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प्रेरणा स्थल का कॉमर्शियल उपयोग : दलित-बहुजनों को अस्मिताविहीन करने की कोशिश

दलित प्रेरणा स्थल व डॉ. आंबेडकर पार्क जैसे स्थानों पर शादी-ब्याह सहित निजी कार्यक्रम आयोजित किए जाने का फैसला दुर्भावना  से प्रेरित और निहायत ही आपत्तिजनक है। आखिर दिल्ली के प्राइम लोकेशनों पर स्थित सवर्ण राजनेताओं और उनके परिवारजनों के समाधि स्थलों पर क्यों नहीं आयोजित किए जाते इस तरह के प्रोग्राम?

दलित प्रेरणा स्थल विकसित करने का आखिर मकसद क्या था? यही था न कि वह स्थान, जहां पहुंच कर दलित समाज के लोग अपने समाज से जुड़े महापुरुषों के बारे में जानें-समझें और उनसे प्रेरणा ग्रहण करें। लेकिन इन स्थानों का कॉमर्शियल उपयोग करने का फैसला आखिर क्या दर्शाता है?  इस तरह के फैसले के पीछे कैसी सोच है? पहले भी ब्राह्मणवादी सोच वाले नीति निर्धारकों ने दलित समाज से जुड़े महापुरुषों का इतिहास में नाम तक दर्ज नहीं होने दिया ताकि आने वाली पीढ़ी इन महापुरुषों के बारे में नहीं जान पाए।


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित स्मारक समिति द्वारा इन स्थानों पर प्री-वेडिंग व व्यक्तिगत कार्यक्रमों को गत 19 दिसम्बर को हरी झंडी दी गई है। इस संबंध में संविधान संरक्षण मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा दुर्गा प्रसाद ने कहा कि इस तरह के फैसले को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि शादी-ब्याह जैसे कार्यक्रमों के आयोजन से वहां का माहौल बिगड़ेगा। होना तो यह चाहिए कि यहां इतिहास को जानने, समझने-बूझने के लिए बेहतर लाइब्रेरी जहां प्रचूर मात्रा में महापुरुषों की किताबें हों, इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए। शादी-ब्याह का मंडप बनाने की बजाय इस जगह को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाना चाहिए।

प्रेरणा स्थल

हाल ही में भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने वाली दलित सांसद सावित्री बाई फूले ने भी स्मारक समिति के फैसले पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है और सवाल किया है कि अगर दलित प्रेरणा स्थल व आंबेडकर पार्क को व्यावसायिक गतिविधियों के लिए खोले जाने को हरी झंडी दी गई है तो फिर विभिन्न जगहों पर प्राइम लोकेशन पर स्थित समाधि स्थलों के लिए भी क्यों नहीं इसी तरह के फैसले लिए जाते हैं ? अति पिछडा समुदाय से आने वाले उत्तर प्रदेश के केंद्रीय मंत्री ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि चुनाव नजदीक आते ही इस तरह के फैसले लिए जाने का आखिर मकसद क्या है, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। फैसले लिए गए हैं तो उससे क्या फायदा हो रहा है और नुकसान इसका आकलन किया जाना चाहिए। जहां तक महापुरुषों की बात है तो अगर उन्हें भुलाने के लिए साजिश सही मायने में अगर हो रही है तो इसका पुरजोर तरीके से विरोध होना चाहिए।

एक नजर नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल व ग्रेटर नोएडा स्थित बादलपुर के आंबेडकर पार्क पर

नोएडा के सेक्टर 95 स्थित दलित प्रेरणा स्थल को 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 700 करोड़ की लागत से विकसित करवाया था। यह करीब 82.5 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें भीम राव आंबेडकर, कांशीराम व मायावती के अलावा आठ अन्य महापुरुषों वीर नायक बिरसा मुंडा, महात्मा संत श्री नारायण गुरु, संत श्रीमणि गुरु श्री रविदास, महात्मा ज्योति बा फूले, महात्मा गौतम बुद्ध, गुरु घासी राम, संत कबीर दास व साहू जी महाराज की कांस्य प्रतिमाएं लगी हैं। यहां सौ फुट ऊंचाई का समता मूलक स्तंभ भी बना है, जिन पर अशोक चक्र बना हुआ है। दो फाउंटेन लगे हैं जिनकी ऊंचाई 52 फुट है। 22 बड़े-बड़े हाथियों की गैलरी भी बनी हुई है। इसके अलावा प्रेरणा स्थल के अंदर एक खूबसूरत पार्क भी है जिसमें मौलिश्री, कचनार, अशोक, सेमल, पिलखन, अमलतास आदि प्रजाति के करीब 7.5 हजार पौधे लगे हैं। इसे आम लोगों के लिए 2 अक्टूबर 2013 में खोला गया था।

नोएडा का उद्यान विभाग इसके रखरखाव पर सालाना दो करोड़ रुपया खर्च करता है। इसी तरह दलित प्रेरणा स्थल के अलावा बादलपुर स्थित बाबा साहेब डा आंबेडकर पार्क में भी ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की अनुमति मिली है। इस पार्क का निर्माण भी मायावती सरकार के कार्यकाल 2008-09 में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने कराया था। यह भी करीब 20 एकड़ में फैला हुआ है।

क्या है विवादित फैसला

प्रेरणा स्थल का एक दृश्य

उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित स्मारक समिति ने बीते 19 दिसम्बर को यह फैसला लिया है कि अब प्रदेश में स्थित ऐसे स्मारकों का इस्तेमाल फिल्मांकन, धारावाहिक कार्यक्रम, एल्बम, विज्ञापन, व्यक्तिगत समारोहों, प्री वेडिंग शूट आदि कार्य के लिए किया जा सकेगा। तर्क दिया गया है कि इन आयोजनों से बेहतर तरीके से स्मारक मेंटेन हो पाएंगे। अभी रोजाना औसतन केवल 150-200 टिकटें ही बिकती हैं और एक टिकट की कीमत 15-20 रुपए है। पब्लिक के इस्तेमाल आने से रिवेन्यू में तेजी से बढ़ोतरी होगी।

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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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