होंगे। हालांकि, यह प्रक्रिया नरेंद्र मोदी के शासन में आने से पहले से ही चल रही है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : सट्टेबाजी और अन्याय : ऑनलाइन प्रवेश परीक्षायें और जेएनयू

 

 

लेखक के बारे में

आयशा किदवई/निवेदिता मेनन

आयशा किदवई सैद्धांतिक भाषाविद् हैं। जेएनयू, दिल्ली में प्रोफेसर किदवई मानविकी अध्ययन के लिए 2013 के इंफोसिस सम्मान की विजेता भी हैं। वह जेएनयू शिक्षक संघ की अध्यक्ष रह चुकी हैं।--------------------------------- निवेदिता मेनन  दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के तुलनात्मक राजनीति और राजनीति सिद्धांत केंद्र में प्राध्यापक निवेदिता मेनन, 'सीइंग लाइक ए फेमिनिस्ट' (2012) की लेखिका हैं तथा चर्चित ब्लॉग काफिला ऑनलाइन की संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।। उनके शोध प्रबंध अनेक भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। उनकी अन्य पुस्तकों में 'रिकवरिंग सबवर्सन: फेमिनिस्ट पॉलिटिक्स बियॉन्ड द लॉ' (2004) और आदित्य निगम के साथ सहलिखित 'पॉवर एंड कंटेसटेशन: इंडिया आफ्टर 1989' (2004) शामिल हैं। उन्होंने दो ग्रंथों 'जेंडर एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया' (1989) और 'सेक्सुएलिटीस' (2007) का संपादन भी किया है। इसके अतिरिक्त वह आदित्य निगम और संजय पल्शिकर के साथ 'क्रिटिकल स्टडीज इन पॉलिटिक्स: एक्सप्लोरिंग साइट्स, सेल्वेस, पॉवर' (2013) की भी संपादक रही हैं। उन्होंने कथा साहित्य और अन्य पुस्तकों का हिंदी और मलयालम से अंग्रेजी और मलयालम से हिंदी में अनुवाद किया है।

संबंधित आलेख

गुरुकुल बनता जा रहा आईआईटी, एससी-एसटी-ओबीसी के लिए ‘नो इंट्री’
आईआईटी, दिल्ली में बायोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी के लिए ओबीसी और एसटी छात्रों के कुल 275 आवेदन आए थे, लेकिन इन वर्गों के...
बहुजन साप्ताहिकी : बिहार के दलित छात्र को अमेरिकी कॉलेज ने दाखिले के साथ दी ढाई करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप
इस बार पढ़ें रायपुर में दस माह की बच्ची को मिली सरकारी नौकरी संबंधी खबर के अलावा द्रौपदी मुर्मू को समर्थन के सवाल पर...
बहुजन साप्ताहिकी : सामान्य कोटे में ही हो मेधावी ओबीसी अभ्यर्थियों का नियोजन, बीएसएनएल को सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
इसके अलावा इस सप्ताह पढ़ें तमिलनाडु में सीयूईटी के विरोध में उठ रहे स्वर, पृथक धर्म कोड के लिए दिल्ली में जुटे देश भर...
एमफिल खत्म : शिक्षा नीति में बदलावों को समझें दलित-पिछड़े-आदिवासी
ध्यातव्य है कि इसी नरेंद्र मोदी सरकार ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 2013 में शुरू की गई चार वर्षीय पाठ्यक्रम को वापस कर दिया था।...
गुरुकुल बनते सरकारी विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालयों का दलित-बहुजन विरोधी चरित्र
हिंदू राष्ट्रवाद का जोर प्राचीन हिंदू (भारतीय नहीं) ज्ञान पर है और उसका लक्ष्य है अंग्रेजी माध्यम से और विदेशी ज्ञान के शिक्षण को...